राफेल सौदे का अंधविरोध राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति कांग्रेस की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करता है!

राफेल के सहारे देश में झूठ पर आधारित एक बहस पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके पीछे राहुल का प्रमुख उद्देश्य बेदाग़ ढंग से अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही मोदी सरकार को भ्रष्ट साबित करना है। वह किसी भी तरह से राफेल डील में घोटाला हुआ है, ऐसा माहौल बनाने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष इस बड़े भ्रम में हैं कि राफेल मुद्दे पर अनर्गल ढंग से मोदी सरकार को भ्रष्टाचारी कहना उन्हें 2019 की गद्दी दिला देगा। सवाल यह उठता है कि दशकों तक इस डील को अटकाए रहने वाली कांग्रेस कहीं अब अपने अंधविरोध के जरिये इसे रद्द तो नहीं कराना चाहती?

राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आ जाने के बाद से ऐसा माना जा रहा था कि विपक्ष को अब अपनी गलती का एहसास हो जाएगा और वह इस भ्रम को फ़ैलाने के लिए माफ़ी भले न मांगे, लेकिन कम से कम अब राफेल घोटाले का भूत कांग्रेस मुखिया के सर से जरूर उतर जाएगा। किन्तु ऐसा तब संभव होता जब विपक्ष राफेल पर तथ्यों के तहत बात कर रहा होता। एक–एक कर जिस ढ़ंग से इस मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा निर्मित रेत की दिवार गिरती गई है, देश के सामने यह रहस्य खुल चुका है कि राफेल मामले में राहुल गांधी के पास सिवाय झूठ के कुछ नहीं है।

सदन के अंदर अथवा सदन के बाहर कांग्रेस और लेफ्ट लिबरल गैंग के एक भी पत्रकार, वकील अथवा नेता इस मामले में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं, जिसके आधार पर जेपीसी की जांच की संभवना को बल मिल सके। दुर्भाग्य ये भी है कि लोग जिन वरिष्ठ वकीलों और बुद्धिजीवी लेखक, पत्रकारों को पढ़ा–लिखा और बौद्धिक समझते थे, राफेल प्रकरण के पश्चात् देश की जनता के सामने उन लोगों का भी असल चेहरा उजागर हो गया है। साफ़ हो गया है कि यह गैंग हर उस धारणा को हवा की तरह फैलाने में लगा हुआ है, जिसमें दस जनपथ और बारह तुगलक़ लेन का हित छुपा हुआ है।

सांकेतिक चित्र (साभार : राईटलॉग)

हालांकि ये कोई नई बात नहीं है, लेकिन जैसे–जैसे लोकसभा चुनाव करीब आते जाएगा, यह कबीला नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ़ झूठ का कारोबार और तेज़ी से फैलाता जाएगा, जिसका सबसे बड़ा उदारहण हमें राफेल प्रकरण पर देखने को मिल रहा है। गत बुधवार को संसद में राफेल पर तीखी बहस देखने को मिली जिसमें राहुल गाँधी पुनः राफेल पर पुरानी घिसी–पिटी बातें करते हुए नजर आए और जेपीसी जांच की मांग को दोहराई।

राहुल गांधी के सभी पैतरें जब फेल हो गये, ऐसे में वह सदन के अंदर नया शिगूफा गोवा के एक मंत्री का कथित ऑडियो लेकर पहुँचे। कांग्रेस अध्यक्ष ने उस ऑडियो टेप का हवाला देते हुए कहा कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने कैबिनेट बैठक में इस बात को कहा है कि उनके पास राफेल की फ़ाइलें हैं, जो उनके बेड रूम में हैं।

राहुल सदन में इस ऑडियो को चलाने की अनुमति मांगने लगे, लेकिन लोकसभा अध्यक्षा ने इसकी अनुमति नहीं प्रदान की। हंगामे के बीच जब सुमित्रा महाजन ने ऑडियो क्लिप की सत्यता को लेकर राहुल से लिखित पुष्टि मांगी तो राहुल ने अपने कदम पीछे कर लिए। सवाल उठता है कि राहुल को जब उस ऑडियो क्लिप पर इतना भरोसा था, तो उन्होंने लिखित तौर पर सदन में उसकी सत्यता की पुष्टि क्यों नहीं की? सवाल यह भी उठता है कि क्या राहुल सदन में जानबूझकर झूठ बोलने की तैयारी में थे?

उक्त ऑडियो को पर्रीकर ने भ्रामक तथ्यों को गढ़ने की एक हताश कोशिश बताया, तो वहीं मंत्री विश्वजीत राणे ने इस ऑडियो को अपने खिलाफ़ साजिश और फर्जी बताया तथा जाँच की मांग की। साथ ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राफेल मुद्दे पर कांग्रेस को निरुत्तर तो किया ही साथ में आरोपों को झूठ का पुलिंदा बताते हुए तथ्यों के साथ उसपर निशाना भी साधा। अरुण जेटली ने कांग्रेस को उसका इतिहास याद दिलाते हुए बोफ़ोर्स, अगस्ता के साथ नेशनल हेराल्ड का जिक्र करके कांग्रेस को असहज कर दिया।

विपक्ष के अड़ियल रवैये को देखकर यह साबित हो रहा है कि वह राफेल को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए मुख्य हथियार बनाने की जिद्द ठान कर बैठा है। राफेल के सहारे देश में झूठ पर आधारित एक बहस पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके पीछे राहुल का प्रमुख उद्देश्य बेदाग़ ढंग से अपना कार्यकाल पूरा करने जा रही मोदी सरकार को भ्रष्ट साबित करना है। वह किसी भी तरह से राफेल डील में घोटाला हुआ है, ऐसा माहौल बनाने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष इस बड़े भ्रम में हैं कि राफेल मुद्दे पर अनर्गल ढंग से मोदी सरकार को भ्रष्टाचारी कहना उन्हें 2019 की गद्दी दिला देगा।

वैसे कांग्रेस का इस तरह से राफेल विरोध उसकी मंशा पर गंभीर सवाल भी खड़े करता है। सवाल उठ रहा है कि दशकों तक इस डील को अटकाए रहने वाली कांग्रेस कहीं अब अपने अंधविरोध के जरिये इसे रद्द तो नहीं कराना चाहती? पिछले सत्र में जिस तरह से राहुल का झूठ संसद के अंदर पकड़ा गया और फ़्रांस सरकार ने राहुल की मनगढ़ंत बातों पर तीखी प्रतिक्रिया दी, तभी इस बात को मान लेना चाहिए था कि राफेल पर राहुल गाँधी के पास कोई ठोस आधार नहीं है बल्कि वह वायवीय धारणाओं के आधार पर मामले को खींचना चाहते हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)