किसानों की तकदीर बदलने वाला है ये बजट

भारत दुनिया का पहला देश होगा जो 12 करोड़ से अधिक किसानों को इस प्रकार की प्रत्यक्ष आय हस्तांतरण प्रदान करने जा रहा है, जो दुनिया के दूसरे देशों में ऐसी नकद हस्तांतरण योजना को लागू करने वाले लाभार्थियों की औसत संख्या से 40,000 गुना अधिक है। हालाँकि, राजकोषीय स्थिति में सुधार आने के बाद मौजूदा राशि को बढ़ाकर प्रति माह 13 यूएस डॉलर किया जा सकता है।

किसानों की समस्या को दूर करने एवं कृषि से जुड़ी परेशानियों को कम करने के लियेकेंद्रीय बजट 2019-20 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बनाने की घोषणा की गई है,जिसके तहत छोटे और सीमांत किसानों को एक सुनिश्चित आय सहायता के रूप में दी जायेगी। इस योजना के तहत 2 हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले कमजोर भूमिधारी किसान परिवारों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की दर से प्रत्यक्ष आय सहायता प्रदान की जायेगी, जिसे तीन समान किश्तों में लाभार्थी किसानों के बैंक खातों में जमा किया जायेगा।

लगभग 12 करोड़ छोटे और सीमांत किसान परिवारों को इससे लाभ होने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2019-20 में इस मद में 75,000 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। इस “प्रत्यक्ष आय सहायता” योजना को अन्य योजनाओं से बेहतर माना जा सकता है, क्योंकि 6000 रूपये की वित्तीय सहायता छोटे और सीमांत किसानों के खातों में नकद दी जायेगी। चूँकि, यह सहायता नकद हस्तांतरित की जायेगी। इसलिये, यह मूल्य संकट की स्थिति से अधिक सुरक्षित है।

“प्रधानमंत्री किसान सम्मान” योजना को 1 दिसंबर 2018 से लागू किया जायेगा और 31 मार्च 2019 तक की पहली किस्त का भुगतान इसी वर्ष के दौरान किया जायेगा, जिसके लिये सरकार ने वित्त वर्ष 2018 के संशोधित अनुमान में 20,000 करोड़ रुपये आवंटित किया है।

इस योजना से जुड़ी चुनौतियों में से सबसे बड़ा लाभार्थियों की पहचान करना है, क्योंकि प्रस्तावित योजना के अंतर्गत बटाईदार या पट्टेदार एवं भूमिहीन मजदूरों को लाभ नहीं दिया जायेगा। दूसरा, भूमि रिकॉर्ड का 100% डिजिटलाइजेशन कई राज्यों जैसे, झारखंड, बिहार, गुजरात, केरल, तमिलनाडु आदि राज्यों में अभी भी होना बाकी है। सरकार की मौजूदा कदम से ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में केंद्र और राज्यों के बीच “प्रधानमंत्री किसान सम्मान” की लागत को साझा करने के साथ-साथ सहायता राशि को 6000 रुपये से बढ़ाकर ज्यादा किया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सीधे तौर से वित्तीय सहायता देने की परंपरा

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार किसी भी देश ने बुनियादी आय को “कामकाजी उम्र” के लोगों के लिये आय समर्थन का एक प्रमुख स्तंभ नहीं माना है। लेकिन कई देशों में कुल आबादी के एक छोटे से भाग पर इस संकल्पना को आजमाया गया है। अमेरिका और ईरान का नाम इस संदर्भ में लिया जा सकता है। अमेरिका का “अलास्का स्थायी कोष” एक निवेश कोष है, जिसका निर्माण तेल राजस्व की मदद से किया गया है।

वर्ष 1982 से इस निधि से अलास्का के प्रत्येक व्यक्ति को वार्षिक लाभांश का भुगतान किया जा रहा है। इसी तरह का एक प्रयोग वर्ष 2011 में ईरान में किया गया था। इसके तहत औसत दर्जे की घरेलू आय के 29% को हर माह जरुतमंदों को हस्तांतरित किया गया। इसी तरह की योजना को लागू करने की घोषणा कनाडा, फिनलैंड और नीदरलैंड में भी की गई है। भारत, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, न्यूजीलैंड, नामीबिया, स्कॉटलैंड और जर्मनी में भी ऐसी योजना को लागू करने के लिये प्रयास किये जाते रहे हैं।

इस आलोक में एक धारणा यह है कि मुफ्त पैसा लोगों को आलसी बनाता है और लाभार्थी काम करने से परहेज करने लगते हैं अर्थात श्रम आपूर्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जबकि दूसरा पहलू यह है कि नकद हस्तांतरण सशर्त या बिना शर्त घरों की आय बढ़ाता है और इससे श्रम आपूर्ति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।

वर्ष 2015 में बनर्जी, हन्ना, क्रेन्डलर और ओल्केन ने 6 विकासशील देशों, होंडुरास, मोरक्को, मैक्सिको, फिलीपींस, इंडोनेशिया और निकारागुआ में श्रम की आपूर्ति पर सरकारी नकदी हस्तांतरण योजनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया था और अपने अध्ययन में उन्होंने नकद हस्तांतरण के प्रावधान से पुरुषों या महिलाओं की श्रम आपूर्ति चाहे वह घर में हो या बाहर, में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं पाई थी।

भारत दुनिया का पहला देश होगा जो 12 करोड़ से अधिक किसानों को इस प्रकार की प्रत्यक्ष आय हस्तांतरण प्रदान करने जा रहा है, जो दुनिया के दूसरे देशों में ऐसी नकद हस्तांतरण योजना को लागू करने वाले लाभार्थियों की औसत संख्या से 40,000 गुना अधिक है। हालाँकि, राजकोषीय स्थिति में सुधार आने के बाद मौजूदा राशि को बढ़ाकर प्रति माह 13 यूएस डॉलर किया जा सकता है।

इस योजना का एक सकारात्मक पक्ष यह है कि इसकी मदद से वंचित तबकों का आर्थिक एवं सामाजिक रूप से उन्नयन करने के साथ-साथ मौजूदा सब्सिडी या अन्य सरकारी योजनाओं को लागू करने के दौरान बिचौलिये, भ्रष्टाचार आदि पर भी लगाम लगेगा, जिससे सरकारी निधि के बंदरबाँट की संभावना कम होगी।

फोटो साभार : Uttarpradesh.org

किसानों के लिये अन्य राहतें

अंतरिम बजट में यह भी घोषणा की गई है कि प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित सभी किसान, जिन्हें राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) से सहायता प्रदान की जाती है को 2% के ब्याज सबवेंशन का लाभ दिया जायेगा साथ ही साथ पुनर्गठित कर्ज की पूरी अवधि के लिये ब्याज में 3% की अतिरिक्त राहत किस्त एवं ब्याज की त्वरित पुनर्भुगतान प्रोत्साहन के तौर पर दिया जायेगा। वर्तमान में ऐसे प्रभावित किसानों को फसली ऋण को पुनर्गठित करने पर पुनर्गठित ऋण के पहले वर्ष के लिये ही केवल 2% ब्याज सबवेंशन का लाभ मिलता है।

पशुपालन और मत्स्य पालन क्षेत्र को सहायता प्रदान करने के लिये सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लिये आवंटन बढ़ाकर 750 करोड़ रुपये कर दिया है। पशुपालन और मत्स्य पालन करने वाले किसानों को भी अब किसान क्रेडिट कार्ड जारी किया जायेगा। साथ ही, कृषि क्षेत्र की तरह किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से ऋण प्राप्त करने वाले पशुपालन और मत्स्य पालन की गतिविधियों से जुड़े किसानों को भी 2% ब्याज सबवेंशन का लाभ प्रदान किया जायेगा।

इसके अलावा, अगर वे समय से कर्ज का पुनर्भुगतान करते हैं तो उन्हें अतिरिक्त 3% ब्याज सबवेंशन का भी लाभ मिलेगा। यह पहल कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिये ऋण प्रवाह को बढ़ायेगी और किसानों पर ब्याज का भार कम होगा, जिससे कृषि गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की बढ़ोतरी पर लगाम लगेगा।

सरकार ने मत्स्य पालन के विकास के लिये और इस क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिये मत्स्य पालन विभाग बनाने का निर्णय लिया है। वर्तमान में 6.3% वैश्विक उत्पादन के साथ भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है, जिसने हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में औसतन 7% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर्ज की है। यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर लगभग 1.45 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करता है।

सरकार ने गाय से जुड़े संसाधनों को बढ़ाने एवं उनके आनुवंशिक उन्नयन को सुनिश्चित करने व उन्हें बढ़ाने और गायों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिये “राष्ट्रीय कामधेनु आयोग” को स्थापित करने की घोषणा की है। आयोग गायों के लिये बनाये जाने वाले कानूनों और कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने का काम देखेगा।

बीते सालों से दुनिया भर में भारतीय नस्ल की गायों के दूध की गुणवत्ता और पोषण श्रेष्ठता के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। भारतीय नस्ल की गायों के दूध की बड़ी मांग को देखते हुए भारत को अपने अनुसंधान कार्यों में सुधार करने एवं दूध का निर्यात बढ़ाने के लिये कोशिश करने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे ढेरों अवसर हमारे पास हैं।

भविष्य में सरकार बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन में दूध देने पर भी विचार कर सकती है, जिससे बच्चे के पोषण में सुधार होगा और पूरे भारत में किसानों की आय बढ़ेगी। इस पर 10,000 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है, लेकिन यह किसानों को अतिरिक्त आय के रूप में लगभग 7,000 रुपये प्रति वर्ष प्रदान करेगा। साथ ही, यह 10 करोड़ भारतीय बच्चों के समग्र स्वास्थ्य मानकों को भी बढ़ायेगा। कहा जा सकता है कि सरकार के बजटीय प्रावधानों से किसानों के हालात में सुधार आने की पूरी संभावना है।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)