ब्रिक्स के मंच से भी पाक को अलग-थलग करने की नीति को आगे बढ़ाएगा भारत

भारत के तटीय राज्य गोवा में आगामी 15 और 16 अक्टूबर को भारत की मेजबानी और अध्यक्षता में आठवीं ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। ऐसे समय में, जब समूचा विश्व आतंकवाद, राजनीतिक संकट, सुरक्षा चिंता और आर्थिक मंदी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, वैसे में ब्रिक्स जैसे  वैश्विक संगठनो का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। भारत इस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा जोर-शोर से उठाएगा।  इस बार ब्रिक्स शिखर बैठक का आयोजन वैश्विक आतंकवाद की समस्या और मेजबान देश भारत में हाल ही में हुए पठानकोट व उड़ी जैसे सिलसिलेवार हमलों के साये में हो रहा है। भारत ने हाल में ही पाक प्रेरित उड़ी आतंकी हमले में अपने 20 जवानो की शहादत को झेला है, जिसकी समूचे विश्व ने कड़ी निंदा की है और आतंकवाद को वैश्विक चुनौती माना है। इस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा होगा। भारत पड़ोसी पाकिस्तान को इन आतंकी हमलों का जिम्मेदार मानता है, जिसके प्रधानमंत्री बुरहान वानी जैसे आतंकवादी को जिसे भारत की सेना ने मुठभेर में मार गिराया, उसे ही संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच से शहीद का दर्जा देते हैं, जिससे पाकिस्तान का काला चेहरा उजागर हो जाना स्वाभाविक है।

भारत की पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की नीति कामयाब होती दिख रही है, जहाँ सार्क के सभी सदस्य राष्ट्रों ने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की है और पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया है, जिससे पाकिस्तान को बहुत फजीहत का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान दक्षिण एशिया मे तन्हा हो गया है, जिसका परिणाम है कि उसके घर के अंदर ही विरोध का बिगुल फूटने लगा है।

भारत, पाकिस्तान को वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर चौतरफा घेरने और उसे हर मोर्चे पर अलग-थलग करने की अपनी घोषित रणनीति के तहत ब्रिक्स मंच के माध्यम से भी पाकिस्तान पर दवाव बनाएगा। पाकिस्तान पर दवाब बनाने के उद्देश्य से ही इस बार ब्रिक्स के सदस्य देशों ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका के अलावा बिम्सटेक के सदस्य देश बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, भूटान, नेपाल को भी इस सम्मेलन में बतौर आमंत्रित सदस्य देश शामिल किया गया है। इनमें से थाईलैंड और म्यांमार को छोड़ सभी देश सार्क के भी सदस्य देश हैं। हालांकि पाकिस्तान को इसमें शामिल नहीं किया गया है। भारत ब्रिक्स के माध्यम से आतंकवाद, रक्षा, सुरक्षा और व्यापर जैसे मुद्दों पर व्यापक आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा। ब्रिक्स सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग से  द्विपक्षीय वार्ता भी होगी।

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प्रधानमंत्री मोदी के रूस से उसके पाकिस्तान के साथ संयुक्त सैन्याभ्यास और आतंकवाद जैसी द्विपक्षीय समस्याओं पर बात करने की भी सम्भावना है। हालांकि रूस ने भारतीय सेना की ताजा सर्जिकल स्ट्राइक को भारत के सुरक्षा के लिए जरुरी बताया और उसे जायज ठहराया है। साथ ही रूस से अटके पड़े 5s “ट्राइंफ” लार्ज रेंज एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम, कमोव-28 हेलीकोप्टर्स एवं सुखोई 50-एमकेआईएस को उन्नत करने संबंधी डील पर भी बात होने की संभावना है। रूस इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की  अध्यक्षता कर रहा है, जहां पाकिस्तान ने भारत द्वारा पाक अधिकृत जम्मू कश्मीर मे किए गए सर्जिकल स्ट्राइक और कश्मीर मे जारी तनाव से संबन्धित विषय पर चर्चा कराने से इंकार कर दिया, जिससे पाकिस्तान का पक्ष इन मुद्दो पर और कमजोर हुआ। हालाँकि चीन ने इसे द्विपक्षीय मुद्दा बताया और कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी  की कोशिश आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना  मसूद अजहर पर प्रतिबंध से संबंधित प्रस्ताव पर चीन का समर्थन प्राप्त करने की भी होगी जिसे वह संयुक्त राष्ट्र में बार-बार तकनिकी समस्या बता कर वीटो कर दे रहा है।

भारत की पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की नीति कामयाब होती दिख रही है, जहाँ सार्क के सभी सदस्य राष्ट्रों ने पाकिस्तान की कड़ी आलोचना की है और पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया है, जिससे पाकिस्तान को बहुत फजीहत का सामना करना पड़ा है। पाकिस्तान दक्षिण एशिया मे तन्हा हो गया है, जिसका परिणाम है कि उसके घर के अंदर ही विरोध का बिगुल फूटने लगा है। भारत के ताजा फैसलों से पाकिस्तान घबराया-बौखलाया हुआ है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि वहाँ के आईएसआई प्रमुख की छुट्टी कर दी गयी है। पाकिस्तान के साथ 46 अरब डालर कि सीपेक (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) को लेकर चीन चिंतित है। उसे जहां उसके प्रोजेक्ट्स के सुरक्षा की चिंता है, वही चीन को दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर भारत का साथ चाहिए, वहीं वह पाकिस्तान को भी नाराज नहीं करना चाहता है। ऐसे स्थिति में चीन ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भारत, सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा। भारत की कोशिश है कि ब्रिक्स के सदस्य देशों को आतंकवाद और आतंकवादियों को धन और पनाह देने वाले देशों पर साझा कार्रवाई करने को राजी किया जाये। कुल मिलाकर कहें तो ब्रिक्स के माध्यम से भी अब भारत पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद को लेकर उसे अलग-थलग करने की अपनी कामयाब नीति को और आगे बढ़ाएगा।

(लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)