बी. एम. सिंह

भारत से युद्ध की हालत में नहीं है चीन, ऐसा किया तो ये उसकी बहुत बड़ी भूल होगी !

चीन में स्थिति ये है कि वहाँ कभी बेहद सस्ती रही श्रम शक्ति अब धीरे-धीरे बढ़ते बुढ़ापे के कारण महँगी होती जा रही है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है। भारत में अपने उत्पादों के लिए बढ़ती मुश्किलों और आंतरिक रूप से डांवाडोल हो रही अर्थव्यवस्था के कारण ऊपर से मजबूत और चमक-दमक वाला दिख रहा चीन अन्दर ही अन्दर आर्थिक रूप से काफी परेशान है। ऐसे

भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके हैं लालू यादव

लालू कोई गरीबों और मजलूमों की सामाजिक और आर्थिक तरक्की का धर्मयुद्ध नहीं लड़ रहे हैं। लालू का मकसद सिर्फ इतना है कि गैर कानूनी तौर पर इकठ्ठा किये हुए धन को कानून की नज़रों से कैसे छुपा लिया जाए। इस कारण जब से लालू यादव के परिवार के खिलाफ सीबीआई ने सख्ती बरती है, तो ध्यान भटकाने के उद्देश्य से लालू इसे सियासी रंजिश का नाम देकर बड़ा सियासी वितंडा

विपक्षी कब समझेंगे कि अंधविरोध की राजनीति के दिन अब लद चुके हैं !

2019 में होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की दीवार दरकती हुई नज़र आ रही है। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विरोधी जितने ज्यादा मुखर हुए हैं, बीजेपी के सितारे उतने ज्यादा प्रखर हुए हैं। अच्छी बात यह है कि भारत की जनता इस बात को अच्छी तरह समझ गई है कि केंद्र की एनडीए सरकार सियासी एजेंडे को केंद्र में रखकर अपनी योजनाएं नहीं बना रही है, बल्कि इसके पीछे लोक-कल्याण

स्वच्छ छवि, सुलझा व्यक्तित्व और समन्वयकारी दृष्टि है रामनाथ कोविंद की सबसे बड़ी पूँजी

आम तौर पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच मधुर सम्बन्ध नहीं रहते हैं, लेकिन कोविंद और नीतीश कुमार का रिश्ता मधुर रहा। यह कोविंद के समन्वयकारी और सुलझे हुए व्यक्तित्व को दिखाता है। बिहार के स्थानीय पत्रकार बताते भी हैं कि कोविंद समन्वयकारी नेता हैं और सबके साथ मिलकर काम करने की कला में महारत रखते हैं। ऐसे में इस प्रश्न का कोई तार्किक आधार नहीं रह जाता कि उनका

अमित शाह ने ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के जरिये कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी है !

अमित शाह के ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके

नीतीश कुमार ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था का मखौल बना दिया है !

बिहार में शिक्षा की किस कदर दुर्गति हुई है, इसका प्रमाण हमें पिछले दो साल के टॉपर ही दे देते हैं। गणेश कुमार और रूबी राय। दो नाम ही काफी हैं, शैक्षणिक व्यवस्था के क्रमिक विनाश को समझने के लिए। 2015 में बिहार में बारहवीं की परीक्षा में 75 फीसद छात्र पास हुए, वहीं 2017 में सिर्फ 36 फीसद छात्र ही उत्तीर्ण हुए यानि 64 प्रतिशत छात्र फेल हो गए। दो वर्षों के नतीजों के बीच आया ये बड़ा अंतर चौंकाता है।

सौ दिन भी नहीं हुए पंजाब में कांग्रेस सरकार को बने और भ्रष्टाचार के गुल खिलने लगे !

पंजाब में सत्ता प्राप्त होते ही कांग्रेस अपने पुराने रंग-ढंग में ढलती हुई नज़र आ रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उम्मीद की जा रही थी कि वे वाकई पंजाब में कुछ अलग करेंगे। लेकिन, अब कुछ महीनों के अन्दर ही कैप्टन सरकार में भ्रष्टाचार के गुल खिलने शुरू हो गए हैं।

जीएसटी से महंगाई बढ़ने के विपक्षी दावे का निकला दम, सस्ती होंगी ज्यादातर चीजें

देश एक है, तो अब कर भी एक ही चुकाना होगा। एकल टैक्स लगाने की मांग कई सालों से चल रही थी। एनडीए सरकार ने अपने तीसरे वर्षगाँठ पर जीएसटी के ज़रिये अर्थव्यवस्था में ऊष्मा भरने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। जीएसटी काउंसिल ने 1200 से ज्यादा वस्तुओं और सेवाओं के लिए 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत, टैक्स के ये चार स्लैब तय किए हैं। संघीय ढांचे को मजबूत करने की दिशा में भी यह महत्वपूर्ण घटना है।

कपिल मिश्रा के आरोपों के आगे निरुत्तर नज़र आ रही आम आदमी पार्टी

क्या अरविन्द केजरीवाल कपिल मिश्रा के आरोपों को केवल इसलिए दरकिनार कर सकते हैं, क्योंकि वह कभी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जुड़े हुए थे ? राजनीति में कोई भी संशय से परे नहीं होता, केजरीवाल भी नहीं। भारत में अगर कोई नेता इस यथार्थ को झुठलाकर भोली-भाली जनता को चकमा देने की कोशिश करे तो जनता उसे नकार देती है। दिल्ली की जनता कुछ समय के लिए मोहपाश में बंध गई थी।

सत्ता के लोभ में लालू के जंगलराज को शह दे रहे नीतीश

जेल के अन्दर की दुनिया उतनी अँधेरी और मनहूस नहीं होती बशर्ते कि आपके पास पैसा हो, रसूख हो और बाहर आपका गॉडफादर बैठा हो। सियासत और अपराध का ऐसा घालमेल हमें बिहार से अच्छा सिर्फ फिल्मों में ही देखने को मिल सकता है, जहाँ जेल का बड़ा अधिकारी, पुलिस अफसर, माफिया डॉन और नेता मिलकर अपना एकछत्र साम्राज्य चलाते हैं।