कोरोना संकट : ‘आज घर में रहना ही राष्ट्र सेवा और सावधानी ही दवा है’

देश में लाखों करोड़ों लोग विभिन्न प्रकार की सरकारी और प्राइवेट नौकरियों की तैयारी करते हैं और इस कारण अपने आपको कुछ दिनों तक अपनी किताबों में ही सीमित कर लेते हैं। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी भी सेमेस्टर सिस्टम की वजह से परीक्षाओं से 10 दिन पहले और परीक्षाओं के दौरान अपने आप को सब चीजों से दूर रखने की कोशिश करते हैं। बस इन सब में और आज की परिस्थिति में सबसे बड़ा फर्क यह है कि आज देश-दुनिया संकट में है और तब ऐसी कोई चुनौती सामने नहीं होती। लेकिन जरूरत है कि इस वातावरण में भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखा जाए।

आज 21वी सदी का अबतक का सबसे बड़ा संकट कोरोनावायरस – कोविड -19 हमारे सामने है। अपने आप को महाशक्ति कहने और कहलवाने वाले देशों ने भी अपने घुटने टेक दिए हैं। चीन के वुहान से निकला यह वायरस अब दुनिया भर को अपने चपेट में ले चुका है। अगर शुरू में ही चीन सच्चाई से नहीं भागता और सूचनाएं ना छुपाता तो शायद दुनिया आज इस वैश्विक महामारी से ना गुजरती।

सबसे बड़ी चुनौती है कि हमें ऐसे संकट का कोई अनुभव नहीं है, सब कुछ अनुमान पर ही चल रहा है। अब घर पर ही रहना राष्ट्र सेवा है और जब तक दवा नहीं बनती तब तक सावधानी ही दवा है। सोशल डिस्टेंसिंग ही अब रामबाण उपाय लगता है। लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग कुछ के लिए नई बात नहीं है।

देश में लाखों करोड़ों लोग विभिन्न प्रकार की सरकारी और प्राइवेट नौकरियों की तैयारी करते हैं और इस कारण अपने आपको कुछ दिनों तक अपनी किताबों में ही सीमित कर लेते हैं। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी भी सेमेस्टर सिस्टम की वजह से परीक्षाओं से 10 दिन पहले और परीक्षाओं के दौरान अपने आप को सब चीजों से दूर रखने की कोशिश करते हैं। बस इन सब में और आज की परिस्थिति में सबसे बड़ा फर्क यह है कि आज देश-दुनिया संकट में है और तब ऐसी कोई चुनौती सामने नहीं होती।

अब इस वातावरण में भी कुछ सकारात्मक देखें और घर में ही रहकर कुछ दिन अच्छा स्वाध्याय करें। हमे अपनी मर्जी की  पुस्तक पढ़ने का समय नहीं मिलता इसलिए अब इस समय का सदुपयोग करें। जब घर में रहना ही राष्ट्र सेवा बन गया हो तो राष्ट्र को स्वाधीन करवाने वालों काजीवन चरित्र पढ़ा जाए।

गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि “भारत को जानना हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए।” तो आइए स्वामी विवेकानंद को पढ़ते हैं। उनमें सब कुछ सकारात्मक है, कुछ भी नकारात्मक नहीं। महात्मा गांधी को पढ़ें, सुभाष चंद्र बोस, डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर, भगत सिंह और ऐसे बहुत सारे महापुरुषों को पढ़ें।

इंटरनेट का उपयोग करते हुए नई चीजें सीखें-भोजन बनाना सीखें, अपना वोकेबुलरी बढ़ाए। ‘वर्क फ्रोम होम’ जैसी नई कार्य शैली से कुछ लोग पहली बार परिचित हुए हैं, तो ऑफिस में आने-जाने वाले समय को हम परिवार के सदस्यों के साथ बात-चीत करके बिताए।

शारीरिक तनाव से दूर रहें और मानसिक तनाव को पास ना आने दें। और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमें खुद से यह बात पूछनी चाहिए कि क्या हमने अपने आप को इतना विकृत तो नहीं बना लिया है कि अपने साथ समय भी ना गुजार सकें। करने को बहुत कुछ है बस अपना-अपना नज़रिया है। साथ ही साथ राज्य और भारत सरकार की नवीनतम सूचनाओ से अवगत रहें, अफ़वाह ना फैलने दें और ना फैलाएं और सकारात्मक रहें।

(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में परास्नातक की डिग्री प्राप्त की और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से वैदिक संस्कृति में सीओपी कर रहे हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)