यूपी चुनाव

यूपी चुनाव : राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुंचाने वाली राजनीति कर रहे सपा-कांग्रेस

आज सम्पूर्ण भारतवर्ष ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं संवैधानिक दृष्टि से एक है। हमारा संविधान ‘हम भारत के लोग…..’ से शुरू होकर हमारी एकता को रेखांकित करता है। संवैधानिक स्तर पर भारत का कोई भी नागरिक अपने मूल निवास स्थान के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी चुनाव लड़ने के लिए अधिकृत है। यह हमारी एकता का भी प्रमाण है। इसी आधार पर आज गुजराती मूल के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी

अखिलेश सरकार के विकास के दावों की पोल खोलते आंकड़े

उत्तर प्रदेश चुनाव में सत्तारूढ़ सपा के सर्वेसर्वा अखिलेश यादव ‘काम बोलता है’ का नारा लगाते हुए राज्य में अपने कथित विकास की ढोल पीट रहे हैं, लेकिन जब हम राज्य के विकास से सम्बंधित आंकड़ो पर नज़र डालते हैं, तो दूसरी ही तस्वीर सामने आती है। यूपी विकास केंद्रित मापदंडो पर बेहद पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। गौरतलब है कि सन 2012 जब प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनी, तबसे लेकर

सिद्धांतों और विचारधारा से हीन अवसरवादी राजनीति का उदाहरण है सपा-कांग्रेस का गठबंधन

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए मतदान शुरू हो चुका है। गोवा और पंजाब की सभी सीटों पर मतदान होने के बाद अब आगामी ११ फ़रवरी को यूपी में प्रथम चरण का मतदान होने जा रहा। इसके मद्देनजर हमारे राजनेता अपनी राजनीतिक बिसात बिछाकर प्रचार–प्रसार करने में लगे हैं। यूपी में अगर सभी दलों के प्रचार पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि बीजेपी को छोड़ अधिकांश दल सिर्फ सियासी

यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से सहमें सपा-कांग्रेस हुए एक, बसपा की हालत भी पस्त

भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश का चुनाव एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। यद्यपि मोदी सरकार के आने के बाद छात्रसंघ चुनावों से लेकर निगम/पंचायत चुनावों तक भी मोदी लहर को पढ़ने की कोशिश राजनीतिक विश्लेषक करते रहे हैं, परंतु वास्तविकता में उत्तर प्रदेश चुनाव को मोदी समेत पूरी भाजपा भी बेहद गंभीरता से ले रही है, वहीं मोदी-विरोधी संपूर्ण तबका इस बार भी बिहार जैसे परिणामों की

यूपी की बदहाली का जवाब दें सपा, बसपा और कांग्रेस

चुनावी घोषणा पत्र, ये तीन शब्द अपना अर्थ लगभग खो चुके हैं और इसका इस्तेमाल उन वादों के लिए किया जाने लगा है जो या तो पूरे नहीं हो पाते थे या फिर उनके पूरे होने का ख्वाब दिखाकर राजनीतिक अपना उल्लू सीधा करते रहते थे । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र जारी किया, जिसमें चुनाव के बाद जनता के सामने उतर प्रदेश को लेकर अपने विज़न को

उत्तर प्रदेश की बदहाली के लिए जवाबदेही किसकी ?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सपा-कांग्रेस गठबंधन ने अपना घोषणा पत्र तो भाजपा ने अपना संकल्प पत्र जनता के बीच रख दिया है। बहुजन समाज पार्टी ने बिना किसी घोषणा पत्र के चुनाव में उतरने का फैसला किया है। पिछले कुछ कालखंडों में घोषणा पत्रों को लेकर आम जनता के मन में एक स्वाभाविक धारणा विकसित हुई है कि यह चुनावी वायदों का एक ऐसा कागजी दस्तावेज होता है जो राजनीतिक दलों

‘सबका साथ-सबका विकास’ के एजेंडे को प्रतिबिंबित करता भाजपा का संकल्प-पत्र

उत्तर प्रदेश सूबे के चुनावी समर में प्रवेश के साथ भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प-पत्र में सामाजिक समरसता और सूबे के पिछड़ेपन पर वार करने का एजेंडा जारी किया है, जो अन्य राजनीतिक दलों से अलग रूपरेखा में प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ मुस्लिम महिलाओं की बद्तर स्थिति में सुधारात्मक दृष्टि से प्रयास करने

भाजपा के भय का परिणाम है कांग्रेस-सपा का गठबंधन

उत्तर प्रदेश के रण में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन का चुनावी रथ तैयार हो चुका है। कल तक जो सपा और कांग्रेस इस चुनावी रण में एक दूसरे का विरोध कर रही थीं, आज हाथ मिलाकर भाईचारे का संदेश दे रही हैं। कितना विचित्र है न कि आज जो राहुल गांधी अखिलेश यादव को भाई बता रहे हैं, उन्हीं राहुल गांधी ने ‘27 साल, यूपी बेहाल’ का नारा देकर सपा के खिलाफ चुनावी बिगुल फूंका था। लेकिन, अब

यूपी चुनाव : अपराधियों का हाथ, मायावती के साथ

किसी जमाने में यूपी में बहुजन समाज पार्टी का नारा गूंजता था – चढ़ गुंडों की छाती पर, बटन दबेगा हाथी पर । वहीं बीएसपी अब अपने इस नारे को भूल गई है । बीएसपी ने हाल ही में जेल में बंद माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में परिवार समेत शामिल कर अपने इस नारे को ना केवल भुला दिया बल्कि मायावती ने अपने शासनकाल के दौरान वर्तमान की अपेक्षा बेहतर कानून व्यवस्था की अतीतजीविता को

अखिलेश सरकार की नाकामियों को ही दर्शाता है सपा का चुनावी घोषणापत्र

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को विधानसभा चुनाव के लिए सपा का घोषणापत्र जारी कर दिया। घोषणापत्र में हर वर्ग को लुभाने की कोशिश की गई है। गांव, गरीब, किसानों, महिलाओं व युवाओं को लुभाकर सत्ता में वापसी का ख्वाब संजोया गया है। गौर करें तो घोषणापत्र में जनहित की दूरगामी सोच से प्रेरित और रचनात्मक योजनाओं की बजाय लोकलुभावन वादों