प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हो रहा भारत का पुनर्निर्माण

भावी भारत के निर्माण और प्राचीन भारत के मूल स्वरुप की जब बात आती है तो यह बहस शुरू हो जाती है कि आखिर ‘भारत’ है क्या ? क्या यह महज संविधान शासित लोकतांत्रिक राज्य वाला एक भू-भाग मात्र है अथवा इससे आगे भी इसकी कोई पहचान है ? इस बहस के सन्दर्भ में अगर समझने की कोशिश की जाय तो भारत कोई 1947 में पैदा हुआ देश नहीं है। इसका एक अतुलनीय इतिहास रहा है, विराट वैभव रहा है और समृद्ध संस्कृति रही है। इसमें कोई शक नहीं कि लम्बे समय की दासता की बेड़ियों ने भारत और भारतीयता के मूल स्वरुप को कुछ हद तक प्रभावित जरुर किया है। लेकिन इसकी मूल अवधारणा को पूरी तरह से खत्म करने में कोई भी आक्रमणकारी शासक सफल नहीं हो सका है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के देशों को यह बता पाने में कामयाबी हासिल की है कि उनके लिए भारत और भारत के लोग कितने अहम हैं। दुनिया के विविध देशों में जाकर वहां रह रहे भारतीयों से सीधा संवाद करने की मोदी की नीति इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। वैश्विक पटल पर भारतीयता की परम्परागत प्रणालियों को स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की मान्यता प्राप्त करने को माना जा सकता है। योग भारत की प्राचीनतम क्रिया है और इस बात को दुनिया को समझाने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत कम समय में किया है। कहीं न कहीं योग को लेकर भारत ने दुनिया में एकबार फिर अपनी प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित किया है जो किसी जमाने में हुआ करती थी। मोदी विदेश नीति के मामले में भी स्पष्ट रुख रखते हैं। वे इसबात को अनेक बार दोहरा चुके हैं कि न हम दुनिया से आँख उठाकर बात करेंगे न आँख झुकाकर बात करेंगे, बल्कि आँख में आँख मिलकर बात करेंगे।

आजादी के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु भारत के नवनिर्माण की बात करते थे, जबकि इसके उलट जनसंघ भारत के पुनर्निर्माण की वैचारिक सोच के साथ आगे बढ़ा। नवनिर्माण और पुनर्निर्माण के बीच जो वैचारिक फर्क है, वही कांग्रेस और भाजपा के बीच का वैचारिक फर्क भी है। हालांकि आजादी के बाद लम्बे समय तक देश की सत्ता कांग्रेस के हाथों में ही रही है जबकि पुनर्निर्माण की विचारधारा का संकल्प लेने वाली भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार पहली बार आज से तकरीबन ढाई साल पहले 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी। पूर्ण बहुमत की इस सरकार के बनने के बाद तमाम अपेक्षाएं भी इस सरकार से लगी हुई हैं। लेकिन भारत के पुनर्निर्माण की जो परिकल्पना है, उसको लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच स्पष्ट दिखाई देने लगी है। यह सच है कि विश्वगुरु के रूप में दुनिया को ज्ञान देने वाले प्राचीन भारत के उस वैभव को पुन: हासिल करना कम समय में संभव नहीं है, लेकिन उस दिशा में जिस ढंग से प्रधानमंत्री मोदी लगातार प्रयासरत हैं, ऐसा लगता है कि एकबार पुन: भारत का लोहा दुनिया मानने लगी है। खुले मंच से देश-विदेश में जाकर और वहां अपने देश के नागरिकों के साथ प्रधानमंत्री ने संवाद की जिस प्रक्रिया की शुरुआत की है, वह कहीं न कहीं भारत को विश्व के पटल पर पुन: स्थापित करने के लिहाज से बेहद कारगर होती दिख रही है।

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साभार: गूगल

दुनिया के विभिन्न देशों में भारतीय सनुदाय के लोग पहले भी रहते थे लेकिन असंगठित होने की वजह से उनका महत्व उन देशों में वैसा नहीं था। प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के देशों को यह बता पाने में कामयाबी हासिल की है कि उनके लिए भारत और भारत के लोग कितने अहम हैं। दुनिया के विविध देशों में जाकर वहां रह रहे भारतीयों से सीधा संवाद करने की मोदी की नीति इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। वैश्विक पटल पर भारतीयता की परम्परागत प्रणालियों को स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम अन्तराष्ट्रीय योग दिवस की मान्यता प्राप्त करने को माना जा सकता है। योग भारत की प्राचीनतम क्रिया है और इस बात को दुनिया को समझाने का काम प्रधानमंत्री मोदी ने बहुत कम समय में किया है। कहीं न कहीं योग को लेकर भारत ने दुनिया में एकबार फिर अपनी प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित किया है जो किसी जमाने में हुआ करती थी। मोदी विदेश नीति के मामले में भी स्पष्ट रुख रखते हैं। वे इसबात को अनेक बार दोहरा चुके हैं कि न हम दुनिया से आँख उठाकर बात करेंगे न आँख झुकाकर बात करेंगे, बल्कि आँख में आँख मिलकर बात करेंगे। मोदी का यह कहना अब सही साबित होता दिख रहा है। देश की आंतरिक स्थिति की बात करें तो देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो देशवासियों के लिए खुद का सर्वाधिक समय समर्पित करता है। मोदी ने देश के लोगों से संवाद की प्रक्रिया को कई माध्यमों से सशक्त करने की दिशा में काम किया है। चाहें ई-शासन के माध्यम से हो अथवा मन की बात एवं ऑनलाइन कांफ्रेंस के माध्यम से हो, मोदी जनता के बीच लगातार पहुँचने को लालायित और उत्सुक दिखते हैं। वे जन भागीदारी से सरकार की नीतियों को बनाने के लिए लगातार जनता से सुझावों को अपील करते हैं। जनता के प्रति मोदी का विशवास यह दर्शाता है कि वे जनता की शासन में भागीदारी को अधिकतम सुनिश्चित करके, लोकतंत्र को अधिकतम लोक के करीब ले जाने की कोशिश में लगातार प्रयासरत हैं।

पैंसठ साल तक एक दूसरी विचारधारा के शासन में चलने वाले देश को जब एक एकदम उलट विचारधारा का शासन मिलता है तो बदलाव के लिए ढाई साल का वक्त बेहद कम माना जा सकता है। लेकिन यह प्रधानमंत्री मोदी के सतत परिश्रम का परिणाम है कि आज बदलाव की आहट दिखने लगी है। तमाम सर्वेक्षण इस बात की तस्दीक करते हैं कि आज भी मोदी के प्रति जनता के मन में कोई शंका नहीं है और आज भी वो अपने इस परिश्रमी नेता को सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित करती है। मोदी विश्व पटल पर अतुलनीय भारत के दूत बनकर उभरे हैं तो वहीँ भारत की जनता के बीच भारत के पुनर्निर्माण के वाहक के तौर पर भी स्थापित हुए हैं, जिसे राजनीतिक पंडित ‘मोदी-युग’ कहते हैं, दरअसल यह अतुलनीय भारत के पुन: प्रतिष्ठित होने का युग है।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन के संपादक हैं।)