‘जीएसटी वही सरकार लागू कर सकती थी जो देशहित में यश-अपयश दोनों के लिए तैयार हो’

विश्व के सबसे बड़े इस कर सुधार के लिए उसी स्तर की इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी। यह वही सरकार कर सकती थी जो देशहित में यश-अपयश दोनों के लिए समान रूप से तैयार हो। यह भी नोटबन्दी जैसा फैसला था। जिसकी सलाह डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर ने दी थी। कभी इंदिरा गांधी के सामने यह प्रस्ताव लाया गया था। वह बोलीं कि उन्हें चुनाव लड़ना है। मतलब नोटबन्दी, जीएसटी आदि पर निर्णायक कदम उठाना अन्य सरकारों के लिए प्रायः असंभव था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव की हार जीत से ज्यादा महत्व देश के दूरगामी कल्याण को दिया। इसलिए इनपर अमल हो सका।

जीएसटी अब देश की एक सच्चाई है। कांग्रेस पार्टी अब इस पर लकीर पीटने का कार्य कर रही है। उसके द्वारा की जा रही नुक्ताचीनी से इतना तो साफ है कि वह कभी इसे लागू नहीं कर सकती थी। कांग्रेस इसे अपने शासन में इसे लागू नहीं कर सकी। यह शर्मिंदगी भी उसे परेशान कर रही है। इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ बताना इसी मानसिकता को प्रदर्शित करता है।

नरेंद्र मोदी ने पिछली मन की बात में कहा था कि जीएसटी काउंसलिंग की सत्ताईस बैठके हुईं। सभी में सर्वसम्मत निर्णय हुए। इसका मतलब है कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री भी इस सहमति में शामिल थे। कांग्रेस के नेता जिस प्रकार इसकी आलोचना कर रहे हैं, वह हास्यास्पद है। कांग्रेस को दस वर्ष और मिल जाते तब भी वह ऐसे ही विचार ही करती रहती। 

विश्व के अधिकांश देश यह कर प्रणाली पहले ही लागू कर चुके हैं। लेकिन उन्हें स्थिति को सामान्य बनाने में पांच वर्ष तक का समय लगा था। अपने यहां  मात्र एक वर्ष में यह व्यवस्था सफलता की दिशा में आगे बढ़ रही है। जीएसटी काउंसिल पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए है। इसे लेकर जो भी समस्याएं हैं, उनका समाधान भी निकाला जा रहा है। छोटे व्यापारियों को अनावश्यक कठिनाई से राहत के लिए भी कुछ सुधार करने चाहिए। जीएसटी की जटिलताएं कम होनी चाहिए। प्रक्रिया को सरल बनाने की दिशा में भी सुधार अपेक्षित है। 

विश्व के सबसे बड़े इस कर सुधार के लिए उसी स्तर की इच्छाशक्ति की आवश्यकता थी। यह वही सरकार कर सकती थी जो देशहित में यश-अपयश दोनों के लिए समान रूप से तैयार हो। यह भी नोटबन्दी जैसा कठिन फैसला था। इसकी सलाह डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर ने दी थी। कभी इंदिरा गांधी के सामने भी यह प्रस्ताव लाया गया था। वह बोलीं कि उन्हें चुनाव लड़ना है। मतलब नोटबन्दी, जीएसटी आदि पर निर्णायक कदम उठाना अन्य सरकारों के लिए प्रायः असंभव था। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव की हार जीत से ज्यादा महत्व देश के दूरगामी कल्याण को दिया। इसलिए इनपर अमल हो सका।

जीएसटी का उद्देश्य  भारत को एक समान बाजार बनाना था जहां कर दरों और  प्रक्रिया में समानता हो। जीएसटी राज्यों के बीच कर विकृतियों और बाधाओं को दूर करने में सहायक साबित हो रही है। राष्ट्रीय स्तर पर एक एकीकृत अर्थव्यवस्था के लिए माहौल बन रहा है। केन्द्रीय और राज्य करों में से अधिकांश को एक कर में शामिल करना दूरगामी लाभ देगा। कानून, कानूनी प्रक्रियाओं और टैक्स  की दरों का एकीकरण और अनुपालन आसानी से हो रहा है।

एक ही लेन-देन के कई करों को दूर किया गया। विभिन्न करों के लिए कई रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता में भी कमी आई है। करदाताओं के पंजीकरण के लिए सामान्य प्रक्रिया, करों की वापसी, कर रिटर्न के समान प्रारूप, आम कर आधार, सामानों और सेवाओं के वर्गीकरण की सामान्य प्रणाली सहित हर गतिविधि के लिए समय-सीमा आदि कराधान प्रणाली को अधिक बेहतर बनाया गया है।

जीएसटी से करदाता  के कामकाज में सुधार के साथ सरकार के राजस्व में वृद्धि हुई है। साथ ही जीएसटी  की बदौलत भारत की रैंकिंग में सुधार की संभावना भी बढ़ गई है।  साथ ही जीडीपी विकास में भी वृद्धि होगी। कर के व्यापक प्रभाव का उन्मूलन करने से वस्तु और सेवाओं की कुल कीमतों में कमी आएगी। वस्तु  की कीमत समान होगी। माल और सेवाओं का आर्थिक मूल्य और कर मूल्य आपूर्ति श्रृंखला में पहचाना जा सकता है। 

जीएसटी अनुपालन ऑनलाइन हो रहा है। यह व्यवस्था एक न एक दिन अपनानी ही थी। सरल कर प्रणाली, सकारात्मक प्रतिस्पर्धा से व्यापारियों को फायदा होगा। उचित कीमतों का विकल्प होने का लाभ उपभोक्ता को मिलेगा। कर के भुगतान के संबंध में छोटे करदाताओं को जीएसटी में विशेष लाभ प्रदान किया गया है। बीस लाख  तक का कारोबार करने वालो के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है।

उत्तर-पूर्व राज्यों, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए यह राशि पचास प्रतिशत से कम है। इन्हें पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है और ना ही उसे जीएसटी का भुगतान करने की आवश्यकता है। तय सीमा के नीचे वाले स्वेच्छा से पंजीकरण कर सकते हैं। आगामी केंद्रीय बजट में करीब साढ़े सात लाख करोड़ रुपये जीएसटी संग्रह का अनुमान लगाया गया था। औसत अनुमान के आधार पर माना जा रहा है कि वित्त वर्ष के अंत में यह तेरह लाख करोड़ रूपये से अधिक होगा।

राज्यों ने अट्ठारह हजार  करोड़ रुपये से ज्यादा का अतिरिक्त राजस्व संग्रह किया। जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद, कर अनुपालन में सख्ती एवं कर के आधार में बढ़ोत्तरी के कारण राज्यों का कर राजस्व  बढ़ा है। जीएसटी के कार्यान्वयन से राज्यों को लाभ हुआ है। पन्द्रह  राज्यों के कर राजस्व में पिछले वित्त वर्ष के मुक़ाबले इस वर्ष चौदह प्रतिशत की वृद्धि हुई। गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब आदि राज्यों ने जीएसटी के कारण अधिकतम राजस्व संग्रह किया।

पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा है कि जीएसटी की रूपरेखा, बुनियादी ढांचा, दर और लागू करने में काफी खामियां थीं, जिसके कारण उद्योगपतियों, व्यापारियों, निर्यातकों और आम नागरिकों के बीच जीएसटी एक खराब शब्द बन गया। वस्तुतः इस विषय पर चिदंबरम आत्मग्लानि से भरे हैं।

जीएसटी लागू करने की जिम्मेदारी उनकी थी। मतदाताओं ने उन्हें दस वर्ष दिए। लेकिन वह कुछ नहीं कर सके। भाजपा सरकार ने इसे तीन वर्ष में लागू कर दिया। कांग्रेस  के प्रवक्ता ने  तुलना एक बार फिर से गब्बर सिंह टैक्स से की है। कहा कि जीएसटी के बहुत से नियम, रिटर्न और टैक्स स्लैब का सामना करने से व्यापारियों का जीवन मुश्किलों भरा और दुखमय हो गया है।

देखा जाए तो आधी रात को जीएसटी पारित कराने में कांग्रेस भी शामिल थी। लेकिन उसे लगा कि प्रारंभ में व्यापारियों को कठिनाई होगी। यह सोच कर कांग्रेस तब भाग खड़ी हुई। तभी से वह इसके पीछे पड़ी है। उसका कहना है कि छोटे दुकानदार आज तक जीएसटी रिटर्न को ऑनलाइन फाइल नहीं कर पा रहे हैं। जिस जीएसटी में छह से अधिक दरें हैं, वो वन नेशन वन टैक्स कैसे हुआ।

कांग्रेस को समझना चाहिए कि छोटे व्यापारियों को राहत दी गई है। जीएसटी काउंसिल अन्य समस्याओं पर भी विचार कर रही है। कांग्रेस को छह स्लैब पर आपत्ति है। मतलब वह मूलभूत जरूरतों और लग्जरी वस्तुओं को एक ही दायरे में रखना चाहती है।लगता है, पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम का ज्ञान विपक्ष में आने के बाद जागृत हुआ है।

दस वर्ष की सत्ता में वह जीएसटी का उचित मसौदा तक नहीं बना सके थे। एक बार संसद में रखने के बाद इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया था। अब जबकि देश जीएसटी को स्वीकार कर चुका है, इस संबन्ध में जो कमियां हैं, उनको दूर करने का प्रयास हो रहा है। ऐसे वक्त में कांग्रेस इसे गब्बर सिंह टैक्स बता कर लकीर पीटने का ही काम कर रही है, जिसका कोई हासिल नहीं है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)