मोबाइल विनिर्माण की वैश्विक धुरी बनता भारत

मोदी सरकार के जमीनी प्रयासों का नतीजा है कि जिस देश में 2014 में मात्र 2 मोबाइल फोन कारखाने थे, वही देश आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।

वर्ष 2022-23 में भारत में 3.5 लाख करोड़ रुपये के मोबाइल फोन का उत्पादन हुआ। इस समय सैमसंग, एप्पल सहित कई वैश्विक ब्रांड भारत में मोबाइल फोन का विनिर्माण कर रहे हैं। गूगल भी भारत में मोबाइल निर्माण की पहल कर चुका है। देश में बिकने वाले मोबाइल फोन में से 97 प्रतिशत स्मार्टफोन देश में ही निर्मित हो रहे हैं। यही कारण है कि 2014-15 में जहां 78 प्रतिशत मोबाइल फोन आयात होते थे वहीं अब यह अनुपात घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह गया है।

मोबाइल फोन उत्पादन के लिए स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने से उत्पादन और निर्यात के क्षेत्र में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही रोजगार में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इस क्षेत्र ने 7.5 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर का सृजन किया है। यह उपलब्धि मोदी सरकार की उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) के कारण हासिल हुई है। पीएलआई योजना से पहले स्वदेशी फोन का केवल एक प्रतिशत निर्यात होता था वहीं पीएलआई योजना से अगले पांच वर्ष के दौरान लगभग चार लाख करोड़ रुपये के निवेश की उम्मीद है। इससे देश में 60 लाख नौकरियां सृजित होंगी।

पीएलआई से भारत के डिजाइन और पुर्जा निर्माण का विकास भी उत्साहजनक रहा है। इस क्षेत्र में घरेलू मूल्यवर्धन लगातार बढ़ रहा है और कुछ उत्पादों में तो यह 60 प्रतिशत तक है। यही कारण है कि विदेशी कंपनियां भी अब भारतीय कंपनियों से स्मार्ट फोन बनवाने लगी हैं। उदाहरण के देश की सबसे बड़ी इलेक्ट्रॉनिक निर्माता कंपनी डिक्सन चीनी मोबाइल फोन निर्माता शाओमी के लिए स्मार्ट फोन बनाना शुरू कर दिया है। डिक्सन कंपनी हर साल 2.5 करोड़ स्मार्टफोन उत्पादन की क्षमता रखती है।

वैश्विक स्तर पर भारत में निर्मित मोबाइल फोन की मांग बढ़ रही है। यही कारण है कि भारत से निर्यात होने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्यात में मोबाइल फोन की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात भी 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और निर्यात 1 लाख 85 हजार करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया है।

इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों के निर्माण में भारत की बढ़ती विश्वसनीयता का परिणाम है कि दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में अपने कारोबार बढ़ाने के साथ-साथ देशभर में निवेश के लिए प्रतिबद्ध हैं। जेपी मॉर्गन की रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक एप्पल उत्पादों का एक चौथाई उत्पादन चीन से बाहर होने लगेगा जबकि अभी एप्पल उत्पादों का सिर्फ पांच प्रतिशत उत्पादन चीन से बाहर होता है। रिपोर्ट के अनुसार एप्पल के इस फैसले का लाभ भारत व वियतनाम को मिलेगा।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत में फोन निर्माण में जुटी चीन की कंपनियों पर भी अब निर्यात शुरू करने का दबाव है। इसी को देखते हुए शाओमी से लेकर वीवो तक चालू वित्त वर्ष में बड़े पैमाने पर मोबाइल फोन निर्यात की तैयारी कर रही हैं। पीएलआई के कारण अगले साल से भारत में ही लैपटॉप व अन्य गैजेट्स का भी निर्माण शुरू हो जाएगा। तकनीक पर जोर होने के कारण भारत में ऐप भी बड़ी संख्या में विकसित किए जा रहे हैं और वित्तीय सेक्टर से लेकर शिक्षा तक एप पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।

इसी को लक्ष्य करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा “नया भारत केवल प्रौद्योगिकी का उपभोक्ता नहीं रहेगा बल्कि भारत उस प्रौद्योगिकी के विकास और कार्यान्वयन में सक्रिय भूमिका निभाएगा। इसी का परिणाम है कि जो देश 2014 में शून्य मोबाइल फोन निर्यात करता था वह आज हजारों करोड़ रुपये के मोबाइल फोन निर्यात करने वाला देश बन गया है।”

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार ने 2017 में मोबाइल हैंडसेट के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (पीएमपी) की घोषणा की थी। इसने भारत में एक मजबूत स्वदेशी मोबाइल विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सहायता की और बड़े पैमाने पर विनिर्माण को प्रोत्साहित किया। इसने कंपनियों को आयात से विनिर्माण की ओर बढ़ने में मदद की। इसी का परिणाम है कि 2014 में जहां मात्र 2 मोबाइल फोन कारखाने थे वहीं आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।