सेना के कठोर रुख पर सवाल उठाने वाले सेना के साथ बदसलूकी पर खामोश क्यों हैं ?

पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया व्यक्त न कर संयम का परिचय दिया, लेकिन त्रासदी है कि पत्थरबाजों पर जवानों के तनिक कठोर रुख पर वितंडा मचा देने वाली तथाकथित सेक्यूलर मंडली की तरफ से किसीने भी इन बिगड़े नौजवानों की इस कायराना हरकत की आलोचना तक नहीं की।

शायद ही दुनिया में कहीं देखने-सुनने को मिला हो कि सेना के जवान आतंकवादियों से लोहा लेते हों और वहां के बिगड़े नौजवान सेना के जवानों पर लात-घूसा बरसा देशविरोधी कृत्यों को अंजाम देते हों। शायद ही कभी देखने-सुनने को मिला हो जब किसी देश के सियासतदान ऐसे बिगड़े आतंकियों के मददगारों के बचाव में कुतर्क गढ़ सेना के जवानों पर ज्यादती का आरोप लगाते हों। लेकिन भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में कुछ ऐसा ही देखने-सुनने को मिल रहा है। यहां के बिगड़े नौजवान (देशद्रोही) और भारत के तथाकथित सेक्यूलर सियासतदान कुछ ऐसे ही घृणित आचरण से सेना के जवानों का मनोबल तोड़ देश को शर्मिंदा कर रहे हैं।

पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है और इस नतीजे पर है कि ये तथाकथित नौजवान बिगड़े भर नहीं हैं; बल्कि आतंकियों के मददगार भी हैं। उनका फन उसी तरह कुचला जाना चाहिए, जिस तरह आतंकियों का कुचला जाता है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया व्यक्त न कर संयम का परिचय दिया, लेकिन त्रासदी है कि जवानों के साथ बदसलूकी पर तथाकथित सेक्यूलर मंडली का एक भी प्यादा इन बिगड़े नौजवानों की कायराना हरकत की आलोचना नहीं किया।

सेना के जवानों संग कश्मीरी युवकों की बदसलूकी (साभार: गूगल)

आखिर क्यों ? क्या सेना के जवानों की अस्मिता से ज्यादा देशद्रोहियों से प्रेम है ? या यह समझा जाए कि इन तथाकथित सेकुलरानों की सियासत ने गूंगा-बहरा बनने को मजबूर किया है ? बहरहाल, इन सेक्युलर सियासतदानों को समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान के इशारे पर सेना के जवानों पर लात-घूसे और पत्थर बरसाने वाले देशद्रोही हैं और उनके साथ ‘जैसे को तैसा’ व्यवहार होना चाहिए। बेहतर होगा कि वे इन पत्थरबाजों को राह से भटके हुए नौजवान बताने की बजाय उनके देशविरोधी कृत्यों की निंदा करें। उन्हें समझना होगा कि पड़ोसी दुश्मन देश पाकिस्तान ही इन नौजवानों को सेना पर पत्थर बरसाने के लिए उकसा रहा है और इसके लिए उन्हें प्रतिदिन पांच सौ से लेकर हजार रुपए तक दिए जाने की बात सामने आ चुकी है। फिर देशविरोधी पत्थरबाजों के खिलाफ अगर सेना कठोरता दिखाती है, तो इसमें अनुचित क्या है ?

यहां समझना होगा कि पाकिस्तान का मकसद कश्मीर में अराजकता फैलाकर माहौल खराब करना और यह साबित करना है कि कश्मीर में लोकतंत्र नहीं है। यही वजह है कि पाकिस्तान हर चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए पत्थरबाजों का सहारा ले रहा है। चूंकि, भारत ने पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के रुप में बड़ा घाव दिया है और अंतर्राष्ट्रीय घेराबंदी कर हाफिज सईद जैसे आतंकियों को अपनी मांद में छिपने को मजबूर किया है। साथ ही, पाकिस्तान को विश्व बिरादरी में अलग-थलग भी कर दिया है। चूंकि, उसमें भारत से सीधे मुकाबले की शक्ति नहीं है, इसलिए वह आतंकियों के बरक्स भारत को लहूलुहान कर रहा है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कश्मीर मसले पर मोदी सरकार की नीति स्पष्ट है और पाकिस्तान से किसी प्रकार की समझौते की गुंजाइश अब न के बराबर है तथा दूसरी ओर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भी पाकिस्तान को लगातार फटकार मिल रही है। इन सब कारणों से भी वह बौखलाया हुआ है। उसकी कोशिश भारत पर दबाव बनाकर बातचीत के लिए मजबूर करना है जिससे कि दुनिया में उसकी छवि सुधरे। गौरतलब है कि पाकिस्तान द्वारा आतंकियों के प्रश्रय दिए जाने से दुनिया में उसकी छवि एक आतंकी देश की बन चुकी है। इस छवि से वह मुक्त होना चाहता है। लेकिन, भारत की सफल कूटनीति  के कारण उसकी मुराद पूरी नहीं हो रही है।

सांकेतिक चित्र (साभार : गूगल)

याद होगा, अभी पिछले दिनों ही गिलगिट-बाल्टिस्तान मसले पर ब्रिटेन ने उसकी खूब खबर ली। उससे पाकिस्तान चिढ़ा हुआ है। पाकिस्तान की समझ में आ गया है कि वह न्यूक्लियर अटैक की धमकी देकर भारत को डरा नहीं सकता। भारत ने दो टूक सुना दिया है कि वह आतंकियों और उनके मददगारों को बख्शने वाला नहीं है। पिछले दिनों सरकार ने कश्मीर में जारी हिंसा के दौरान सख्त रुख अपनाकर और सुरक्षा बलों को कार्रवाई की पूरी छूट देकर इस बात का संकेत दे दिया है। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने पाकिस्तान को पीओके खाली करने की चेतावनी भी दे रखी है। इससे पाकिस्तान डरा हुआ है। कश्मीर में सेना की सतर्कता और सक्रियता की वजह से उसके मंसूबे पूरे नहीं हो रहे हैं। दूसरी ओर सेना के जवान आतंकियों के साथ-साथ उनके मददगारों से भी कड़ाई से निपट रहे हैं, लेकिन संयम के साथ जिसके कारण उनको अक्सर चोटिल भी होना पड़ रहा है। आश्चर्य होता है कि इसके बावजूद भी सेकुलर बिरादरी के लोग यह तर्क गढ़ रहे हैं कि सेना के जवान उपद्रवियों की अराजकता पर नरमी दिखाएं। क्यों ? यह कहां तक न्यायसंगत है कि आतंकियों के मददगार सेना के जवानों पर पत्थरबाजी करते रहें और सेना हाथ पर हाथ धरी बैठी रहे ?

ध्यान देना होगा कि पिछले दिनों पत्थरबाजों की बढ़ती हिमाकत को देखते हुए ही सेनाध्यक्ष विपिन रावत को दो टूक कहना पड़ा कि अगर कोई सेना को निशाना बनाएगा तो सेना के पास भी हथियार है और वह उसका इस्तेमाल करेगी। लेकिन इसके बावजूद भी सेना अपने ऊपर हमले के बाद भी घातक हथियारों के बजाए सिर्फ पैलेट गन का ही इस्तेमाल कर रही है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि देश के तथाकथित सेक्यूलर सियासतदान पैलेट गन पर ही सवाल उठा रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना होगा कि अगर पैलेट गन पर रोक लगी तो फिर सैनिकों की क्षति होगी। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि उपद्रवियों से निपटने के लिए फिलहाल पैलेट गन का कोई प्रभावी विकल्प भी नहीं है।

(सांकेतिक चित्र) साभार : गूगल

यहां ध्यान देना होगा कि हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सेना पर हमले बढ़े हैं। अब तक सीआरपीएफ के ही 300 से अधिक जवान घायल हो चुके हैं। याद होगा अभी गत माह पहले ही उपद्रवियों की भीड़ ने जीप सहित पुलिसकर्मियों को नदी में फेंक दिया। शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता हो जब सैनिकों पर हमले न होते हों। इससे आजिज आकर ही सेना उपद्रवियों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पैलेटगन का इस्तेमाल करती है। किसी को बताना चाहिए कि जब उपद्रवियों की भीड़ सेना के जवानों पर ग्रेनेड फेंकेगी तो क्या सेना उसका प्रतिकार नहीं करेगी ? वैसे भी सेना के जवान पैलेटगन का इस्तेमाल कमर के नीचे ही फायर कर करते हैं ताकि दूसरे पक्ष को ज्यादा नुकसान न पहुंचे। लेकिन अगर आतंकियों के मददगार सेना के जवानों की जान पर बन आएंगे तो सेना भी पलटवार करेगी ही।

यहां समझना होगा कि पैलेट गन नॉन लीथल हथियार होता है और इससे जान जाने की संभावना कम होती है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर व प्लास्टिक के होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस हथियार का इस्तेमाल कोई पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल 2010 से हो रहा है। भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में होता है। चूंकि कश्मीर में आतंकियों के मददगार बैठे हैं और जवानों को निशाना बना रहे हैं; लिहाजा उनसे निपटने के लिए पैलेटगन ही नहीं इससे भी बेहतर विकल्प का चयन होना चाहिए। ये ऐसे देशद्रोही हैं, जिनके साथ नरमी नहीं बल्कि आतंकियों जैसा बर्ताव होना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)