आतंकवाद के पनाहगार पाकिस्तान ने देखा छप्पन इंच की छाती का दम!

आतंकवाद को पनाह देने वाले देश पाकिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादियों को करारा जवाब देने के लिए मोदी सरकार ने आख़िरकार वह कदम भी उठा ही लिया, जिसकी नरम देश समझे जाने वाले भारत से शायद किसी को उम्मीद नहीं रही होगी। भारत ने पीओके में दो किलोमीटर अंदर तक घुसकर आतंकवादियों के सात लॉन्च पैड ध्वस्त कर दिए। इनमें 30 से अधिक आतंकवादियों के मारे जाने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि पाकिस्तान ऐसे किसी सर्जिकल स्ट्राइक से इनकार कर रहा है, लेकिन वह इनकार न करे तो क्या करे। बताया जा रहा है कि सबूत के लिए भारत ने ड्रोन कैमरे से समूची कार्रवाई की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की है।

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बहरहाल, जिस दिन मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी और शपथग्रहण समारोह में सार्क देशों के बहाने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को भी बुलाया था, उसी दिन हमें अंदाज़ा हो गया था कि मोदी के एजेंडे पर पाकिस्तान सबसे ऊपर रहने वाला है। मोदी सरकार पाकिस्तान के साथ दोस्ती के सारे प्रयोग कर लेना चाहती थी, ताकि विश्व-बिरादरी भारत पर यह आरोप न लगा सके कि उसने पाकिस्तान के साथ बातचीत के विकल्पों को नहीं टटोला। स्पष्टतः पाकिस्तान को लेकर मोदी “पहले बात और मुलाकात, ज़रूरी हुआ तो पदाघात” वाली कूटनीति पर चले। एक तरफ़ पाकिस्तान से दोस्ती के तमाम प्रयास। दूसरी तरफ़ आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर ज़ीरो टॉलरेंस नीति। विपक्ष की आलोचनाओं की परवाह नहीं करते हुए मोदी ने निजी स्तर पर पाकिस्तान से दोस्ती की तीन बड़ी पहल की- पहली कि अपने शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को बुलाया। दूसरी, रूस के ऊफा में नवाज़ शरीफ़ से पहल करके मिले और आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। तीसरी, अफगानिस्तान से लौटते समय अचानक लाहौर पहुंचकर नवाज़ शऱीफ़ की नातिन की शादी में शरीक में हुए।

ये तीनों प्रयास इस तरह से हुए, जिनका किसी को अंदाज़ा तक नहीं था। इसीलिए मोदी की काफी आलोचना भी हुई कि उनकी पाकिस्तान नीति में स्थिरता नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह मोदी द्वारा रचा गया एक ऐसा चक्रव्यूह था, जिसमें पाकिस्तान लगातार फंसता चला गया। उसने भारत के इन प्रयासों को उसकी कमज़ोरी समझा और लगातार गलतियां करता चला गया यानी दुनिया की नज़रों के सामने एक्सपोज़ होता चला गया। वह अपनी फितरत से मजबूर था और निश्चित रूप से मोदी भी इसे समझते थे। इसीलिए वह हर स्थिति के लिए तैयार थे और उनकी सरकार आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे पर एक बार भी नहीं डिगी।

जब दोनों देशों के बीच एनएसए स्तर की बातचीत होने वाली थी और पाकिस्तान ने हुर्रियत नेताओं से मिलने की शर्त रखी, लेकिन भारत ने इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान ने बातचीत तोड़ दी। पाकिस्तान में सार्क देशों के गृह मंत्रियों की बैठक में राजनाथ सिंह के साथ अच्छा सलूक नहीं हुआ, जिसके बाद राजनाथ सिंह ने करारा जवाब देते हुए वहां के गृह मंत्री द्वारा दी गई डिनर पार्टी का बहिष्कार करते हुए भारत लौट आए थे। कश्मीर में आतंकवादी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद जब पाकिस्तान की शह पर वहां लगातार पथराव की घटनाएं होने लगीं, तो भारत ने सख्त रुख अख्तियार किया और प्रदर्शनकारियों औऱ पाकिस्तान दोनों को कठोर संदेश देने की कोशिश की।

ज़ाहिर है कि मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति शुरू से ही स्पष्ट थी। उन्हें मालूम था कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। उन्हें यह भी पता था कि दोस्ती के प्रयास किए बिना पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आक्रामक रुख अख्तियार करने से दुनिया में गलत संदेश जा सकता है। इसलिए एक तरफ़ उन्होंने पाकिस्तान से दोस्ती के तमाम प्रयास करते हुए दुनिया में भारत की भलमनसाहत का प्रदर्शन किया। दूसरी तरफ, आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब करते हुए दुनिया को अपने साथ लिया। और पिछले कुछ महीनों में भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए कम से कम पांच ऐसे कदम उठाए, जिनसे उसे सही आईना दिखाने में सहूलियत होगी-

1: पहले साफ़ किया कि पाकिस्तान से कश्मीर पर नहीं, सिर्फ़ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर बात होगी।

2: फिर बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन का मुद्दा उठाया, जिसके बाद बलूच नेताओं और नागरिकों ने भारत का खुलकर अभिनंदन किया और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ दुनिया भर में प्रदर्शन किए।

3: फिर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को करारा जवाब दिया। आतंकवादी बुरहान वानी को यूथ लीडर बताकर नवाज़ शरीफ़ घिर चुके थे और दुनिया की नज़रों में गिर चुके थे। भारत द्वारा लगातार उठाया जा रहा बलूचिस्तान का मुद्दा भी आने वाले दिनों में पाकिस्तान की परेशानी का बड़ा सबब बनने वाला है।

4: फिर मोदी ने नवंबर में इस्लामाबाद में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार करने से पहले अन्य सार्क देशों को साथ लिया। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान ने भी भारत के सुर में सुर मिलाते हुए पाकिस्तान पर आतंकवाद को संरक्षण देने का आरोप लगाया। सार्क देशों के मौजूदा अध्यक्ष नेपाल ने भी भारत का साथ दिया। नतीजा यह हुआ कि सम्मेलन रद्द हो गया और पाकिस्तान की भारी किरकिरी हुई।

5: और अब पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक। यह एक ऐसा साहसिक कदम है, जिसकी भारत से दुनिया में शायद ही कोई उम्मीद करता था। और पाकिस्तान तो बिल्कुल भी नहीं। लेकिन अब मोदी ने बता दिया है कि यह तो बस शुरुआत है। अगर अब भी नहीं सुधरे तो और भी बहुत कुछ होगा।

समझा जा रहा है कि आने वाले दिनों में भारत पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा भी छीन लेगा। इसका मतलब ये हुआ कि भारत अब पाकिस्तान को व्यापार के मामले में सुप्रीम प्राथमिकता देने को तैयार नहीं है। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर कुछ हद तक तो चोट पड़ेगी ही। ऐसा कहा जा रहा है कि भारत सिंधु जल समझौता तोड़ने पर भी गंभीरता से विचार कर रहा है। हालांकि मेरी राय में यह उसी तरह आख़िरी कदम होना चाहिए, जैसे युद्ध आखिरी कदम होना चाहिए। भारत को अपनी मानवतावादी सोच कभी नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि इससे दुनिया में उसकी अच्छी छवि बनती है। पाकिस्तान एक आतंकवादी गतिविधियों को पनाह देने वाला देश है और आतंकवादियों से डील करते हुए हमें उसके स्तर तक गिरने की ज़रूरत न पड़े, तो बेहतर। उसे सबक सिखाने के लिए हमारे पास तमाम तरीके हैं।

 हां, भारत दुनिया में पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश के तौर पर प्रचारित करने का कोई मौका न छोड़े और सबसे पहले स्वयं उसे आतंकवादी देश घोषित करे। जब भारत ऐसा करेगा, तभी दूसरे देश इस दिशा में आगे बढ़ेगे। पाकिस्तान जैसे आतंकवादी देश को जवाब देने की ताकत या तो इंदिरा गांधी में थी, या फिर नरेंद्र मोदी में है।

लेखक पत्रकार हैं एवं ये उनके निजी विचार हैं।