हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव : नेतृत्व से लेकर संगठन तक बदहाली से जूझती कांग्रेस

हरियाणा कांग्रेस में खुलेआम युद्ध जारी है। लड़ाई पुराने और नयों के बीच है। भूपिंदर सिंह हुड्डा सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं और इसलिए उन्हें चुनाव से पहले फिर से मैदान में उतार दिया गया, जबकि उन्हें अभी कई बार सीबीआई द्वारा की जा रही पूछताछ में बुलाया जाता रहा है। उधर महाराष्ट्र में भी कांग्रेसी नेता संजय निरुपम ने बगावती तेवर अख्तियार किए हुए हैं। वहीं इन सब स्थितियों के बीच राहुल गांधी के विदेश भ्रमण पर जाने की खबरें आ रही हैं। सोनिया गांधी मौन साधे हुए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस में इस समय न तो संगठन स्तर पर कुछ ठीक दिख रहा और न ही नेतृत्व का पता है।

हरियाणा कांग्रेस चौराहे पर खड़ी है। जैसे-जैसे मतदान की तारीख करीब आ रही है, पार्टी में और अधिक खामियां व अंतर्कलह सतह पर आ रही है।  हरियाणा कांग्रेस के पूर्व प्रमुख अशोक तंवर ने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी है। इस्तीफे के बाद उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर कई गंभीर सवाल उठाए। उनके इस रुख से कांग्रेस पार्टी की रही सही उम्मीदों को पलीता लग सकता है।कोई भी पार्टी चुनावों से पहले अपना नेतृत्व नहीं बदलती है और महत्वपूर्ण चुनावों से पहले कोई भी पार्टी अपनी कमजोरियों की बात नहीं करती है, लेकिन कांग्रेस पार्टी में ये दोनों ही काम हुए हैं।

चुनाव से ठीक पहले अशोक तंवर ने शीर्ष नेतृत्व के सामने कई असहज करने वाले सवाल उठाए हैं मसलन; कांग्रेस वंशवादी राजनीति की रक्षा करती है और सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों को मौका नहीं देती है।। कांग्रेस पार्टी के भीतर लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। राहुल गांधी द्वारा तैयार किए गए सभी नेताओं को सुनियोजित ढंग से हटाया जा रहा है। कमलनाथ और गुलाम नबी आज़ाद जैसे शीर्ष नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व को गुमराह किया है। 

हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल, भूपिंदर सिंह हुड्डा और गुलाम नबी आज़ाद के बीच एक बातचीत भी वायरल हुई थी जिसमें अहमद पटेल पूछते नजर आए कि पार्टी कहाँ गयी। यह वीडियो एक निजी वार्तालाप का हिस्सा था, लेकिन इसने कांग्रेस की कमजोरियों को बेनकाब कर दिया।

हरियाणा में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से बंटी हुई है, जहाँ हर नेता एक संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार की तरह व्यवहार करता हुआ नज़र आता है। हरियाणा की राजनीति को करीब से देखने वालों का मानना है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा, ने पांच वर्ष तक अपनी सारी शक्ति सिर्फ अशोक तंवर को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाने के लिए लगा दी। तंवर एक दलित नेता हैं, जिन्हें जाटलैंड में पदोन्नत कर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन सोनिया के कांग्रेस प्रमुख बनते ही हुड्डा फिर से हावी हो गए। परिणाम अशोक तंवर के पार्टी छोड़ने के रूप में सामने है।

राहुल गाँधी ने आज से पांच वर्ष पहले अशोक तंवर को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनवाया तब जब भूपिंदर सिंह हुड्डा अवैध भूमि सौदों में शामिल होने के बाद बेहद ख़राब स्थिति में थे। लेकिन हरियाणा में राजनीतिक स्थिति इतनी विकट हो गई कि अशोक तंवर को चुनाव से पहले हरियाणा कांग्रेस के प्रमुख के पद से हटना पड़ा। एक अन्य दलित नेता, कुमारी शैलजा,  जो हुड्डा के करीबी थे, को हरियाणा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।

जाहिर है, हरियाणा कांग्रेस में खुलेआम युद्ध जारी है। लड़ाई पुराने और नयों के बीच है। भूपिंदर सिंह हुड्डा सोनिया गांधी के करीबी माने जाते हैं और इसलिए उन्हें चुनाव से पहले फिर से मैदान में उतार दिया गया, जबकि उन्हें अभी कई बार सीबीआई द्वारा की जा रही पूछताछ में बुलाया जाता रहा है। उधर महाराष्ट्र में भी कांग्रेसी नेता संजय निरुपम ने बगावती तेवर अख्तियार किए हुए हैं। 

वहीं इन सब स्थितियों के बीच राहुल गांधी के विदेश भ्रमण पर जाने की खबरें आ रही हैं। सोनिया गांधी मौन साधे हुए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस में इस समय न तो संगठन स्तर पर कुछ ठीक दिख रहा और न नेतृत्व स्तर पर ही। ऐसे में पहले से ही लुंजपुंज हो रही कांग्रेस पार्टी इन विधानसभा चुनावों में दमखम के साथ प्रचार में जुटी सत्तारूढ़ भाजपा को टक्कर दे पाएगी, इसमें संदेह है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)