आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रहा विपक्ष

देश में जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, तबसे वो आतंक के खिलाफ कठोर नीति के साथ काम कर रही है। लेकिन, यह भी एक सच्चाई है कि इस दौरान विपक्ष की तरफ से सरकार को कभी भी आतंकियों के विरुद्ध किसी कार्रवाई में समर्थन नहीं मिला। बल्कि, सेना के जवानों व पुलिसकर्मियों द्वारा जब भी कोई आतंकी मारा जा रहा है, तो इसपर देश का आम जनमानस जहां कार्रवाई का समर्थन कर जवानों का हौसला बढ़ाता नज़र आता है, तो वहीँ  कुछ कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी और कथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल प्रायः उस कार्रवाई में मीन-मेख निकालते हुए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों के पक्ष में कुतर्क करते प्रकट हो जाते हैं। ताज़ा भोपाल एनकाउंटर मामले पर गौर करें तो भोपाल जेल से फरार हुए सिमी के आतंकियों को जैसे ही पुलिस ने ढेर किया, उसके साथ ही कई राजनीतिक दल इस मुठभेड़ को फर्जी करार देने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करने में लग गए। इससे अधिक छिछली राजनीति और क्या हो सकती है कि समुदाय विशेष के तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों ने आतंकियों का हिमायती बनने में देरी नहीं लगाई। यहाँ ये भी उल्लेखनीय होगा कि इशरत जहां  से लगाएं दुनिया के कई खूंखार आतंकियो के लिए कांग्रेस कितना सम्मानजनक भाव रखती है। हाफ़िज़ सईद और ओसामा जैसे देश के दुश्मनों के प्रति सम्मानसूचक शब्दों का प्रयोग करने वाले दिग्विजय सिंह कांग्रेस के ही नेता हैं। आप संयोजक केजरीवाल भला पीछे कैसे रहते, उन्होंने भी झट जाने किस दिव्यदृष्टि से देखकर इस पूरे एनकाउंटर को फर्जी बता दिया। खैर, आतंक के विरुद्ध सरकार के कठोर और विपक्ष के गैर-जिम्मेदाराना रुख को भी देश की जनता देख ही रही है। लोग यह भी समझ रहे कि विपक्ष का यह रुख कैसे आतंक के खिलाफ देश की लड़ाई को कमजोर करने वाला है।   

देश में पहली बार कोई ऐसी सरकार आई है, जो आतंकवाद और उसको परिपोषित करने वालों के प्रति न केवल अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शाब्दिक रूप से बेधड़क होकर कठोर रुख प्रकट कर रही है, बल्कि व्यावहारिक कार्रवाइयों के जरिये उस रुख को धरातल पर भी प्रकट कर रही है। पीओके की सर्जिकल स्ट्राइक, घुसपैठ की कोशिशों का नाकाम होना, सीमा पर आए दिन आतंकियों का मारा जाना तथा अब ये भोपाल एनकाउंटर सरकार के इस रुख के जीवंत प्रमाण हैं। यह सब सिद्ध करता है कि भाजपा ने आतंकवाद के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की जिस नीति का वादा देश से किया है, उसपर उसकी सरकारें शत-प्रतिशत खरी उतरती नज़र आ रही हैं।

इसे क्रूर बिडम्बना ही कहेंगें कि मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले लोग फरार होते समय आतंकियों के हाथों शहीद हुए कांस्टेबल रमाशंकर यादव पर शोक जताने के लिए अभी तक दो शब्द भी नहीं बोल पाए हैं। यह इनकी मानसिकता और इनकी विचारधारा का ताज़ा उदाहरण है। खैर, कांग्रेस समेत इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले सेकुलर राजनीतिक दल  इस बात का जवाब दें कि उन्हें दुर्दांत आतंकियों से इतनी हमदर्दी क्यों है ? शहीद पुलिसकर्मी की शहादत उनके लिए कोई मायने रखती है कि नहीं रखती ? एक तरफ सीमा पर हमारे जवान जिन आतंकियों को रोकने के लिए सिर पर कफ़न बाँधे डंटे हुए हैं और अपनी जान पर खेलकर उनका लगातार सफाया भी कर रहे हैं, वहीँ दूसरी तरफ उन आतंकियों के लिए देश के कुछ तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दलों के नेता और बुद्धिजीवी विलाप कर रहे हैं, ये न केवल राष्ट्रीय अस्मिता के लिए शर्मनाक है बल्कि घातक भी है।

7-1477992341-114330-khaskhabar

देश की अंदर सिमी जैसे खतरनाक आतंकी संगठन के 8 आतंकी जो एक कांस्टेबल की ह्त्या करके जेल से फरार हो गए हों और फिर पुलिस पर फायरिंग भी किए हों, उन्हें जिंदा कैसे छोड़ा जा सकता था ? कहा जा रहा कि उनके पास हथियार कहाँ से आए ? अब सिमी कोई गली का संगठन तो है नहीं कि उसके आतंकी जेल से भागें और वो उनकी मदद को न आए। बल्कि बात तो इसपर भी होनी चाहिए कि कहीं सिमी ने ही उन्हें जेल से भगाने के लिए पूरी योजना बनाई हो और फिर जब वे निकल भागे तो उन्हें सुरक्षा के लिए हथियार आदि मुहैया कराए हों। यह भी कहा जा रहा कि वे गाँव में क्यों गए, भागना था तो बस अड्डे या स्टेशन वगैरह क्यों नहीं गए ? इसका साधारण-सा उत्तर है कि आतंकियों के भागते ही पूरे शहर में नाकाबंदी हो गई, ऐसे में आतंकी कैसे बस अड्डे चले जाते। ऐसे समय में उन्हें गाँव से सुरक्षित कोई स्थान नहीं लगा होगा, ये अलग बात है कि ग्रामीणों की सतर्कता और जागरूकता के कारण उनका मंसूबा पूरा न हो सका।  इसमें कोई दोराय नहीं कि जेल प्रशासन की चूक की वजह से यह शातिर आतंकी जेल से फरार होने में सफल हुए, लेकिन आखिर सरकार और पुलिस की तत्परता के कारण ही फरार होकर भी वो अधिक कुछ नुकसान नहीं पहुंचा सके और जल्दी-ही उनका काम तमाम हो गया। यह संतोष का विषय है। हाँ, रही बात फरार होने की तो एनआईए की जाँच का आदेश दिया जा चुका है, इसके बाद स्पष्ट हो जायेगा कि चूक कहाँ-कहाँ  हुई थी।

गौरतलब है कि यह आतंकी जेल से फरार होने में बाद किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी में थे, ऐसे में पुलिस ने इनके मंसूबो पर पानी फेर दिया। मुठभेड़ को फर्जी बता और आतंकियों के प्रति सहानुभूति जताकर राजनीतिक रोटी सेंकने की फ़िराक में जो राजनेता लगें हुए हैं, वह इस स्याह सच से मुंह क्यों फेर रहें है कि आतंकी खूंखार थे तथा कभी भी कोई बड़ी घटना को अंजाम दे सकते थे, फिर उसका जिम्मेदार कौन होता ? या अगर पुलिस उन्हें नहीं मारती और वे पुलिस के जवानों को मार देते तो क्या ये बहुत अच्छा होता ? इन सवालों पर सेकुलर जमात पूरी निर्लज्जता के साथ मौन साध लेती है।   

बहरहाल, आतंकियों को लेकर जिस प्रकार  कठोर रुख  सरकार ने अख्तियार किया है, वह काबिलेतारीफ है। किसी भी राज्य, देश की सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी होती है कि वहां की जनता को महफूज रखे, सुरक्षा के मसले पर कभी कोई हीला-हवाली न करे। शिवराज सरकार ने मजबूती के साथ इस जिम्मेदारी को निभाया है। हम इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगा सकतें है कि जब  २०१३ में खंडवा जेल से इन्हीं में से तीन आतंकी फरार हुए थे, तब लोगों में दहशत का माहौल था, किन्तु इसबार जैसे ही यह खबर आई कि आतंकियों को ढेर कर दिया गया है, लोग संतुष्ट और निश्चिन्त हुए। कहना गलत नहीं होगा कि देश में पहली बार कोई ऐसी सरकार आई है, जो आतंकवाद और उसको परिपोषित करने वालों के प्रति न केवल अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शाब्दिक रूप से बेधड़क होकर कठोर रुख प्रकट कर रही है, बल्कि व्यावहारिक कार्रवाइयों के जरिये उस रुख को धरातल पर भी प्रकट कर रही है। पीओके की सर्जिकल स्ट्राइक, घुसपैठ की कोशिशों का नाकाम होना, सीमा पर आए दिन आतंकियों का मारा जाना तथा अब ये भोपाल एनकाउंटर सरकार के इस रुख के जीवंत प्रमाण हैं। यह सब सिद्ध करता है कि भाजपा ने आतंकवाद के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की जिस नीति का वादा देश से किया है, उसपर उसकी सरकारें शत-प्रतिशत खरी उतरती नज़र आ रही हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये विचार उनके निजी हैं।)