रोजगार पर जुमलेबाजी कर रहे हैं राहुल गांधी

एक ओर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने पर मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा कर दिया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में हर साल 4 लाख सरकारी नौकरियां देने की बात कही गई है। ऐसे में राहुल गांधी अतिरिक्‍त 18 लाख नौकरियों की बात किस आधार पर कर रहे हैं?

नई तकनीक के आगमन, बढ़ते स्‍वचालन, आउटसोर्सिंग, अर्थव्‍यवस्‍था का बदलता स्‍वरूप जैसे कारणों से सरकारी नौकरियों का दायरा सिमटता जा रहा है। इनका परिणाम बेरोजगारी के रूप में सामने आया है। यह सिलसिला नया नहीं है बल्‍कि इसका आगाज 1991 में शुरू हुई नई आर्थिक नीतियों से ही हो गया था।

अर्थव्‍यवस्‍था और रोजगार के बदलते स्‍वरूप की उपेक्षा करते हुए कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता में आने पर मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा कर दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में हर साल 4 लाख सरकारी नौकरियां देने की बात कही गई है। ऐसे में राहुल गांधी अतिरिक्‍त 18 लाख नौकरियों की बात किस आधार पर कर रहे हैं।

जमीनी हकीकत यह है कि राहुल गांधी जिन 22 लाख नौकरियों को देने की बात कर रहे हैं, उनमें से सिर्फ 4 लाख सरकारी नौकरियां ही केंद्र सरकार के अधीन हैं बाकी राज्‍य सरकारों के अंतर्गत आती हैं। अब राहुल गांधी यह बताएं कि केंद्र में सरकार बनने के बाद वे राज्‍य सरकारों के अधीन आने वाली नौकरियों को कैसे देंगे? यहां 2009 के लोक सभा चुनाव के समय कांग्रेस के घोषणा पत्र का उल्‍लेख प्रासंगिक है जिसमें हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया गया था, लेकिन पूरे पांच साल चली यूपीए-2 सरकार में कितने लोगों को नौकरियां मिली यह देश जानता है।

राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर वायवीय आरोप लगाया कि पांच साल के कार्यकाल में सरकार ने 4.5 करोड़ रोजगार खत्‍म कर दिए। अगर यह सच है तो कांग्रेस के घोषणापत्र में तो सिर्फ चार लाख लोगों को रोजगार देने का वादा किया गया है। बाकी बचे 4 करोड़ 46 लाख लोगों को रोजगार कैसे मिलेगा इस पर राहुल गांधी व कांग्रेस पार्टी खामोश क्यों है?  

रोजगार पर चुनावी जुमलेबाजी करने वाले राहुल गांधी अर्थव्‍यवस्‍था के जमीनी आंकड़ों को झुठला रहे हैं। 2018 में भारत सकल घरेलू उत्‍पाद के मामले में फ्रांस को पीछे छोड़ते हुए विश्‍व की छठी बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बन गया। यदि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था इसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही तो 2030 तक विश्‍व की तीसरी बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगी। यहां सबसे अहम सवाल यह है कि अर्थव्‍यवस्‍था में यह बढ़ोत्‍तरी क्‍या बिना रोजगार में बढ़ोत्‍तरी के हो रही है?

इतना ही नहीं, राहुल गांधी रोजगार पर सरकारी संस्‍थानों की रिपोर्टों कों भी नकार रहे हैं। कर्मचारी भविष्‍य निधि संगठन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक संगठित क्षेत्र में पिछले 17 महीनों में 76.4 लाख नए अंशधारक जुड़े। अकेले जनवरी में यह आंकड़ा 8.96 लाख हैं, जो गत वर्ष इसी अवधि में 3.8 लाख की तुलना में लगभग 130 प्रतिशत अधिक है। भारतीय उद्योग परिसंघ ने अपनी रिपोर्ट में बताया गया है कि मझोले और लघु उद्यमों में पिछले चार वर्षों में हर साल 1.35 से 1.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है।

स्‍कॉच नाम संस्‍था के अनुसार अकेले मुद्रा योजना के अंतर्गत 16 करोड़ से अधिक लोगों को 7.5 लाख करोड़ रूपये का रोजगार दिया गया है। प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्‍साहन योजना से लाभान्‍वितों की संख्‍या एक करोड़ से अधिक हो चुकी है। सरकार ने मेक इन इंडिया मुहिम के तहत 2020 तक 10 करोड़ तो आयुष्‍मान भारत जन आरोग्‍य योजना के तहत 10 लाख रोजगार के असर सृजन करने का लक्ष्‍य रखा है। रेलवे भर्ती बोर्ड विभिन्‍नों श्रेणियों में 1.3 लाख नौकरियों की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। इसी तरह राजमार्ग, स्‍वच्‍छता मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना में आई तेजी से करोड़ों लोगों को रोजगार मिला है।

मोदी सरकार के पांच वर्षों के कार्यकाल में अर्थव्‍यवस्‍था की बेहतरी के बावजूद बेरोजगारी की जो समस्‍या दिखाई दे रही है उसकी असली वजह यह है कि सरकार रोजगार के स्‍वरूप को बदल रही है। अब युवा वर्ग नौकरी मांगने वाले से नौकरी देने वाला बन रहा है। चूंकि यह रोजगार के स्‍वरूप में बदलाव का संक्रमण काल है, इसलिए स्‍वरोजगार की सही तस्‍वीर सामने नहीं आ रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)