राष्ट्रीय हितों की दिशा में उचित कदम है भारत का आरसेप में शामिल न होना

यदि भारत इस समझौते में शामिल हो जाता तो चीन को भारतीय बाजार में पैर पसारने का अच्छा मौका मिल जाता। इसमें चीन से आनेवाली 80 प्रतिशत वस्तुओं पर और अन्य देशों से आनेवाली 90 से 95 प्रतिशत वस्तुओं पर आयात शुल्क को शून्य करने का प्रस्ताव था। आसियान देशों के साथ हमारा मुक्त व्यापार समझौता पहले से ही है, जो 2011 में कांग्रेस सरकार ने किया था। इस समझौते के बाद आसियान देशों से व्यापार घाटा लगभग तीन गुना बढ़ चुका है। वर्तमान में आरसीईपी देशों के साथ हमारा व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर के लगभग है। यदि यह समझौता हो जाता, तो शून्य आयात शुल्कों के कारण इन मुल्कों से आयातों की बाढ़ आ जाती और व्यापार घाटे में अत्यधिक वृद्धि होने लगती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकाक में 4 नवम्बर, 2019 को आसियान देशों के प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते आरसेप यानी रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप में भारत के शामिल नहीं होने का फैसला किया। आरसीईपी सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने कहा कि गांधी जी के सिद्धांत और अपनी अंतरात्मा की वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया है।

दरअसल भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर कर देता तो भारतीयों और खासकर समाज के कमजोर वर्ग के लोगों और उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ता, ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने महात्मा गांधी की उस सलाह को ध्यान में रखा जिसमे गांधी जी ने कहा था कि सबसे कमजोर और सबसे गरीब व्यक्ति का चेहरा याद करो और सोचो कि जो कदम तुम उठाने जा रहे हो, उसका उन्हें कोई फायदा पहुंचेगा या नहीं।

भारत आरसेप की चर्चाओं में शामिल हुआ और उसने अपने हितों को सामने रखते हुए मजबूती से मोलभाव भी किया किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में इस समझौते में शामिल न होना ही भारत के लिए सही फैसला था। मोदी ने कहा कि हम इस क्षेत्र के साथ कारोबार, निवेश और लोगों के रिश्तों को प्रगाढ़ करना जारी रखेंगे।

जाहिर है, डब्लूटीओ के बाद से विश्व के दूसरे बड़े आर्थिक समझौते से बाहर रहने का ये निर्णय प्रधानमंत्री मोदी के लिए कठिन था, लेकिन उन्होंने भारत के हितो की रक्षा  होते न देख इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस निर्णय  से अपनी गहरी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया है। यदि  भारत इस समझौते में शामिल हो जाता तो विश्व की तकरीबन आधी आबादी और विश्व की 35 फीसदी जीडीपी आरसीईपी के नियंत्रण में चली आती। इसका असर भारत की अर्थव्यवस्था के प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रों में वर्षों से सक्रिय करोड़ों नागरिकों पर होता।

प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से एकबार पुनः यह स्पष्ट हुआ कि देश और जनता के हित उनके हाथ में सुरक्षित हैं तथा उनके लिए भारत सबसे पहले है। साथ ही यह निर्णय प्रधानमंत्री मोदी के मजबूत नेतृत्व और सभी परिस्थितियों में राष्ट्रीय हित सुनिश्चित करने के उनके संकल्प को दिखाता है। इस निर्णय से प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व को एक संदेश भी दिया है कि विश्व से रिश्ते बनाने में हमें अपने देश और अपने लोगों के हितों को ही सर्वोपरि रखना चाहिए।

गौरतलब है कि भारत ने सदस्‍य देशों के समक्ष अपनी प्रमुख मांगों को मजबूती से रखा और यह स्‍पष्‍ट कर दिया है कि भारत अपने राष्‍ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। भारत की प्रमुख मांग व्यापार घाटे को संतुलित करना, भारतीय सामान और सेवाओं के लिए बेहतर बाजार तक पहुंच बनाना और अपने उद्योगों के संरक्षण के लिए अनुचित आयात गतिविधियों पर रोक लगाना थी, जिस पर सकारात्मक निर्णय एवं सहमति ना बनने की वजह से आखिरी समय में भारत ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।

यह बात भी सच है कि यदि भारत इस समझौते में शामिल हो जाता तो चीन को भारतीय बाजार में पैर पसारने का अच्छा मौका मिल जाता। इसमें चीन से आनेवाली 80 प्रतिशत वस्तुओं पर और अन्य देशों से आनेवाली 90 से 95 प्रतिशत वस्तुओं पर आयात शुल्क को शून्य करने का प्रस्ताव था।

आसियान देशों के साथ हमारा मुक्त व्यापार समझौता पहले से ही है, जो 2011 में हुआ था। इस समझौते के बाद आसियान देशों से व्यापार घाटा लगभग तीन गुना बढ़ चुका है। वर्तमान में आरसेप देशों के साथ हमारा व्यापार घाटा 105 अरब डॉलर के लगभग है। यदि यह समझौता हो जाता, तो शून्य आयात शुल्कों के कारण इन मुल्कों से आयातों की बाढ़ आ जाती। अतः प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इस निर्णय से स्पष्ट किया है कि आज का भारत एक नया भारत है, और वह अपने देश की आकांक्षाओं के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)