जनजातीय गौरव दिवस : जनजातीय नायकों के योगदान को सम्मान देने की पहल

गोंड शासकों ने मप्र के समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में शासन किया लेकिन यह बात शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में नहीं पढ़ाई गई। क्‍या कारण है कि बच्‍चे तो क्‍या, बहुधा वयस्कों को भी रानी कमलापति का नाम नहीं पता था। पूर्ववर्ती सरकारें अपने एक निश्चित एजेंडे पर काम करती रहीं और प्रांरभिक शिक्षा भी इससे अछूती नहीं रही। कांग्रेस को बताना चाहिए कि उसकी सरकार ने अपने शासन के दौरान आखिर क्‍यों जनजातीय वर्ग की गौरव गाथाओं को हमारे सामान्‍य ज्ञान का हिस्‍सा बनाने का प्रयास नहीं किया?

बीते दिनों हमने देश में एक नयी शुरुआत देखी। भारत सरकार ने जनजातीय समाज के लिए कुछ ऐसा किया कि अन्‍य सरकारों के लिए भी यह वर्षों तक प्रेरणा का काम करेगा। 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया और इसे एक विराट आयोजन का स्‍वरूप दिया। इसके पीछे मंशा यही थी कि जनजातीय समाज के योगदान को भुलाया ना जाए एवं उसका पूरा सम्‍मान किया जाए। इसीलिए इस आयोजन के नाम में गौरव शब्‍द का समावेश किया गया।

साभार : Wikipedia

भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर मध्‍य प्रदेश में बड़े पैमाने पर यह दिवस मनाया गया। मप्र की राजधानी भोपाल के जंबूरी मैदान पर हुए समारोह में स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोधी पधारे। मध्‍य प्रदेश में झाबुआ, डिंडौरी, अनूपपुर, मंडला, उमरिया, बड़वानी जैसे जिले आदिवासी आबादी वाले हैं। लेकिन यहां के लोगों के पास इनके पारंपरिक पर्वों के अलावा उत्‍सव का अन्‍य कोई अवसर नहीं होता। जब इन्‍हें सूचना लगी कि प्रधानमंत्री सहित प्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इनका सहर्ष अभिनंदन करने बुला रहे हैं तो ये सैकड़ों किलोमीटर दूर से आयोजन स्‍थल पर खिंचे चले आए।

भोपाल आने से पहले प्रधानमंत्री मोदी झारखंड में बिरसा मुंडा के सम्‍मान में एक कार्यक्रम करके ही आए थे। इससे कुछ ही दिन पहले केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बिरसा मुंडा जयंती मनाए जाने को लेकर सरकारी मुहर भी लगाई गई। भोपाल में हुए भव्‍य कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल के विश्‍व स्‍तरीय नवनिर्मित रेलवे स्‍टेशन का भी आधिकारिक शुभारंभ किया। इसे अभी तक हबीबगंज के नाम से जाना जाता था जो कि अब रानी कमलापति रेलवे स्‍टेशन हो गया है।

विपक्षी दलों के मन में यह सवाल उठ सकता है कि क्‍या सरकार जनजातीय वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसका जवाब है – नहीं। क्‍योंकि समाज के किसी भी वर्ग का उन्‍नयन करने के कार्य को कभी राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। इस समय ना तो झारखंड में चुनाव हैं और ना ही मध्‍य प्रदेश में। इसलिए इस प्रकार की अटकलें भी खारिज हो जाती हैं कि कहीं सरकार जनजातीय वर्ग का तुष्टिकरण तो नहीं कर रही।

जन जातीय वर्ग के लोगों का आजादी की लड़ाई के समय से योगदान रहा है। उनका भी एक समृद्ध इतिहास रहा है। उन्‍होंने समाज को बहुत कुछ दिया है। उनकी भी अपनी बलिदान गाथाएं हैं, गौरव गाथाएं हैं। ऐसे में यदि मौजूदा केंद्र सरकार इनकी सुध ले रही है तो यह कदम तो स्‍वागत योग्‍य है ही, साथ ही यह प्रश्न भी पैदा होता है कि देश में आजादी के बाद अधिकांश समय तक जो सरकारें रहीं, उन्‍होंने अब तक इस वर्ग के लिए क्‍या किया। कांग्रेस ने इतने वर्षों तक शासन किया पर जनजातियों के लिए कुछ भी नहीं किया। उनका कभी ध्यान भी नहीं रखा। जनजातीय लोगों को  समाज की मुख्‍य धारा से काटकर हाशिये पर रख दिया गया था।

इन्‍हें सम्‍मानित करने वाली मोदी सरकार का यह प्रयास स्‍तुत्‍य है। पूरा देश स्वाधीनता के 75वें वर्ष में प्रवेश होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अमृत महोत्सव पर देश के नायक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर देश के प्रधानमंत्री ने जनजातीय गौरव दिवस घोषित कर जनजातीय समाज के नायकों  को सम्मान दिया है। जो सम्मान स्वाधीनता के पश्चात मिल जाना था, वह अब देना पड़ रहा है क्योंकि कांग्रेस ने अपने शासन में यह नहीं किया। उसने सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करने का काम किया है।

भोपाल में जिन रानी कमलापति के नाम पर स्टेशन का नाम रखा गया है, आश्‍चर्य है कि उनके बारे में प्रदेश के ही लोग कुछ नहीं जानते थे। नामकरण के बाद लोगों ने जब जानकारी लेना शुरू की तो पता चला कि वे इस सूबे की अंतिम गोंड रानी थीं।

साभार : India TV

इतिहास में गोंडवाना राज्य को सही तरीके से नहीं पढ़ाया गया। 52 गढ़ों के गोंडवाना राज्य की राजधानी रामनगर में गोंडवाना का इतिहास रहा है। गोंडवाना का साग्राज्य विशाल क्षेत्र में फैला हुआ था। गोंड राजाओं ने गोंडवाना की जनता की सेवा की है। इतिहास में गोंडवाना राज्य को सही तरीके से नहीं पढ़ाया गया। अब मौजूदा सरकार यहां गोंडवाना के गौरवशाली इतिहास को वापस स्थापित करेगी, जिसे पूरी दुनिया जानेगी।

गोंड शासकों ने मप्र के समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में शासन किया लेकिन यह बात शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में भी नहीं पढ़ाई गई। क्‍या कारण है कि किसी भी बच्‍चे तो क्‍या, वयस्‍क को भी रानी कमलापति का नाम नहीं पता था। पूर्ववर्ती सरकारें अपने एक निश्चित एजेंडे पर काम करती रहीं और प्रांरभिक शिक्षा भी इससे अछूती नहीं रही। कांग्रेस को बताना चाहिए कि उसकी सरकार ने अपने शासन के दौरान आखिर क्‍यों जनजातीय वर्ग की गौरव गाथाओं को हमारे सामान्‍य ज्ञान का हिस्‍सा बनाने का प्रयास नहीं किया?

अब चूंकि इस सुधार का शंखनाद हो ही चुका है, ऐसे में मप्र के मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक कदम और बढ़ाते हुए वीर टंट्या भील के नाम पर पातालपानी रेलवे स्‍टेशन, इंदौर के भंवरकुंआ चौराहे सहित अन्‍य कई स्‍थानों का नामकरण किए जाने की घोषणा कर दी है। आगामी 4 दिसंबर को टंट्या भील के बलिदान दिवस के अवसर पर प्रदेश में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

इसके पहले मुख्यमंत्री शि‍वराज सिंह चौहान ने मंडला शहर के किला परिसर में राजा रघुनाथ शाह व शंकर शाह की प्रतिमा स्थापित करने के लिए भूमिपूजन भी किया। देर से ही सही, आखिर अब जनजातीय वर्ग की सुध लेना शुरू हुआ है और सार्वजनिक स्‍थानों के नामकरण से इनके प्रति आदरांजलि समर्पित करने का प्रयास होने लगा है।

भारत की स्वतंत्रता के लंबे आंदोलन में जनजातियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनजातीय वर्ग से आने वाले कई नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। निश्चित ही अब हमें भारत की आजादी के अमृत महोत्सव पर सभी अनसुने जननायकों को स्मरण करते हुए इनके महान संघर्ष की गाथा को युवा पीढ़ी के साथ साझा करना होगा।

इतिहास के पन्नों से गुम इन पराक्रमी नायकों के जीवन संघर्ष से देशवासियों को अवगत करना हमारा दायित्व है। भारत में प्राचीनकाल से ही लोकतांत्रिकता व्यवस्था स्थापित थी लेकिन अंग्रेजों की फूट डालो शासन करो नीति ने इसे नुकसान पहुंचाया।

स्वतंत्रता का आंदोलन कोई राजनैतिक आंदोलन नहीं बल्कि सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक आंदोलन था। अंग्रेजों की तमाम कोशिशों के बावजूद जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों पर सत्ता नहीं जम पाई। मुगल और अंग्रेजों ने हमारी संस्कृति, परंपरा, हमारे धर्म पर प्रहार कर इसे नष्ट करने का काम किया। लेकिन जनजातीय समाज ने डटकर मुकाबला किया और धर्म-संस्कृति का रक्षण किया।

यह समाज आदिकाल से सनातनी हिंदू संस्कृति, परंपरा का पालन करते आया है। जनजाति समाज एक स्वाभिमानी समाज है, यह समाज गरीब, शोषित, लाचार, पिछड़ा नहीं था। यह समाज देश का राजा हुआ करता था। रानी दुर्गावती, रानी कमलापति, राजा शंकर शाह, राजा रघुनाथ शाह ये सभी जनजातीय महापुरुष थे। ये राजा थे किंतु मुगल और अंग्रेज के आक्रमण काल में इन्‍हें लूटा गया और गरीब, पिछड़ा प्रस्तुत किया गया।

ये प्रकृति पूजक लोग रहे हैं। हम पेड़-पौधे, सूर्य, चंद्रमा, तारे, आकाश, जल, एवं धरती माता को पूजते हैं। इन सभी का पूजन केवल हिंदू समाज ही करता है। ईसाई, मुस्लिम व अन्य धर्म के लोग नहीं करते। इस महत्‍वपूर्ण वर्ग को समाज की मुख्‍य धारा से जोड़ने का शुभारंभ हो चुका है। जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन इस दिशा में मील का पत्‍थर साबित होगा।

कहा जा सकता है कि जनजातीय गौरव दिवस के रूप में सरकार ने वार्षिक कैलेंडर में एक महत्‍वपूर्ण दिन जोड़ दिया है। एक ऐसा दिन जो कहीं ना कहीं बरसों से छूट रहा था। बिरसा मुंडा, टंट्या भील, गुरु घासीदास जैसे जननायकों को दुर्भाग्‍यवश भुला बिसरा दिया गया था। अब समय आ गया है कि देश को इनसे परिचित कराया जाए और सरकार यही कर रही है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)