निखिल यादव

स्वामी विवेकानंद का विश्व बंधुत्व का संदेश

जब स्वामी विवेकानंद स्वागत का उत्तर देने के लिए खड़े होते हैं और “अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयों” से अपना वक्तव्य शुरू करते हैं और सामने बैठे विश्वभर से आये हुए लगभग 7 हज़ार लोग दो मिनट से ज्यादा समय तक तालियाँ बजाते रहते हैं।

जी-20 देशों में स्वामी विवेकानंद के पदचिन्ह

विश्व बंधुत्व एवं वेदांत के प्राचीन संदेश को लेकर ही आज से लगभग 128 वर्ष पहले (1893) स्वामी विवेकानंद पश्चिम के प्रवास पर गए थे।

जयंती विशेष : अमृत काल में प्रेरणास्त्रोत के रूप में स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता

1887 में एक परिव्राजक संन्यासी के रूप में जब स्वामी विवेकानंद भारत भ्रमण पर निकले तो उन्होंने आने वाले पांच वर्षों  तक भारत को बहुत निकटता से देखा। उनको यह स्पष्ट आभास हुआ

भगिनी निवेदिता : ‘वह भारत में भले न पैदा हुई हों, लेकिन भारत के लिए पैदा हुई थीं’

भगिनी निवेदिता ने सेवा का कार्य निस्वार्थ भाव से किया,  ना कोई इच्छा-अनिच्छा, ना कोई धर्मांतरण का छलावा, वह भारत में आकर भारतीयता के रंग में रंग ही गईं।

भगिनी निवेदिता : मार्गरेट नोबल से निवेदिता तक की यात्रा

स्वामीजी द्वारा बताई गयी सब चुनौतियों को स्वीकार करते हुए मार्गरेट नोबेल 28 जनवरी,1898 को अपना परिवार, देश, नाम, यश छोड़कर भारत आती हैंI

स्वामी विवेकानंद के विश्व बंधुत्व के संदेश की वर्तमान प्रासंगिकता

स्वामी जी का विश्व बंधुत्व का सन्देश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह मनुष्यों में किसी भी आधार पर भेद नहीं करता। वह समस्त मानवता को एक सूत्र में पिरोता है।

स्वामी विवेकानंद के ‘विश्व-बंधुत्व’ के संदेश की प्रासंगिकता

आज हमें स्वामी विवेकानंद के 128 वर्ष पूर्व दिए उस सन्देश को याद करने की आवश्यकता है जो संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की शिक्षा देता है।

योग : भारत की सपूर्ण विश्व के लिए सौगात

योग में निहित आसन और प्राणायाम हमे दैनिक जीवन में रोग से मुक्त तो रखते ही हैं, लेकिन योग मात्र आसन, प्राणायाम और मुद्राएं ही नहीं बल्कि योग जीवन जीने की पद्धति है।

महात्मा गांधी ने लिखा है कि स्वामीजी के कार्यों को पढ़कर उनकी देशभक्ति हजार गुणा बढ़ गई!

स्वामी विवेकानंद का प्रभाव अनेक ऐसे नेताओं पर रहा जिनकी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय सहभागिता रही। भले वह उनके जीवन काल के दौरान हो या बाद में।

‘विवेकानंद का संदेश आधुनिक मानवता का संदेश था’

विश्व धर्म महासभा की सफलता के बाद जब स्वामी जी के चित्र तिलक जी ने समाचार पत्रों में देखे तो उनको याद आया कि यह वही संन्यासी हैं, जिन्होंने उनके घर पर कुछ दिन तक निवास किया था।