समाज-संस्कृति

हिमालय की गोद में हो रहे इस अनूठे प्रयास को जानते हैं आप ?

हिमालय युगों-युगों से सम्पूर्ण मानव जाति की ऊर्जा और प्रेरणा का स्त्रोत रहा है। पौराणिक काल से ही ये हमारे ऋषि मुनियों से लेकर देवी-देवताओं तक की हृदय स्थली रहा है।

नवसंवत्सर विशेष : विक्रम संवत जिसकी वैज्ञानिकता आधुनिक विज्ञान से कहीं आगे है

जो सभ्यता अपने इतिहास पर गर्व करती है, अपनी संस्कृति को सहेज कर रखती है और अपनी परंपराओं का श्रद्धा से पालन करके पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाती है वो गुज़रते वक्त के साथ बिखरती नहीं बल्कि और ज्यादा निखरती जाती है। जब चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा के सूर्योदय के साथ सम्पूर्ण भारत के घर घर में लोग अपने इष्टदेवी देवता का अपनी अपनी परंपरा अनुसार पूजन

गणतंत्र दिवस: भारतीय संविधान में मौजूद राम-कृष्ण के चित्रों के बारे में कितना जानते हैं आप?

भारत की स्वतंत्रता और संविधान निर्माण को अलग करके नहीं देखा जा सकता। दोनों भारत के गौरवशाली अवसर हैं। इससे हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए। यह तो आप जानते हैं कि आज की तारीख को ही 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ था, लेकिन क्या आपको मालूम है कि मूल संविधान में अनेक चित्र थे। इनका निर्माण नन्दलाल बोस ने किया था। यह हमारे गौरवशाली अतीत की झलक देने वाले थे। गणतंत्र दिवस पर इनकी भी चर्चा होनी चाहिए।

आदि से अंत तक प्रकृति-प्रेम की भावना से पुष्ट लोकपर्व है छठ

भारत पर्वों का देश है। यहाँ एक पर्व बीतता नहीं कि अगला हाजिर हो जाता है। भारतीय पर्वों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे किसी न किसी आस्था से प्रेरित होते हैं। अधिकाधिक पर्व अपने साथ किसी न किसी व्रत अथवा पूजा का संयोजन किए हुए हैं। ऐसे ही पर्वों की कड़ी में पूर्वी भारत में सुप्रसिद्ध छठ पूजा का नाम भी प्रमुख रूप से आता है।

जयंती विशेष : दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की प्रासंगिकता

दीनदयाल उपाध्याय राजनेता के साथ-साथ उच्च कोटि के चिंतक, विचारक और लेखक भी थे। इस रूप में उन्होंने श्रेष्ठ, शक्तिशाली और संतुलित रूप में विकसित राष्ट्र की कल्पना की थी। उन्होंने निजी हित व सुख सुविधाओं का त्याग कर अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। यही बात उन्हें महान बनाती है

‘नारी की गरिमा पुरुष के मुकाबले में खड़े होने में नहीं, उसके बराबर खड़े होने में है’

नारी, ईश्वर की वो रचना जिसे उसने सृजन की शक्ति दी है; ईश्वर की वो कल्पना जिसमें प्रेम, त्याग, सहनशीलता, सेवा और करुणा जैसे भावों  से भरा ह्रदय  है। जो  शरीर से भले ही कोमल हो लेकिन इरादों से फौलाद है। जो अपने जीवन में अनेक किरदारों को सफलतापूर्वक जीती है। वो माँ के रूप में पूजनीय  है, बहन के रूप में सबसे खूबसूरत दोस्त  है, बेटी के रूप में घर

पितृ दिवस : पिता तो आज भी पहले जैसे ही हैं, पर पुत्र बदलते जा रहे!

‘पिता’ शब्द् संतान के लिए सुरक्षा-कवच है। पिता एक छत है, जिसके आश्रय में संतान विपत्ति के झंझावातों से स्वयं को सुरक्षित पाती है। पिता संतान के जन्म का कारण तो है ही, साथ ही उसके पालन-पोषण और संरक्षण का भी पर्याय है। पिता आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति की गारंटी है। पिता शिशु के लिए उल्लास है; किशोर और तरुण के लिए सर्वोत्तम प्रेरक एवं पथ-

जीवन के वांग्मय का सबसे प्यारा शब्द है ‘माँ’

भारतीय वाड्मय में माता का अभिप्राय और स्वरूप अत्यंत विशद है । शब्दकोशों के अनुसार माता स्त्रीलिंग संज्ञा शब्द है। यह ऐसा संबोधन सूचक पद है जिसमें आदर और श्रद्धा का भाव स्वतः समाहित है। नारियों के लिए संबोधन सूचक अन्य शब्दों में वह गरिमा नहीं मिलती जो माता शब्द में है। इसीलिए भारतीय मन

विवेकानंद शिला स्मारक : ऐसा स्मारक जिसके निर्माण ने विभिन्न विचारधाराओं को एक कर दिया

देश-विदेश में हजारों स्मारकों का निर्माण हुआ है लेकिन शायद ही कोई ऐसा स्मारक हो जो जीवित हो। 1970 में राष्ट्र को समर्पित किया गया “विवेकानंद शिला स्मारक” एक ऐसा  स्मारक है जो आज भी विवेकानंद जी के विचारों को जीवंत बनाए हुए है। 25, 26, 27 दिसंबर 1892 को स्वामी विवेकानंद ने भारत के अंतिम छोर कन्याकुमारी में स्थित शिला पर साधना करने के बाद भारत के

सामान्य भारतीय जन के प्रतीक हैं भगवान शिव !

त्याग और तपस्या के प्रतिरुप भगवान शिव लोक-कल्याण के अधिष्ठाता देवता हैं। वे संसार की समस्त विलासिताओं और ऐश्वर्य प्रदर्शन की प्रवृत्तियों से दूर हैं। सर्वशक्ति सम्पन्न होकर भी अहंकार से मुक्त रह पाने का आत्मसंयम उन्हें देवाधिदेव महादेव का पद प्रदान करता है। शास्त्रों में शिव को तमोगुण का देवता कहा गया है, किन्तु उनका पुराण-वर्णित कृतित्व उन्हें सतोगुणी और कल्याणकारी देवता के रूप में प्रतिष्ठित करता है।