केजरीवाल के अहंकार और अराजकता की राजनीति को ही दिखाता है अंशु प्रकाश प्रकरण !

साफ-सुथरी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का सपना दिखाकर सत्ता प्राप्त करने वाला यह दल व्यवस्थित रोडमेप के अभाव में जनता की उम्मीदों पर पानी फेरकर उसका मखौल उड़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। यदि आम आदमी पार्टी अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों से भी सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही है, तो विभिन्न जन आकांक्षाओं से किस प्रकार सामंजस्य बना पाएगी? यह अराजकता इस दल को आगामी चुनावों में जनता के आशीर्वाद से वंचित कर सकती है।

आम आदमी पार्टी एक बार फिर से सुर्खियों में है। हमेशा की तरह इस बार भी कारण नकारात्मक और विवादास्पद ही है। लंबे समय से मतदाताओं की बेरूखी और अंदरूनी कलह झेल रही पार्टी के सामने अब एक नई मुसीबत खड़ी हो गई है। इस बार दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से मारपीट एवं अभद्रता का मामला सामने आया है। आरोप है कि पार्टी के दो विधायक अमानतुल्ला और प्रकाश जरवाल ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से अभद्रता की। मामला तूल पकड़ गया और बात गिरफ्तारी तक पहुंच गई। दोनों को गुरुवार तक ज्यूडीशियल रिमांड पर भेजा गया है। दूसरी ओर दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने इस घटना की रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी है।

काफी तेजी से चले इस घटनाक्रम के बाद अब अरविंद केजरीवाल की सरकार बड़ी मुसीबत में फंसती दिख रही है। एक ओर जहां आईएएस लॉबी ने केजरीवाल सरकार का असहयोग करना शुरू कर दिया है, वहीं जनप्रतिनिधि एवं अधिकारियों के बीच उपजे इस विवाद से सरकार एवं जनता के कार्यों का नुकसान हो रहा है। स्थिति इस हद तक बिगड़ चुकी है कि दिल्ली के आईएएस लॉबी के साथ पंजाब, कर्नाटक, हरियाणा एवं उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों के अधिकारी भी आ गये हैं। केजरीवाल सरकार के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर होते जा रहे हैं।

दिल्ली आईएएस एसोसिएशन के सचिव मनीष सक्सेना ने मुख्य सचिव पर हमले को योजनाबद्ध साजिश करार देते हुए कहा कि जब तक अरविंद केजरीवाल, मंत्री और विधायक घटना के लिए माफी नहीं मांगते, तब तक हम राज्य सरकार की हर गतिविधि का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने चेताया कि अब कोई भी अधिकारी किसी मंत्री या विधायक के साथ बैठक में शामिल नहीं होंगे। कार्याल​यीन समय के बाद किसी मंत्री या विधायक का फोन नहीं उठाएंगे। एसोसिएशन ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात की। साथ ही वे राष्ट्रपति से भी शिकायत करने वाले हैं।

(सांकेतिक चित्र)

दिल्ली के अधिकारियों का यह गुस्सा यूं ही अचानक सामने आना कोई अनोखी बात नहीं है। देखा जाए तो यह उन सत्ता के नशे में चूर सूरमाओं के प्रति संचित इनके विरोध का प्रकटीकरण है जो अचानक सत्ता प्राप्त कर बैठे और अपनी तथाकथित ”प्रतिभा” का प्रदर्शन करने लगे। अपने इस ”शौर्य प्रदर्शन” से अब तक अपने कई दरबारियों से हाथ धो चुके आम आदमी पार्टी कुनबे के शेरों के कारनामे अपने आप में एक नमूना है कि  कार्ययोजना न होने पर विशाल बहुमत प्राप्त सर्वशक्तिमान सरकार भी जनहित से दूर होकर स्वहित में तल्लीन हो जाती है।

आम आदमी पार्टी द्वारा अब तक हर मोर्चे पर अपने अंहकार का परिचय दिया जाता रहा है, जबकि विधानसभा फतह के बाद लगभग हर चुनाव में उसे शिकस्त ही मिली है। लेकिन फिर भी अपने अंहकार को छोड़ जनहित हेतु कार्य करने की बजाय आप सरकार उपराज्यपाल, केन्द्र सरकार सहित अपने अधिकारियों-कर्मचारियों पर सिर्फ दोषारोपण कर अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने का इतिहास बनाने जा रही है।

अब सवाल उठता है कि आखिर आम आदमी पार्टी की यह दुर्गति क्यों हो रही है? पिछले एक साल में अपनी पूरी चमक खोते हुए यह दल पराजित ही हो रहा है चाहे वह एमसीडी हो या राजौरी गार्डन उपचुनाव हो। इतना ही नहीं, ये नवोदित दल अपने जन्म से ही अंर्तकलह से भी लगातार घिरा रहा है। कुमार विश्वास से लेकर कपिल मिश्रा तक के बगावती तेवर बार-बार समाचारों की सुर्खियाँ बने है।

स्वघोषित सिद्धान्तों को दरकिनार कर उद्योगपतियों को राज्यसभा का टिकिट देकर अब तक विरोधियों पर उद्योगपतियों की सरकार का आरोप लगाने वाले दल ने अपने पाखण्ड का ही परिचय दिया है। लाभ के पदों पर रहने से अयोग्य हुए अपने 20 विधायकों की झुंझलाहट से भी पार्टी अब तक नहीं उबर पाई है। अपनी सांमजस्य विहीन कार्यप्रणाली के कारण बार-बार राजनेताओं और नौकरशाहों से विवाद होना इस पार्टी की जनता में किरकिरी ही करा रहा है।

अंहकारी और अराजक राजनीति का यह रूप निश्चित ही भारतीय लोकतन्त्र का एक शर्मनाक अध्याय ही कहा जाएगा। साफ-सुथरी भ्रष्टाचार मुक्त सरकार का सपना दिखाकर सत्ता प्राप्त करने वाला यह दल व्यवस्थित रोडमेप के अभाव में जनता की उम्मीदों पर पानी फेरकर उसका मखौल उड़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। यदि आम आदमी पार्टी अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों से भी सामंजस्य स्थापित नहीं कर पा रही है, तो विभिन्न जन आकांक्षाओं से किस प्रकार सामंजस्य बना पाएगी? यह अराजकता इस दल को आगामी चुनावों में जनता के आशीर्वाद से वंचित कर सकती है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)