संजय द्विवेदी

कोरोना, संवेदना और शिवराज : राजसत्ता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की हो रही पहल

मनुष्यों की तरह सरकारों का भी भाग्य होता है। कई बार सरकारें आती हैं और सुगमता से किसी बड़ी चुनौती और संकट का सामना किए बिना अपना कार्यकाल पूरा करती हैं। कई बार ऐसा होता है कि उनके हिस्से तमाम दैवी आपदाएं, प्राकृतिक झंझावात और संकट होते हैं। इस बार सत्तारुढ़ होते ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही संकटों से दो-चार हैं।

कोरोना संकट : डॉ. मोहन भागवत ने अपने संबोधन में दिखाई नई राहें

कोरोना संकट से विश्व मानवता के सामने उपस्थित गंभीर चुनौतियों को लेकर दुनिया भर के विचारक जहां अपनी राय रख रहे हैं, वहीं दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के संवाद ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है।

केरल की वामपंथी हिंसा पर कब टूटेगी ‘असहिष्णुता गिरोह’ की खामोशी ?

केरल में आए दिन हो रही राजनीतिक हत्याओं से एक सवाल उठना लाजिमी है कि भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में क्या असहमति की आवाजें खामोश कर दी जाएगी? एक तरफ वामपंथी बौद्धिक गिरोह देश में असहिष्णुता की बहस चलाकर मोदी सरकार को घेरने का असफल प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी ओर उनके समान विचारधर्मी दल की केरल की राज्य सरकार के संरक्षण में असहमति की आवाज उठाने वालों को मौत के

स्मृति-शेष : सच्चे अर्थों में भारत की ऋषि परंपरा के उत्तराधिकारी थे अनिल माधव दवे

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे, देश के उन चुनिंदा राजनेताओं में थे, जिनमें एक बौद्धिक गुरूत्वाकर्षण मौजूद था। उन्हें देखने, सुनने और सुनते रहने का मन होता था। पानी पर्यावरण, नदी और राष्ट्र के भविष्य से जुड़े सवालों पर उनमें गहरी अंर्तदृष्टि मौजूद थी। उनके साथ नदी महोत्सवों, विश्व हिंदी सम्मेलन-भोपाल, अंतरराष्ट्रीय विचार महाकुंभ-उज्जैनसहित कई आयोजनों में काम करने का मौका मिला। उनकी विलक्षणता

लोकमंथनः बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ

भोपाल में संपन्न हुए लोकमंथन आयोजन के बहाने भारतीय बौद्धिक विमर्श में एक नई परंपरा का प्रारंभ देखने को मिला। यह एक ऐसा आयोजन था, जहां भारत की शक्ति, उसकी सामूहिकता, बहुलता-विविधता के साथ-साथ उसकी लोकशक्ति और लोकरंग के भी दर्शन हुए। यह आयोजन इस अर्थ में खास था कि यहां भारत को भारतीय नजरों से समझने की कोशिश की गयी। विदेशी चश्मों और विदेशी

भोपाल में आयोजित लोकमंथन से एक नई राह की उम्मीद

समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत युवा एक होकर, एक मंच पर आकर अगर राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ देश के संकटों का हल खोजें तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है। भोपाल में 12 से 14 नवंबर को तीन दिन के लोकमंथन नामक आयोजन की टैगलाइन ही है-“’राष्‍ट्र सर्वोपरि’ विचारकों एवं कर्मशीलों का राष्‍ट्रीय विमर्श।” जाहिर तौर पर एक सरकारी आयोजन की इस प्रकार की भावना