आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे 90 फीसदी यानी 43 करोड़ के आस-पास मजदूर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं जो कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और सरकार का इन वर्गों पर विशेष ध्यान है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को काफी दिक्कतों का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि कोरोना के प्रकोप के पहले इनसे सम्बंधित ठोस डेटा, कार्यक्षेत्र की जानकारी और नियामकीय ढांचा का अभाव था, जिसे अब सरकार ने युद्ध स्तर पर लगकर तैयार किया है। सरकार अब उन्हें उनके हुनर, दक्षता और जानकारी के आधार पर स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया करा रही है।
बीते दिनों रेल मंत्रालय द्वारा साझा किए गए डीडी न्यूज़ के एक वीडियो में मध्य प्रदेश के सतना जिले की एक रोचक घटना सामने आई। हुआ ये कि जिले की उचेहरा जनपद की ग्राम पंचायत जिगनहट के श्रमिक रोजी-रोटी कमाने की तलाश में महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व प्रदेश के अन्य जिलों में गए थे।
कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन होने पर गांव के करीब 87 श्रमिक वापस लौटे। इन्हीं श्रमिकों में से 12 श्रमिकों ने स्कूल में अपनी अनूठी कला का प्रदर्शन किया। श्रमिकों ने क्वारंटाइन अवधि के दौरान क्वारंटाइन सेंटर के रूप में विकसित शासकीय माध्यमिक शाला जिगनहट को वंदे भारत एक्सप्रेस का रूप दे दिया।
मध्य प्रदेश के सतना में घर लौटे प्रवासी श्रमिकों ने गांव के स्कूल की इमारत पर पेंटिंग से देश की आधुनिक ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस जैसा आकर्षक रूप प्रदान किया है।
इससे श्रमिकों को आर्थिक लाभ हुआ, वहीं उनके इस कार्य से विद्यार्थियों में स्कूल के प्रति आकर्षण भी बढ़ेगा। pic.twitter.com/NdYYJolJUx
— Ministry of Railways (@RailMinIndia) July 12, 2020
यह खबर देश भर में प्रेरणा का स्रोत बनी थी और यह साफ सन्देश गया कि हुनर और प्रतिभा के पलायन को रोक कर किसी भी क्षेत्र की बदतर स्थिति का कायाकल्प किया जा सकता है।
भारतीय रेलवे ने इसी से प्रेरणा लेते हुए तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए देश भर में प्रवासी मजदूरों को मनरेगा तथा गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत काम देना शुरू किया। इस अभियान के तहत रेलवे ने बिहार के खगड़िया, बेगूसराय, गया तथा मधुबनी में अनेक प्रोजेक्ट में काम दिया। भारतीय रेल ने मनरेगा योजना की मदद से मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में तथा दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने स्थानीय प्रशासन की मदद से बड़ी संख्या में रोजगार दिया है।
गौरतलब है कि रेलवे ने गरीब कल्याण रोजगार अभियान के तहत 160 प्रोजेक्टों में 9 लाख श्रम दिवस के बराबर रोजगार देने की एलान किया था जो बड़े स्तर पर प्रवासी मजदूरों के लिए राहत भर फैसला था।
भारतीय रेलवे ने एकबार फिर संकट की घड़ी में देश को संभाला। श्रमिकों की घर वापसी के साथ-साथ रेलवे ने अपने रेल डिब्बों को अस्थायी कोविड केअर कोच में तब्दील किया साथ ही मजदूरों को रोजगार प्रदान कर दुनिया मे अलग ही मिसाल कायम की।
यह सत्य है कि कोरोना महामारी के कारण देश के श्रमिक वर्ग को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा है और अप्रैल-मई माह के दौरान एक समय ऐसा लगने लगा था कि देश भर में शहरों से गांवों की तरफ प्रवासी मजदूरों के ‘रिवर्स माइग्रेशन’ से बेरोजगारी, खाद्यान्न समस्या, गरीबी और जीवन निर्वहन सम्बन्धी समस्याएं लंबे समय तक बनी रहेंगी और भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा।
लेकिन केंद्र सरकार ने उचित समय पर इस ‘आपदा को अवसर’ में बदलते हुए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ की शुरुआत की और साथ ही साथ श्रमिकों, गरीबों और वंचित समूहों के लिए ‘आर्थिक पैकेज’ में रोजगार, खाद्यान्न और आर्थिक सहायता सहित स्वास्थ्य सुविधाओं का भी एलान किया जिससे स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सका है।
संकट के बीच कल्याणकारी राज्य की भावना के अनुरूप तथा समतामूलक समाज की दृष्टि से सरकार ने जनता के ‘जीवन जीने के अधिकारों’ को भलीभांति पूरा करने हेतु सभी राज्यो के साथ मिलकर ‘सहकारी संघवाद’ का बेहतरीन उदाहरण पेश किया है।
हमारे देश की लाइफलाइन कहे जाने वाले श्रमिक वर्ग की श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से घर वापसी के बाद उन्हें डीबीटी के माध्यम से आर्थिक सहयोग, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से प्रत्येक महीने मुफ्त राशन तथा वन नेशन, वन राशन कार्ड की सुविधा, पीएम गरीब कल्याण रोजगार अभियान तथा मनरेगा में रोजगार सृजन, स्ट्रीट वेंडर्स के लिए लघु ऋण सुविधा तथा शहरों में श्रमिकों और निर्धनों को वहनीय किराए के आवासीय परिसर उपलब्ध कराने जैसी अनेक लोककल्याणकारी योजनाओं को लागू किया गया।
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इसके साथ-साथ विशाल मात्रा में श्रम शक्ति का उपयोग करने की योजना के साथ 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत पैकेज के माध्यम से देश को प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी बनाने के विजन की दिशा में बढ़ा जा रहा है।
लॉकडाउन के समय श्रमिकों के पलायन से उपज रही अनेक समस्याओं से निपटने का एक सबसे प्रभावी उपाय यही नजर आ रहा था कि बेहतर कार्ययोजना तैयार कर उन्हें अवसरों में बदला जाए और सरकार ने ऐसा ही किया।
दरअसल ग्रामीण भारत में छोटी जोत वाली कृषि, बढ़ती बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी आधारभूत सुविधाओं की कमी ही कमजोर तबके के लोगों को शहरों में संगठित और असंगठित क्षेत्रो में मेहनत-मजदूरी करने के लिए मजबूर करती है। यह सत्य है कि स्थानीय स्तर पर टिकाऊ और लाभप्रद रोजगार मिलने से ये पलायन की समस्या रुक सकती है और शहरों में बढ़ती जनसंख्या, अनियंत्रित-अनियोजित और निम्न स्तर के रहन-सहन में सुधार देखने को मिल सकता है।
आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत मे 90 फीसदी यानी 43 करोड़ के आस-पास मजदूर असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं जो कोरोना काल में सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और सरकार का इन्ही वर्गों पर ध्यान है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को काफी दिक्कतों का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि कोरोना के प्रकोप के पहले इनसे सम्बंधित ठोस डेटा, कार्यक्षेत्र की जानकारी और नियामकीय ढांचा का अभाव था, जिसे अब सरकार ने युद्ध स्तर पर लगकर तैयार किया है।
सरकार अब उन्हें उनके हुनर, दक्षता और जानकारी के आधार पर स्थानीय स्तर पर रोजगार मुहैया करा रही है। हिंदी पट्टी के राज्य जहां सबसे अधिक श्रमिकों का आगमन देखने को मिला है, वे इसे अपने लिए एक अवसर के रूप में देख रहे हैं।
इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, बड़े स्तर पर वापस लौटे श्रमिकों के हुनर को पहचान कर उन्हें रोजगार देने के प्रयास में अब तक 23 लाख से अधिक श्रमिकों की स्किल मैपिंग का काम पूरा कर चुकी है। इन्हें 94 कैटेगरी में मापा गया है तथा रोजगार के लिए एमएसएमई सेक्टर से जोड़ा जाएगा।
गौरतलब है कि सरकार अर्थव्यवस्था के रफ्तार देने के लिए एमएसएमई सेक्टर को बड़े आर्थिक पैकेज देकर प्रोत्साहन देने में लगी है। विपक्ष की तमाम आलोचनाओं के बावजूद सरकार कृषि सम्बन्धी क्षेत्रों में लघुकालीन तथा दीर्घकालिक योजनाएं बनाकर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन, सब्जी, बागवानी, मत्स्यपालन, औऱ मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित कर कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन दे रही है। इससे यह साफ सन्देश जाता है कि सरकार कृषि को लेकर ‘घाटे का सौदा’ सम्बंधित स्थापित धारणा को बदलना चाहती है।
सरकार कृषि और एमएसएमई सेक्टर को सस्ते ऋण उपलब्ध कराकर तथा तय एमएसपी पर फसल खरीद को प्रोत्साहित कर ग्रामीण क्षेत्रों में आय का जरिया सुनिश्चित कर अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने पर जोर दे रही है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसी कल्याणकारी और दूरदर्शी योजना के माध्यम से अनेक आधारभूत सुविधाओं के विकास तथा प्रत्येक उत्पादन क्षेत्र में देश को अग्रणी बनाने के साथ साथ नवाचारों औऱ प्रौद्योगिकी पर जोर देकर दुनिया में सप्लाई चेन के रूप में भारत को विकसित करने पर जोर दे रही है।
जाहिर हैं देश को सुदृढ़, आत्मनिर्भर बनाने तथा कोरोना काल के बाद अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए श्रमिकों के श्रम बल को बेहतर तरीके से उनके हुनर और कार्यकुशलता के अनुसार उपयोग करने की जरूरत है जिसमें राज्यों को केंद्र को पूर्णतः सहयोग देने की आवश्यकता है।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व युवा कौशल दिवस पर कौशल उन्नयन के लिए तीन मंत्र ‘स्किल, री-स्किल, अपस्किल’ देते हुए कहा कि कोविड-19 ने नौकरियों की प्रकृति को बदल दिया है और हमे समयानुसार परिवर्तित होना पड़ेगा।
हमे यह हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि भारत जैसे देश में आपदा की स्थिति में ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने ही देश को संभाला है और सरकार की योजनाएं भी ग्रामीण विकास पर केंद्रित हैं, ऐसे में वापस लौटे श्रमिको को स्थानीय स्तर पर उनके हुनर को पहचान कर रोजगार देने से देश के विकास में फैली असमानताओं को खत्म करने में मदद मिलेगी और सरकार भी इसी दिशा में बढ़ रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)