आर्थिक सर्वेक्षण : अर्थव्यवस्था में राजनीति तलाश रहे विपक्षियों के लिए बुरी खबर

औपचारिक रोजगार में 30 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है और अगर जीएसटी के लिहाज से देखें तो इसमें 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई बीमारी है तो उसके लिए कड़वी गोलियाँ लेनी होंगी। अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास के लिए सरकार ने जो कदम उठाये हैं, उसके नतीजे अब मिलने शुरू हो गए हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, उसके पहले अर्थव्यवस्था का गति पकड़ लेना एक अच्छा संकेत है, लेकिन उन विपक्षियों के लिए यह बुरी खबर है, जो आर्थिक निर्णयों के प्रभावों में भी अपनी राजनीति तलाश रहे थे।

आर्थिक सर्वेक्षण एक महत्वपूर्ण आर्थिक दस्तावेज है, जिसके ज़रिये हमें पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था किस दिशा की तरफ और किस गति के साथ दौड़ रही है। चीफ इकनोमिक एडवाइजर डॉ अरविन्द सुब्रमण्यम ने वर्ष 2017-18 के लिए अपने सर्वे के द्वारा एक ऐसी तस्वीर पेश की है जो सुन्दर, बेहतर और उम्मीदों से लबरेज़ दिख रही है।

सर्वे में कहा गया है कि विकास दर आने वाले वित्तीय वर्ष में 7-7.5 % रहने की उम्मीद है। इस सर्वे से हमें कुछ संकेत साफ़-साफ़ मिल रहे हैं कि कृषि उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर है और सरकार कृषि क्षेत्र पर ज्यादा जोर देने का मन बना चुकी है। वहीं जीएसटी से उपजी आशंकाओं और सवालों पर फिलहाल विराम लग चुका है। सरकार चाहती है कि आने वाले दिनों में एयर इंडिया और सरकारी बैंकों के शक्लो-सूरत में आमूल-चूल बदलाव हो। साथ ही, सरकार ने निवेशकों के लिए भी मजबूत संकेत दिए हैं कि सेंसेक्स में जो उत्तरोत्तर वृद्धि अभी देखने को मिल रही है, यह आने वाले वर्षों में भी सतत जारी रहेगा।

मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविन्द सुब्रमण्यम ने पेश किया आर्थिक सर्वेक्षण

अगले साल होने वाले चुनाव से पहले यह सरकार का आखिरी पूर्ण बजट है, इससे पहले आर्थिक सर्वेक्षण यह इंगित कर रहा है कि आने वाले दिन चुनौती भरे हैं, लेकिन चुनौती लेने वालों को इनाम भी मिलेंगे। अच्छी खबर यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है तथा अगले कुछ सालों के पूर्वानुमान भी सकारात्मक ही हैं। हालांकि ग्रामीण भारत को भी नए भारत से जोड़ने की एक बड़ी चुनौती है, जिसको लेकर सरकार के प्रयास सही दिशा में दिख रहे हैं। ग्रामीण भारत का शहरी भारत से जुड़ाव होने पर देश का सही मायने में विकास हो सकेगा।

आर्थिक सर्वेक्षण की 10 मुख्य बातें

  • जीडीपी  2018-19 में 7-7.5% और 2017-18 में 6.75% रहने का अनुमान।
  • नोटबंदी से करदाता बढ़े, घरेलू बचत में भी तेजी।
  • विनिर्माण और निर्यात क्षेत्र पर अब भी दबाव।
  • कच्चे तेल की कीमतों में उछाल।
  • शेयर कीमतों में तेज गिरावट के जोखिम के प्रति सतर्कता की जरूरत।
  • खुदरा मुद्रास्फीति 2017-18 में औसतन 3.3 फीसदी।
  • कृषि क्षेत्र की मदद।
  • एयर इंडिया का निजीकरण और बैंकों में पूंजी डालना प्रमुख एजेंडा।
  • जीएसटी के आंकड़े के अनुसार अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या 50 फीसदी बढ़ी।
  • वैश्विक व्यापार में सुधार के साथ कारोबार मजबूत बने रहने की संभावना।

सरकार को उम्मीद है कि निजी निवेश से अर्थव्यवस्था गति पकड़ लेगी, साथ ही कर के मोर्चे पर राजस्व संग्रह के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे। विश्लेषकों का मानना है कि कृषि क्षेत्र के लिए सरकार महत्वपूर्व कदम उठा सकती है। जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि क्षेत्र के उत्पादन पर गंभीर असर पड़ रहा है, अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मध्य अवधि में कृषि आय में कमी के संकेत हैं।

औपचारिक रोजगार में 30 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है और अगर जीएसटी के लिहाज से देखें तो इसमें 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई बीमारी है तो उसके लिए कड़वी गोलियाँ लेनी होंगी। अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास के लिए सरकार ने जो कदम उठाये हैं, उसके नतीजे अब मिलने शुरू हो गए हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, उसके पहले अर्थव्यवस्था का गति पकड़ लेना एक अच्छा संकेत है, लेकिन उन विपक्षियों के लिए यह बुरी खबर है, जो आर्थिक निर्णयों के प्रभावों में भी अपनी राजनीति तलाश रहे थे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)