अपने नेताओं की भाषाई अभद्रता पर कांग्रेस आलाकमान के मौन का मतलब क्या है ?

ऐसा नहीं कह रहे कि मनीष तिवारी को पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने के लिए सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी ने कहा होगा, मगर उनके इस तरह के ट्विट पर यदि कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व मौन रहता है, तो सवाल उठना लाजमी है। क्या देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का यही भाषाई स्तर हो गया है ? कारण चाहें जो हो, पर कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कि ऐसी भाषा उसे सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही पहुंचाएगी।

इस हफ्ते कॉलम की शुरुआत एक सच्ची कहानी से करता हूँ। स्वामी विवेकानंद एक बार सत्संग में भगवान के नाम का महात्म्य बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने कहा “शब्दों में क्या रखा है, आप बार बार उन्हें रटने को  क्यों कहते हैं? इसका भला क्या फायदा?’’

स्वामी जी ने उस व्यक्ति की बात सुनी और अचानक ही उसे मूर्ख, गधा जैसे अपशब्द कहने लगे। व्यक्ति आगबबूला हो उठा और बोला, “आप जैसे सन्यासी के मुंह से ऐसे शब्द शोभा नहीं देते, मुझे बहुत पीड़ा पहुंची है।”

स्वामी जी ने शांत ढंग से जवाब दिया, ”भाई वे तो शब्द मात्र थे, शब्दों में क्या रखा है, मैंने कोई पत्थर तो मारा नहीं।”

व्यक्ति को सन्देश मिल चुका था। शब्द से ही प्रेम का संचार होता है और शब्द से क्रोध भी पैदा होता है; शब्द ही ब्रह्म है। हर एक शब्द जो आप लिखते हैं और बोलते हैं, उसकी अपनी मर्यादा है, अपना वजन है। खासकर जब आप राजनीति में हों तो आपको समझना होगा कि उस मर्यादा की सीमा क्या है। इस किस्से का मौजूदा संदर्भ राजनीतिक ही है।

एक कांग्रेस के सज्जन हैं, मनीष तिवारी, जो संप्रग सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री थे। बात-बात पर जुबानी तीर छोड़ते हैं, लेकिन तीर हमेशा गलत निशाने पर लगता है। बहुत लम्बे समय से सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन का मौका चुना अनर्गल ट्वीट करने के लिए।

मनीष तिवारी का ट्विट

इस ट्विट को लेकत सोशल मीडिया में जब काफी खिंचाई होने लगी तो माफ़ी मांग ली। मुद्दा यहाँ यह है कि देश के प्रधानमंत्री के जन्मदिन के मौके पर आप कुछ ऐसा लिखकर अपनी जगहंसाई क्यों कराते  हैं? अगर आपके लिए यह चर्चा में आने का नुस्खा है, तो आपको अपनी हालत पर चिंता करनी चाहिए।

ऐसा नहीं कह रहे कि मनीष तिवारी को पीएम मोदी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग करने के लिए सोनिया गाँधी या राहुल गाँधी ने कहा होगा, मगर उनके इस तरह के ट्विट पर यदि कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व मौन रहता है, तो सवाल उठना लाजमी है। क्या देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का यही भाषाई स्तर हो गया है ?

मनीष तिवारी ने इस तरह की अभद्रता पहली बार नहीं की है। आपको याद हो तो संप्रग-2 सरकार के दौरान जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन चल रहा था, तब मनीष तिवारी ने कहा था कि अन्ना हजारे ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। तब भी उनकी और कांग्रेस की भरपूर किरिकिरी हुई थी। अन्ना हजारे के खिलाफ दिए गए इस बयान के बाद मनीष तिवारी को नोटिस भेजा गया, उन्होंने माफ़ी भी मांग ली, लेकिन सालों की राजनीतिक कमाई पर बट्टा लगवा गए।

वैसे, मनीष तिवारी कांग्रेस के अकेले ऐसे नेता नहीं हैं जो असंसदीय भाषा का इस्तेमाल करने में अव्वल हैं। मध्य प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह इस विद्या में महारथ रखते हैं। बिना तथ्य के बयान देने के मामले में दिग्विजय सिंह ने तो रिकॉर्ड बना लिया है। आरोप लगाना और पीछे हट जाना इन नेताओं के डीएनए में शामिल है। दिग्विजय सिंह ने भी अभी कुछ समय पहले मनीष तिवारी की ही तरह प्रधानमंत्री के प्रति बेहद आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हुए ट्विट किया था, जिसके बाद उनकी और कांग्रेस की भरपूर फजीहत हुई।

आज दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी को अपने सियासी भविष्य की चिंता करनी चाहिए। हल्के बयान देने से आपको कुछ समय के लिए खबरों में जगह तो मिल सकती है, लेकिन इसके साथ ही जनता के बीच आपकी छवि गिरती जाएगी। सनद रहे, कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने ट्विटर का बेजा इस्तेमाल किया तो उनका क्या हाल हुआ था। उन्होंने अपनी किरकिरी तो करवाई ही थी साथ-साथ  कांग्रेस सरकार के लिए असहज स्थिति भी पैदा कर दी थी। कांग्रेस आलाकमान समय रहते अगर अपने इन छुट्टे नेताओं की लगाम कस लें तो बेहतर होगा, वर्ना ये पहले से बदहाल कांग्रेस की मुश्किलें अपने अनर्गल बयानों से और बढ़ाते जाएंगे।

यह समस्या सिर्फ राजनीति तक नहीं रही, पत्रकारिता भी इससे प्रभावित है। हिंदुस्तान की पूर्व संपादक और वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पाण्डेय ने भी ऐसे ही भाषाई अभद्रता की सब सीमाओं को पार करते हुए अपनी फजीहत अपनी लेखनी  से करवा ली। प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर उन्होंने बेहद आपत्तिजनक और निदंनीय ट्विट कर डाला जिसके बाद उनकी भरपूर फजीहत होने लगी तो शायद उन्होंने ट्विट को हटा दिया।

इस विवाद के बाद सोशल मीडिया पर मृणाल पांडे की खूब चर्चा रही, वरना अपनी लेखनी के जरिये तो वह कुछ ख़ास कमाल इन दिनों कर नहीं पा रही हैं। यह भी प्रसिद्ध है कि उनकी पत्रकारिता पर लाल रंग का प्रभाव अधिक है। लेकिन, सवाल उठता है कि जो लोग अक्सर सोशल मीडिया पर भाजपा समर्थकों द्वारा ट्रोल किए जाने का वायवीय आरोप लगाते हुए प्रलाप करते रहते हैं, वे मृणाल पाण्डेय की भाषाई अभद्रता पर कब खुलकर स्टैंड लेंगे ?

ट्विटर की एक खासियत है कि 140 शब्दों की सीमा में रहकर यह बेहद प्रभावी सन्देश भी देता है। यह आपकी शख्सियत का आइना भी है। सोशल मीडिया के ज़माने में शब्द अब पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं, इसकी सीमा को समझें और मर्यादा में रहें। हां, आपके ट्वीट से आपके विरोधियों को यह समझने का मौका मिल जाता है कि आप क्या मंसूबे बना रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)