लाल किले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने नए भारत की उपलब्धियों और आकांक्षाओं को स्वर दिया है!

प्रधानमंत्री के विरोध में विपक्ष इतना अधिक विवेकहीन  हो चुका है और इस कदर वैमनस्यता से भरा हुआ है कि अब ये लोग देश के सबसे बड़े महापर्व स्‍वतंत्रता दिवस के आयोजन का ही बहिष्कार करने लगे हैं। इनके लिए इनका विरोध देश से भी बढ़कर है। इसी से इनकी मानसिकता का पता चलता है।

गत 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्‍वतंत्रता दिवस पर लगातार दसवीं बार लाल किले से देश को संबोधित किया। यह भी अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है कि कोई प्रधानमंत्री एक दशक तक लगातार लाल किले की प्राचीर से वर्ष दर वर्ष अपना संदेश देश को दे रहा है। प्रधानमंत्री का ताजा भाषण कई बिंदुओं पर आधारित था लेकिन यदि मोटे तौर पर गौर किया जाए तो इस बार उनके संबोधन, लक्षित संदेश सब पिछले वर्षों से अलग थे।

भाषण का आरंभ ही उन्‍होंने ‘मेरे परिवारजनों’ से किया। उन्‍होंने देशवासियों अथवा भाइयों-बहनों नहीं कहा। कहा जा सकता है कि राष्‍ट्र के प्रति उनका भाव अब एक दशक में और अधिक घनीभूत हो गया है। सो वे समूचे राष्‍ट्र को अब अपने परिवार के रूप में ही संबोधित कर रहे हैं। बात सही भी है। वैसे, प्रधानमंत्री मोदी ने स्‍वयं को कभी भी शासक अथवा राष्‍ट्राध्‍यक्ष की तरह नहीं, अपितु सदैव एक सेवक या सदस्‍य के तौर पर ही बताया है, उसी अनुसार आचरण भी किया है।

मोदी सरकार के नौ वर्षों का अपना विशेष महत्‍व है। देश की प्रगति की दिशा में ये बीते नौ साल बहुत निर्णायक रहे हैं। अपने भाषण में तथ्‍यों का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2014 में जब हम सत्ता में आए तो वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में हम 10वें स्थान पर थे। आज 140 करोड़ भारतीयों के प्रयास से हम वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में पांचवें स्थान पर पहुंच गए हैं। यह ऐसे ही नहीं हुआ  जब भ्रष्टाचार के राक्षस ने देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया था तब हमने इसे रोका और एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाई।

साभार : PIB

आज भारत को G20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी का अवसर प्राप्त हुआ है। बीते वर्ष में जिस प्रकार भारत के कोने-कोने में G20 के अनेक आयोजन हुए, उससे दुनिया को भारत के सामान्य जन की सामर्थ्य और भारत की विविधता का परिचय हुआ है।

इसे दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक ही कहेंगे कि कांग्रेसी नेताओं-पदाधिकारियों ने स्वतंत्रता दिवस के इस ध्वजारोहण समारोह का बहिष्कार किया तथा उनके लिए निर्धारित सीटें रिक्‍त रहीं और इसके उलट उन्‍होंने अपने पार्टी मुख्‍यालय पर ही झंडोत्‍त्‍लन किया। विपक्ष का यह व्यवहार निराश तो करता है लेकिन चौंकाता नहीं।

प्रधानमंत्री के विरोध में विपक्ष इतना अधिक विवेकहीन हो चुका है कि अब ये लोग देश के सबसे बड़े महापर्व स्‍वतंत्रता दिवस के आयोजन का ही बहिष्कार करने लगे हैं। इनके लिए इनका विरोध देश से भी बढ़कर है। इसी से इनकी मानसिकता का पता चलता है। इनकी इसी ग्रंथि को प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भी आड़े हाथों लिया। अपने भाषण में उन्‍होंने बिना किसी दल का नाम लिये परिवारवाद पर जमकर प्रहार किया। उन्‍होंने कहा कि समय की मांग तीन बुराइयों से लड़ने की है – भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण।

परिवारवाद और तुष्टीकरण देश के सामने बड़ी चुनौती है। किसी राजनीतिक दल का प्रभारी केवल एक ही परिवार कैसे हो सकता है? उनके लिए उनका जीवन मंत्र है- परिवार की पार्टी, परिवार द्वारा और परिवार के लिए। मोदी का भाषण केवल आलोचनात्‍मक ही नहीं, बल्कि भविष्‍य के लिए आशान्वित, दूरदर्शी भी था। सकारात्‍मकता के साथ उन्‍होंने कहा कि  ‘मुझे दृढ़ विश्वास है कि 2047 में जब देश आजादी के 100 वर्ष मनाएगा तो वह एक विकसित भारत होगा। मैं यह बात अपने देश की क्षमता और उपलब्ध संसाधनों के आधार पर कहता हूं।‘

वास्तव में, आज विश्वभर में भारत के सामर्थ्य के प्रति एक नया विश्वास पैदा हुआ है। आज भारत की ओर दुनिया अचंभे से देख रही है। उनके भाषण में एक और बात स्‍पष्‍ट रूप से गौर करने वाली रही कि उन्‍हें सत्‍ता में वापसी का पूरा आत्‍मविश्‍वास है। इसके बूते पर ही उन्‍होंने कहा कि वे अगले साल 2024 में भी यहां झंडोत्‍तलन करने आएंगे।

कुछ ऐसी ही बात वे पिछले दिनों भारत मंडपम के शुभारंभ पर दिए अपने भाषण में भी कह चुके हैं। उन्‍होंने कहा था कि वे अपने तीसरे कार्यकाल में देश को विश्‍व की टॉप 5 इकोनॉमी में शामिल करना चाहते हैं। वस्तुतः अपनी सरकार के एक दशक के कार्यों, योजनाओं की सफलता, भारत की बढ़ती वैश्विक प्रतिष्ठा के फलस्वरूप सरकार के प्रति जनता के दृढ़ विश्वास के आधार पर ही वे आत्‍मविश्‍वास से भरकर ऐसा कह पा रहे हैं।

अपने भाषण के दूसरे हिस्‍से में उन्‍होंने केंद्र सरकार की उपलब्धियां भी बताईं।  मोदी ने कहा कि 25 साल से देश में चर्चा चल रही थी कि नया संसद भवन बनेगा। यह मोदी है जिसने समय के पहले संसद बनाकर रख दिया। यह एक ऐसी सरकार है जो काम करती है, जो निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है। ये नया भारत है। यह एक ऐसा भारत है जो आत्मविश्वास से भरा है…ये भारत ना रुकता है, ना थकता है, ना हांफता है और ना ही हारता है।

गौर करें तो कोविड-19 महामारी के बाद एक नई विश्व व्यवस्था, एक नया भू-राजनीतिक समीकरण बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भू-राजनीति की परिभाषा बदल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण में सुदूर गांवों की भी नई परिभाषा जाहिर की। उन्‍होंने कहा कि वाइब्रेंट बॉर्डर गांव को देश का आखिरी गांव कहा जाता था। हमने वह मानसिकता बदल दी। वह देश का आखिरी गांव नहीं हैं। आप सीमा पर जो देख सकते हैं वह मेरे देश का पहला गांव है…मुझे खुशी है कि इस कार्यक्रम के विशेष अतिथि इन सीमावर्ती गांवों के 600 प्रधान हैं। वे यहां लाल किले पर इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने आए हैं।

महिला सशक्तिकरण पर पीएम मोदी ने कहा कि एक चीज जो देश को आगे ले जाएगी वह है महिला नेतृत्व वाला विकास। आज हम गर्व से कह सकते हैं कि नागरिक उड्डयन में सबसे ज्यादा पायलट भारत में हैं। चंद्रयान मिशन का नेतृत्व महिला वैज्ञानिक कर रही हैं। जी-20 देश भी महिला नेतृत्व वाले विकास के महत्व को पहचान रहे हैं।

वास्तव में, अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में एक नया उत्‍साह भर दिया है। वे देश को अगले संभावित कार्यकाल में उन्‍नत राष्‍ट्रों की कतार में सीधे ऊपर ले जाने का लक्ष्‍य लेकर चल रहे हैं। ऐसे में प्रत्‍येक देशवासी का भी यह कर्तव्‍य हो जाता है कि वह राष्‍ट्र की प्रगति में अपना यथोचित योगदान दे तथा प्रधानमंत्री के संकल्प को बल प्रदान करे।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)