पत्थरबाज

राहुल गांधी की कार पर चले पत्थर को मुद्दा बनाकर खुद फँस गयी है कांग्रेस !

प्रजातंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। गुजरात में राहुल गांधी की कार पर पत्थर फेंकना निंदनीय व आपराधिक कृत्य है। गुजरात सरकार ने इसे गंभीरता से लिया। पत्थर फेंकने वाले को जेल भेजा। अब कानून अपना कार्य करेगा। लेकिन इस प्रकरण ने कुछ प्रश्न भी उठाए हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की कार पर एक पत्थर क्या फेंका गया कि लोकतंत्र खतरे में पड़ गया। एक साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय

भारतीय सेना पर लांछन लगा पाकिस्तान की लाइन को आगे बढ़ाते रहे हैं वामपंथी !

भारतीय सेना सदैव से कम्युनिस्टों के निशाने पर रही है। सेना का अपमान करना और उसकी छवि खराब करना, इनका एक प्रमुख एजेंडा है। यह पहली बार नहीं है, जब एक कम्युनिस्ट लेखक ने भारतीय सेना के विरुद्ध लेख लिखा हो। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट लेखक पार्थ चटर्जी ने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना हत्यारे अंग्रेज जनरल डायर से करके सिर्फ सेना का ही अपमान नहीं किया है, बल्कि अपनी संकीर्ण

परेश रावल की लानत-मलानत करने वाले अरुंधति राय के इन ‘कारनामों’ पर क्या कहेंगे ?

हिन्दी फिल्मों के बेहतरीन चरित्र अभिनेता और बीजेपी सांसद परेश रावल के पीछे सारी सेक्युलर बिरादरी हाथ धोकर पड़ गई है। परेश रावल ने कश्मीर में आर्मी की जीप से एक युवक को बांधकर घुमाने वाले मामले पर ट्वीट किया कि किसी पत्थरबाज को जीप से बांधने से अच्छा है अरुंधति राय को बांधो। इस ट्वीट पर तगड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया। वाम और तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड के पैरोकार परेश रावल की लानत-मलानत करने में

सेना के कठोर रुख पर सवाल उठाने वाले सेना के साथ बदसलूकी पर खामोश क्यों हैं ?

पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया

यदि पत्थरबाज कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ रहे तो आप भी पत्थर उठा लीजिये, अब्दुल्ला साहब !

अब्दुल्ला ने कश्मीरी पत्थरबाजों को सही बताते हुए कहा कि वे अपने मुल्क की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं, इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अब्दुल्ला से पूछा जाना चाहिए कि यदि इन कश्मीरी युवाओं का शिक्षा और रोजगार की संभावनाओं को छोड़ पत्थर उठाकर अपने ही देश के जवानों से लड़ना उनको जायज लग रहा, तो वे खुद और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला पढ़-लिखकर राजनीति में क्यों हैं; क्यों नहीं पत्थर उठाकर कश्मीर की तथाकथित आज़ादी के नेक काम में लग जाते हैं ?

उचित है कश्मीरी पत्थरबाजों के प्रति सेना और सरकार का कठोर रुख

कश्मीर में आतंकियों पर कारवाई या मुठभेड़ के दौरान कश्मीर के स्थानीय लोगों द्वारा सेना पर पत्थरबाजी का सिलसिला जो कुछ समय से बंद था, अब फिर शुरू होता दिख रहा है। अभी हाल ही में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सेना के जवानों पर पत्थरबाजों ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। परिणाम यह हुआ कि एक आतंकी तो मारा गया, मगर पत्थरबाजी में सेना के काफी जवान घायल हो गए। इस घटना के बाद