अविश्वास प्रस्ताव पर अपने ही बुने जाल में फँस गया विपक्ष

पीएम के भाषण में विपक्ष, खासकर कांग्रेस के प्रति काफी आक्रामकता दिखाई दी। राहुल गांधी की नौटंकी, पीएम मोदी का तथ्यपूर्ण आक्रामक वक्तव्य और अंततः अविश्वास प्रस्ताव का गिरना, इन सब बातों से विपक्ष की जमकर फजीहत तो हुई ही, साथ ही अविश्वास प्रस्ताव पर आए मतदान के आंकड़ों ने विपक्ष की राजनीतिक एकता के खोखलेपन की पोल भी खोलकर रख दी। कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष ने सरकार को बैकफुट पर लाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का जो जाल बुना था, उसमें वो खुद ही फंसकर रह गया।

शुक्रवार का दिन संसद के इतिहास में रोचक, हंगामाखेज और घटनाप्रधान दिन के रूप में दर्ज हो गया। इन दिनों संसद का मानसून सत्र चल रहा है। इसे आरंभ हुए तीन दिन भी नहीं बीते थे कि बजट सत्र की तरह इस सत्र को भी हंगामे की भेंट चढ़ाने की विपक्ष की तैयारी नज़र आने लगी।

चूंकि मोदी सरकार द्वारा पिछले कुछ समय में तीन तलाक, सूचना का अधिकार, ट्रांसजेंडर डिस्क्रिमिनेशन सहित कुछ अन्‍य अहम कानून पारित किए गए हैं, जिन पर इस सत्र में अहम चर्चा होनी है; लेकिन विपक्ष का सारा ज़ोर केवल व्‍यर्थ के शोरशराबे पर ही केंद्रित नजऱ आ रहा है। विपक्ष ने अपनी पतनशील मानसिकता का परिचय देते हुए सरकार के प्रति सीधे अविश्‍वास प्रस्‍ताव ही रख दिया जिसका गिरना लगभग तय था। शुक्रवार देर रात यह प्रस्‍ताव औंधे मुंह गिरा और मोदी सरकार फिर से बहुमत साबित कर बरकरार रही।

10 घंटे से अधिक अवधि तक चली मैराथन चर्चा के बाद अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर वोटिंग हुई। इसके बाद विपक्ष के प्रस्‍ताव के समर्थन में केवल 126 सांसद ही वोट कर पाए, शेष 325 सांसदों ने प्रस्‍ताव के विरुद्ध वोटिंग की और नतीजा प्रस्‍ताव के गिरने के रूप में सामने आया। कुल 451 सांसद इस कवायद में शामिल हुए।

विपक्ष के लिए यह ड्रामा ज़रूर महत्‍वपूर्ण कार्य रहा होगा लेकिन समग्र दृष्टि से देखा जाए तो यह केवल समय नष्‍ट करने का व्‍यर्थ काम था, जिसे करने में कांग्रेस आदि विपक्षी दलों को तनिक भी संकोच नहीं हुआ। दिन भर चले सियासी नाटकीय घटनाक्रम के बाद आखिर जीत लोकतंत्र की हुई और कांग्रेस अपना-सा मुंह लेकर रह गई।

अब सवाल यह उठता है कि इस प्रकार के ड्रामेबाजी करने की कांग्रेस को क्‍यों जरूरत आन पड़ी है जबकि उसे स्‍वयं अपनी स्थिति का भान है। कांग्रेस को पता है कि उसका वजूद धीरे-धीरे नष्‍ट होता जा रहा है। जनता का कांग्रेस से विश्‍वास उठता ही जा रहा है।

ऐसे में अपने वजूद को बचाने की नाकाम कोशिशों के चलते अविश्‍वास प्रस्‍ताव जैसे बचकाने विकल्‍प ही शेष बचे हैं। पार्टी अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने हमेशा की तरह अपने मानसिक दिवालियेपन का भरपूर प्रदर्शन किया और धीर-गंभीर सदन में छिछोरेपन और सतहीपन पर तक उतर आए।

देर शाम जब सभी की निगाहें स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की ओर थीं, तब विपक्षी खेमे में सन्‍नाटा था। कहीं ना कहीं, उन्‍हें भी आभास हो गया था कि प्रस्‍ताव की आड़ में वे जो अपना वैमनस्‍य प्रकट कर बैठे हैं, वह अब संसद के माध्‍यम से पूरे देश के समक्ष स्‍पष्‍ट तौर पर परिलक्षित हो गया है। प्रस्‍ताव लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन के पास सुरक्षित था। इस पर बोलने के लिए जब पीएम मोदी उठे तो विपक्षियों ने पृष्‍ठभूमि में अभद्रता की सीमाएं लांघते हुए बाधा डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

मोदी ने बोलना शुरू ही किया था कि पीछे से कांग्रेस के खेमे में से अभद्र सांसदगण व्‍यर्थ की हूटिंग में करने लगे। यह भी आश्‍चर्य है कि राहुल गांधी ने पीएम मोदी से कई सवाल तो पूछ डाले लेकिन जब मोदी जवाब देने को खड़े हुए तो शायद उनके उत्तरों से असुरक्षा बोध के कारण उनके बोलने में व्‍यवधान खड़े किए गए। यह बात अलग है कि मोदी ने इन‍ निरर्थक बातों की रंच मात्र भी परवाह नहीं की और एक बार बोलना शुरू किया तो धारदार लहजे में बोलते चले गए।

अपने डेढ़ घंटे के भाषण में वे धाराप्रवाह बोले और बारी-बारी से, क्रमवार, विपक्ष के एक-एक सवाल का पुरज़ोर जवाब दिया। उन्‍होंने ऐसा सटीक और ठोस जवाब दिया कि विपक्ष का मुंह ही बन गया। कांग्रेस की नफरत भरी राजनीति का स्‍तर देखकर उन्‍होंने चिंता जताते हुए कहा कि देश ने विपक्ष की नकारात्‍मकता देखी है। बिना बहुमत के अविश्‍वास प्रस्‍ताव लाने का असंगत काम भी देश ने पहली बार ही देखा है।

पीएम ने गिनाईं उपलब्धियां

राहुल गांधी ने जिस नाटकीय अंदाज में गले मिलने की नौटंकी की उस पर पीएम ने कहा कि उन्हें (राहुल को) प्रधानमंत्री बनने की इतनी जल्दी है कि सीट से उठाने आ गए, लेकिन इस सीट से उठाने एवं बैठाने का अधिकार तो केवल जनता के ही पास है। अपने जवाबी भाषण के आरंभ में पीएम ने गत चार वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किए गए कार्यों का संक्षिप्‍त में उल्‍लेख किया। इनमें जनधन खाते, मुद्रा योजना, ऑनलाइन सेवाओं, बिजली परियोजनाओं, शैक्षणिक योजनाओं आदि का विवरण शामिल था। मेक इन इंडिया का नारा देने वाले पीएम ने इस योजना से हुए लाभों के बारे में बताया। साथ ही जीएसटी से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को पहुंचे लाभ को बताया कि इसके चलते भारत अब विश्‍व की छठीं बड़ी इकोनॉमी वाला देश बन गया है।

अविश्‍वास पर विपक्ष को घेरा

बेनामी संपत्ति कानून की बात पर उन्‍होंने विपक्ष को आड़े हाथों लिया। उन्‍होंने पूछा कि आखिर इसका विरोध करके किन लोगों को बचाने की कोशिश चल रही थी। विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्‍वास प्रस्‍ताव की भी जमकर खबर लेते हुए पीएम ने कहा कि स्‍वयं पर जिन लोगों को विश्‍वास नहीं है, वे किसी भी अच्‍छे कार्य में विश्‍वास नहीं करते। यही कारण है कि वे ईवीएम, निर्वाचन आयोग, स्‍वच्‍छता अभियान और योग दिवस जैसे अभियानों एवं संस्‍थाओं पर भी अविश्‍वास ही प्रकट करते रहे हैं।

राहुल गांधी की समझ पर उठाए सवाल

डोकलाम जैसे संवेदनशील मसले पर बोलते हुए पीएम ने राहुल गांधी के सामान्‍य ज्ञान को ही कठघरे में ला खड़ा किया। उन्‍होंने कहा कि हमें जिस विषय की जानकारी नहीं हो, उस पर बोलने से बचना चाहिये और पहले उसे अच्‍छे से समझना चाहिये। आगे विस्‍तार से उन्‍होंने कहा कि जिस समय पूरा देश डोकलाम के मुद्दे पर एकमत था, तब कांग्रेस के तत्‍कालीन उपाध्‍यक्ष चीन के राजदूत से मुलाकात कर रहे थे। फिर इसे छुपाने की कोशिश भी की गई जब तक कि चीन की ओर से आधिकारिक प्रेस रिलीज ना आ गई और सार्वजनिक खुलासा न हो गया कि विपक्ष ने चीनी राजदूत से बात की थी।

कब तक यह बचकानापन चलेगा

राहुल गांधी की जमकर क्‍लास लगाते हुए पीएम ने कहा कि आखिर यह बचकानापन हर जगह दिखाना ज़रूरी है क्‍या। राफेल डील का संदर्भ देते हुए उन्‍होंने ऐसा कहा। उन्‍होंने कहा कि आंतरिक एवं राष्‍ट्रीय सुरक्षा के मसलों पर तो हमें गंभीर होना ही पड़ेगा और वहां राजनीति करने से बचना पड़ेगा।

‘जुमला स्‍ट्राइक’ पर नहीं करेगा देश माफ

अपने धारदार और तथ्‍यपूर्ण भाषण में पीएम मोदी ने विपक्ष को बुरी तरह घेरा। सर्जिकल स्‍ट्राइक पर सवाल उठाने पर उन्‍होंने विपक्ष को फटकार लगाई। वे बोले कि सर्जिकल स्‍ट्राइक को जुमला स्‍ट्राइक कहना वास्‍तव में सेना का ही अपमान है। ऐसा करने पर देश क्षमा नहीं करेगा।

कौन है चौकीदार और भागीदार

राहुल गांधी ने अपनी मानसिक अस्थिरता के चलते पीएम को देश का चौकीदार, भागीदार जैसी उपमाएं दी थीं, जिनकी पूरी व्‍याख्‍या करते हुए पीएम ने कहा कि हम देश के चौकीदार भी हैं, भागीदार भी हैं लेकिन सौदागर और ठेकेदार कतई नहीं हैं। कुछ लोगों ने इस देश को अपनी जागीर समझ लिया था, लेकिन आधिपत्य छिनने पर अब वे बौखला रहे हैं। । यह कांग्रेस परिवार है जिसने अपने निजी स्‍वार्थ की राह में लोकतंत्र को भी दांव पर लगा दिया।

राज्‍यों के गठन में सरकारों का अंतर

पीएम मोदी ने उदाहरण सहित बताया कि अटल जी की सरकार के समय उत्‍तराखंड, झारखंड और छत्‍तीसगढ़ राज्‍य गठित किए गए थे लेकिन इनका गठन बिना किसी शोरगुल, हिंसा, प्रदर्शन, झगड़े के हुआ और आज ये राज्‍य तेजी से प्रगति कर रहे हैं। इसके विपरीत कांग्रेस के शासन में बना तेलंगाना अराजकता की आग में झुलसता रहता है।

कुल मिलाकर पीएम के भाषण में विपक्ष, खासकर कांग्रेस के प्रति काफी आक्रामकता दिखाई दी। राहुल गांधी की नौटंकी, पीएम मोदी का तथ्यपूर्ण आक्रामक वक्तव्य और अंततः अविश्वास प्रस्ताव का गिरना, इन सब बातों से विपक्ष की जमकर फजीहत तो हुई ही, साथ ही अविश्वास प्रस्ताव पर आए मतदान के आंकड़ों ने विपक्ष की राजनीतिक एकता के खोखलेपन की पोल भी खोलकर रख दी। कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष ने सरकार को बैकफुट पर लाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का जो जाल बुना था, उसमें वो खुद ही फंसकर रह गया।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)