नागरिकता संशोधन क़ानून के इस हिंसक विरोध का आधार क्या है?

शंकाओं के आधार पर यह आराजकता कहाँ तक जायज है? प्रदर्शनकारी गाँधी, अम्बेडकर, संविधान की दुहाई दे रहे हैं, किन्तु उनके विचारों को सुनने, समझने की शक्ति इनमें नही दिखती। गांधी की दुहाई देकर प्रदर्शन करने वाले लोग अहिंसा से परहेज़ कर रहे हैं और आम्बेडकर की दुहाई देने वाले कानून को अपने हाथ में लेकर संविधान का धज्जियां उड़ा रहे हैं।

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस विधेयक से हिंदुस्तान के किसी भी मुस्लिम को डरने की जरूरत नहीं है। वह (मुसलमान) नागरिक हैं और रहेंगे। इसके बाद भी देशभर में नागरिकता कानून के विरोध में  हिंसा फैलाने वाले लोगों की मंशा क्या है?

संसद के दोनों सदनों से पारित हुए इस विधेयक में कहीं भी कुछ ऐसा नहीं है जिससे भारतीय नागरिकों को डरने की आवश्यकता है, लेकिन जिस हिंसात्मक ढंग से विरोध हो रहा है उससे लगता है कि देशभर में अशांति का माहौल बनाने की साजिश रची जा रही है जिसकी पृष्ठभूमि का अनुमान सदन के अंदर और बाहर विपक्षी नेताओं के बयानों से लगाया जा सकता है।

यह विधेयक जब कानून का स्वरूप ले रहा था तभी से इसके विरोध में यह भ्रांति फैलाई गई कि यह विधेयक मुसलमानों के खिलाफ है। दुर्भाग्यपूर्ण यह भी है कि देश के कथित बौद्धिक गिरोह ने विपक्ष से दो कदम आगे बढ़कर इस अफवाह को फैलाने में दिलचस्पी दिखाई है। यह कानून तीन देशों से आए अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देगा, इसमें किसी के नागरिकता को खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है और न ही देश के मुसलमानों का इससे कोई संबध  है फिर इस विरोध का आधार क्या है?

शंकाओं के आधार पर यह आराजकता कहाँ तक जायज है? प्रदर्शनकारी गाँधी, अम्बेडकर, संविधान की दुहाई दे रहे हैं, किन्तु उनके विचारों को सुनने, समझने की शक्ति इनमें नही दिखती। गांधी की दुहाई देकर प्रदर्शन करने वाले लोग अहिंसा से परहेज़ कर रहे हैं और आम्बेडकर की दुहाई देने वाले कानून को अपने हाथ में लेकर संविधान का धज्जियां उड़ा रहे हैं।

प्रदर्शन, विरोध जब हिंसा की राह पकड़ता हुआ पत्थरबाज़ी पर आकर रुकता है, तब पुलिस मूकदर्शक बने तमाशा नहीं देख सकती। उसका काम है बिगड़े माहौल पर काबू पाना। जामिया हिंसा को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं, इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी काफी अहम हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट में जामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय में हिंसा पर सख्त टिप्पणी करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि ‘आप छात्र हैं इसलिए आपको हिंसा करने का अधिकार नहीं मिल जाता’ मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि अगर प्रदर्शन, हिंसा और सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुँचाया जाता है तो हम सुनवाई नहीं करेंगे।

बहरहाल, यह विरोध तब जायज रहता जब केवल किसी एक धर्म विशेष को सरकार नागरिकता देने का प्रावधान लाती, लेकिन इस विधेयक में तीनों मुस्लिम बहुसंख्यक देशों से अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जा रही है। चूंकि, देश के बौद्धिक गिरोह का सेकुलरिज्म केवल मुस्लिम समाज पर आकर सिमट जाता है, इसलिए वह बौखलाए हुए हैं।

नयी दिल्ली में प्रदर्शनकारियों द्वारा जलाई गई बस (साभार : Livemint)

इनकी बौखलाहट के पीछे पहले के मामलों की चिढ़ भी दिखाई दे रही है। मसलन तीन तलाक, अनुच्छेद 370 का हटना, राममंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आना। इन मामलों में वो कुछ खास कर नहीं पाए इसलिए वह सारा जहर इस कानून पर पूरी ताकत से उगलने का दुस्साहस कर रहे हैं। इसको प्रमाणित करने के लिए ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उनके सोशल मीडिया एकाउंट और उनके द्वारा संचालित एजेंडाधारी वेबसाइटों पर इसका मजमून आसानी से देखा जा सकता है।

विरोध प्रदर्शन के नाम पर क्या हो रहा है? यह भी देश देख रहा है। पश्चिम बंगाल में ममता सरकार की शह पर दंगाई भीड़ सड़को पर उतरकर उपद्रव कर रही है, ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया जा रहा है। इन प्रदर्शनकारियों की वजह से केवल दक्षिण-पूर्व रेलवे को 15,77,33,779 की क्षति पहुंची है। सैकड़ों ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है, दर्जनों ट्रेनों के रूट बदलने पड़े हैं। आखिर इस क्षति की भरपाई कौन करेगा? इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?

इसी तरह दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा किए जा रहे हिंसक प्रदर्शन में 4 डीटीसी बसों को जला दिया गया। 100 निजी बाहनों को क्षतिग्रस्त किया गया। इसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। अगर किसी को इस कानून से दिक्कत है और वो प्रदर्शन करना चाहता है तो संविधान के अनुरूप और गांधी के मार्ग पर ही करे, जिसकी दुहाई ये प्रदर्शनकारी  दे रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)