कर्नाटक चुनाव : विकास के मुद्दे पर विफल कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति !

दरअसल बात बस इतनी है कि कर्नाटक में कांग्रेस नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे के सामने ठहर नहीं पा रही, इसीलिए इधर-उधर से भ्रामकता और झूठ पर आधारित नकारात्मक मुद्दे उठाकर विकास के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। परन्तु, कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कि जनता इतनी भोली नहीं है कि उसके इन प्रपंचों में फँस जाए। लोग अपना सही-गलत जानते हैं और वे विकास के मुद्दे पर ही मतदान करेंगे, जिसपर कांग्रेस के पास कहने को कुछ नहीं है।

यह अजीब है कि कांग्रेस को प्रत्येक चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याद सताने लगती है। शायद उसे लगता होगा कि संघ पर हमला बोलकर वह अपना समीकरण दुरुस्त कर लेगी। लेकिन, वह मतदाताओं के मिजाज को समझने में विफल हो रही है। लोग जानते हैं कि सच्चाई क्या है। झूठ का सहारा लेकर लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बार भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण समाप्त करने की बात नहीं की। लेकिन, कांग्रेस झूठ का सहारा लिए है। वह कहती है कि संघ आरक्षण समाप्त करना चाहता है। कर्नाटक चुनाव में भी कांग्रेस का यही राग चल रहा है।

वह कर्नाटक चुनाव में भी संघ पर झूठा आरोप लगा रही है। कांग्रेस के इस मिथ्याप्रचार को उजागर करने के लिए संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य को बयान जारी कर वस्तुस्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष लगातार झूठ बोलकर समाज को भ्रमित करने का विफल प्रयास करते दिखते हैं। इसी कड़ी में उनके अधिकृत फ़ेसबुक पेज पर मेरे और सरसंघचालक श्री मोहनरावजी भागवत के नाम से एक झूठ चलाया गया है कि संघ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को संविधान प्रदत्त आरक्षण समाप्त करना चाहता है। यह बात आधारहीन और सरासर झूठ है। राहुल गांधी अपने इस दावे के सम्बन्ध में अधिकृत संदर्भ या स्रोत देने की ईमानदारी दिखाएँ।‘ अतः राहुल गांधी को चाहिए कि यदि उनके पास अपनी बात के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य है, तो उसे प्रस्तुत करें। पर राहुल गांधी ऐसे नहीं कर सकते, क्योंकि वास्तव में ऐसा कुछ है ही नहीं।

दरअसल पांच वर्षों की नाकामी सिद्धारमैया की मुसीबत बन गई है। बतौर मुख्यमंत्री उनके पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ भी नहीं है। यह विरोधियों का आरोप नहीं है, बल्कि इसे सिद्धारमैया स्वयं प्रमाणित कर रहे हैं। जब पांच वर्ष सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री के पास विकास पर कहने को कुछ नहीं है, तब उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी क्या कर लेते।

राहुल गांधी के लिए तो वैसे भी नरेंद्र मोदी और संघ पर हमला बहुत प्रिय विषय है। मसला कुछ भी हो, वह अपनी इसी धुन में रहते हैं। इस चक्कर में कोर्ट तक में अपनी फजीहत करा चुके हैं। राहुल गांधी कर्नाटक में भी यही कर रहे हैं। उन्होंने जनसभा में लोगों से कहा कि पता नहीं आप जानते है या नहीं, केंद्र के प्रत्येक मंत्रालय में संघ का एक आदमी बैठा है।

इस प्रकार के भाषण से कांग्रेस के प्रचार का स्तर और मकसद दोनों का अनुमान लगाया जा सकता है। मंत्रालयों की व्यवस्था संविधान के अनुरूप चलती है। राहुल को लगता है कि वहाँ कोई संविधानेतर व्यक्ति है, तो उन्हें ससाक्ष्य उसका खुलासा करना चाहिए। इसके लिए वह न्यायपालिका का सहारा भी ले सकते हैं। लेकिन, राहुल इसका साहस नहीं दिखा सकते। क्योंकि, वह जानते हैं कि उनका कथन झूठ पर आधारित है।

इसके अलावा संविधान के अनुरूप संघ से संबंधित किसी व्यक्ति को कहीं नियुक्त किया जाता है, तो उसपर आपत्ति नहीं हो सकती। संघ राष्ट्रवादी संगठन है। यदि कोई सरकार इससे जुड़े किसी व्यक्ति की संविधान के अनुरूप सहायता लेती है या नियुक्ति करती है, तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है।

नरसिम्हा राव ने बतौर प्रधानमंत्री विपक्ष के तत्कालीन नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भारत का पक्ष रखने को जेनेवा भेजा था। वह जानते थे कि जब अटल बिहारी वाजपेयी बोलेंगे, तो दुनिया उसे सुनेगी। 1962 और 1965 के राष्ट्रीय संकट के समय संघ के स्वयंसेवकों ने आंतरिक व्यवस्था संभालने में अतुलनीय योगदान दिया था। इसलिए उन्हें गणतंत्र दिवस परेड में बुलाया भी गया था।

दरअसल बात बस इतनी है कि कर्नाटक में कांग्रेस नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे के सामने ठहर नहीं पा रही, इसीलिए इधर-उधर से भ्रामकता और झूठ पर आधारित नकारात्मक मुद्दे उठाकर विकास के मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है। परन्तु, कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कि जनता इतनी भोली नहीं है कि उसके इन प्रपंचों में फँस जाए। लोग अपना सही-गलत जानते हैं और वे विकास के मुद्दे पर ही मतदान करेंगे जिसपर कांग्रेस के पास कहने को कुछ नहीं है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)