स्थानीय निकायों में मजबूत होती भाजपा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब चंद दिन ही शेष रह गए हैं । राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव के नतीजे को लेकर तरह-तरह का आंकलन कर रहे हैं । बौद्धिक जुगाली के लिए हर तरह के जातिगत और अन्य आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है । भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का लंबे समय से विरोध करनेवाले व्यक्ति और संस्थाएं भी इस बात पर एकमत दिखती हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने जा रही है । इन राजनीतिक ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों की सचाई का पता ग्यारह मार्च की दोपहर तक चल जाएगा । चुनाव में हार जीत होती रहती है और ये लोकतंत्र की खूबसूरती और ताकत दोनों है । उत्तर प्रदेश के चुनावी शोरगुल के बीच एक बेहद महत्वपूर्ण घटना को राजनीतिक विश्लेषकों ने अहमियत नहीं दी । देश के मतदाताओ के रुझान में या कह सकते हैं कि उनकी पसंद में एक बड़ा शिफ्ट देखने को मिल रहा है, जिसको प्रमुखता से रेखांकित किया जाना चाहिए । देश के कई राज्यों में पिछले कुछ सालों से हो रहे स्थानीय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने धीरे-धीरे अपनी उपस्थिति काफी मजबूत की है । अगर हम देखें तो उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव से लेकर महाराष्ट्र और उड़ीसा से लेकर केरल तक के स्थानीय निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महत्वपूर्ण सफलता मिली है । 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की शानदार सफलता के बाद उसने स्थानीय चुनावों में जिस तरह से पैठ बनाई है उसपर विचार करना आवश्यक है ।

हाल के वर्षों में आए स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों ने इस बात को भी स्थापित किया है कि सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी खुद को उन इलाकों में भी मजबूत कर रही है, जहां पहले उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था । इस बात का श्रेय भाजपा की उस रणनीति को दिया जा सकता है, जिसमें पार्टी ने स्थानीय नेताओं को मजबूती देनी शुरू की । महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में जिस तरह की सफलता मिली है, बहुत हद तक उसका श्रेय देवेन्द्र फडणवीस को है जिनको पार्टी के आला नेतृत्व ने अपनी नीतियों से मजबूती प्रदान की । इसी तरह से पार्टी ने उड़ीसा में धर्मेन्द्र प्रधान को आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है ।

अभी हाल ही में बृह्नमुंबई महानगरपालिका के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शानदार सफलता हासिल की और पिछले चुनाव में बत्तीस सीटों के मुकाबले बयासी सीटें जीतकर इस बात को साबित किया कि स्थानीय स्तर पर भी उनके वोटर मजबूती से पार्टी के साथ जुड़े हुए हैं । यह तब हुआ जब भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना का गठबंधन नहीं हो पाया और भाजपा ने अकेले दम पर जीत का परचम लहराया । यह स्थिति सिर्फ वृह्नमुबंई महानगरपालिका में ही नहीं बनी बल्कि अगर पूरे महाराष्ट्र के स्थनीय निकाय चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि मुबंई से बाहर तो स्थिति और भी अच्छी रही और नौ शहरों में से आठ पर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सफलता के झंडे गाड़े । महाराष्ट्र के दस शहरों के स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो भाजपा की सीटें, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी तीनों पार्टियों की सीटों की संयुक्त संख्या से अधिक है । इसके अलावा भाजपा ने महाराष्ट्र के जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनावों में भी अपनी स्थिति काफी मजबूत की है । इसी तरह से अगर उड़ीसा के स्थानीय निकाय चुनावों पर नजर डालें तो भाजपा ने यहां भी सफलता तालिका में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए आठ गुना ज्यादा सीटें जीती हैं । पार्टी ने कुल 851 जिला परिषद सीटों में से 294 पर जीत हासिल कर अपनी स्थिति काफी मजबूत की है । यह सही है कि 467 सीटें जीतकर बीजू जनता दल अब भी शीर्ष पर बनी हुई है, लेकिन भाजपा ने पिछड़े इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत कर बीजू जनता दल के लिए 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले खतरे की घंटी बजा दी है ।

पहले यह कहा जाता था कि जहां जहां कांग्रेस कमजोर हो रही है, वहीं वहीं भाजपा को फायदा हो रहा है । जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं, वहां भाजपा अपनी स्थिति बेहतर नहीं कर पा रही है । इस संबंध में बिहार और दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र तक का उदाहरण दिया जाता रहा है । लेकिन स्थानीय निकाय के चुनाव नतीजों ने इस राजनीतिक अवधारणा को निगेट किया है । महाराष्ट्र जैसे राज्य में जहां कांग्रेस कमजोर है, लेकिन शिवसेना और एनसीपी जैसे क्षेत्रीय दल हैं, वहां भी भाजपा ने अपनी स्थिति मजबूत की है । उड़ीसा के स्थानीय निकाय चुनाव में तो भाजपा ने पिछले डेढ़ दशक से सत्ता में रही बेहद मजबूत क्षेत्रीय दल बीजू जनता दल को ही सीधी चुनौती देते हुए अपनी स्थिति मजबूत की है ।

हालांकि केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में भी जिस तरह से भाजपा को सफलता मिली है, वह भी रेखांकित की जानी चाहिए । केरल में भाजपा ने जिला परिषद से लेकर पंचायत चुनाव में अपनी स्थिति काफी बेहतर की थी और पलक्कड नगरपालिका में चेयरमैन के पद पर कब्जा किया था । यह अलहदा है कि पार्टी अपनी इस सफलता को विधानसभा चुनाव में आगे नहीं बढ़ा पाई । लेकिन केरल जैसे पारंपरिक रुप से वामपंथ और कांग्रेस के बीच झूल रहे राज्य में भाजपा का मजबूत होना पार्टी के अखिल भारतीय स्वरूप की स्वीकार्यता का उदाहरण मात्र है । इन चुनावी नतीजों ने इस बात को भी स्थापित किया है कि सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी खुद को उन इलाकों में भी मजबूत कर रही है, जहां पहले उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था । इस बात का श्रेय भाजपा की उस रणनीति को दिया जा सकता है, जिसमें पार्टी ने स्थानीय नेताओं को मजबूती देनी शुरू की । महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में जिस तरह की सफलता मिली है, बहुत हद तक उसका श्रेय देवेन्द्र फडणवीस को है जिनको पार्टी के आला नेतृत्व ने अपनी नीतियों से मजबूती प्रदान की । इसी तरह से पार्टी ने उड़ीसा में धर्मेन्द्र प्रधान को आगे बढ़ाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है । भाजपा के मजबूत क्षेत्रीय नेता शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह और वसुंधरा राजे के अलावा देवेन्द्र फडणवीस को जिस तरह से मजबूत किया जा रहा है, उसने पार्टी को अपना दायरा बढ़ाने में काफी मदद की है । कांग्रेस से यह चूक इंदिरा गांधी के पार्टी के केंद्र में आने के बाद से ही हुई और पार्टी के मजबूत क्षेत्रीय नेताओं को एक-एक करके हाशिए पर डाला गया जो अब तक जारी है । सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दौर में भी क्षेत्रीय नेतृत्व को उभरने का मौका नहीं दिया गया और बगैर जनाधार वाले नेताओं को पार्टी में अहमियत मिली । नतीजा सबके सामने है । इससे उलट नरेन्द्र मोदी ने अपनी मजबूत छवि और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़नेवाले योद्धा के रूप में खुद को पेश कर जनता को एक संदेश दिया कि वो एक ऐसे नेता हैं जो बेहतर गवर्नेंस के लिए प्रतिबद्ध हैं । इन सबके मेल से ही किसी दल को सफलता मिलती है ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)