एनडीटीवी

‘सरकार की आलोचना के अन्धोत्साह में राष्ट्र की आलोचना पर उतर पड़ने की प्रवृत्ति ठीक नहीं’

समाचार माध्यमों को न तो किसी विचारधारा के प्रति अंधभक्त होना चाहिए और न ही अंध विरोधी। हालांकि यह भी सर्वमान्य तर्क है कि तटस्थता सिर्फ सिद्धांत ही है। निष्पक्ष रहना संभव नहीं है। हालांकि भारत में पत्रकारिता का एक सुदीर्घ सुनहरा इतिहास रहा है, जिसके अनेक पन्नों पर दर्ज है कि पत्रकारिता पक्षधरिता नहीं है। निष्पक्ष पत्रकारिता संभव है। कलम का जनता के पक्ष में चलना ही उसकी सार्थकता है। बहरहाल, यदि किसी

एनडीटीवी प्रकरण : सरकार के खिलाफ खूब बोलने के बाद कहते हैं कि सरकार बोलने नहीं दे रही !

एनडीटीवी पर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने आईसीआईसीआई बैंक को कथित तौर पर 48 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के आरोप में छापा मारा। छापे एनडीटीवी के सह संस्थापक और सह अध्यक्ष प्रणव रॉय और उनकी पत्नी राधिका राय के ग्रेटर कैलाश स्थित आवास पर मारे गए।

ये तथ्य बताते हैं कि एनडीटीवी कौन-सी ‘निष्पक्ष’ पत्रकारिता करता है!

एनडीटीवी के सर्वेसर्वा प्रणव रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय पर एक पुराने मामले में सीबीआई की छापेमारी को जिस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट के रूप में कुप्रचारित किया जा रहा है, वो अपने आप में बेहद विचित्र है। ऐसा करने में सबसे आगे खुद ये चैनल और इसके स्वनामधन्य एंकर रवीश कुमार हैं।

समस्या असहिष्णुता की नहीं, अभिव्यक्ति के अतिरेक की है !

सीबीआई के छापे मालिक के घर पर किसी अन्य कारण से पड़े, लेकिन उसे अभिव्यक्ति के हनन का मामला बना कर एनडीटीवी के ख्यात प्रस्तोता ने अपना एकांगी पक्ष रखा तो सोशल माध्यमों पर दूसरा पक्ष रखने वालों की बाढ़-सी आ गयी। ऐसी बहसों में गलत क्या है, जब मीडिया का दावा ही सच को उजागर करने का है?

एक ‘दोषी’ चैनल को दण्डित करना मीडिया पर प्रतिबन्ध कैसे हो गया, मिस्टर बुद्धिजीवी ?

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एनडीटीवी को पठानकोट आतंकी हमले के दौरान गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग के लिए दंडस्वरूप एक दिन के लिए ऑफ़ एयर होने का जबसे नोटिस भेजा गया है, राजनीतिक गलियारे और सोशल मीडिया से लेकर विचारधारा विशेष के बुद्धिजीवी वर्ग तक में वितंडा मचा हुआ है। राहुल गाँधी, ममता बनर्जी, नीतीश कुमार वगैरह तमाम नेताओं समेत एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने इस पर