मोदी सरकार के साहसिक क़दमों से बदल रही देश के अर्थतंत्र की तस्वीर

सितंबर 2014 में जापान की यात्रा पर गये मोदी ने वहां निवेशकों के साथ एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत में ‘रेड-टैप नहीं, रेड-कारपेट हैl’ रेड-टैप को रेड-कारपेट में बदलने का कार्य मोदी के विजन में प्राथमिकता पर रहा होगा, तभी उन्होंने पद सम्हालने के महज चार महीने बाद विदेशी मंचों से यह कहना शुरू कर दिया थाl हालांकि, यह बदलाव कर पाना कोई चुटकियों का काम नहीं थाl कानूनी सुधारों को अमली जामा पहनाने में कठिनाइयाँ थींl लेकिन यह भी उतना सच है कि चाहें कड़वी दवा पिलानी पड़ी हो या लोकप्रियता के खोने का खतरा मोलना पड़ा हो, मोदी ने अपने दृष्टिकोण से समझौता नहीं कियाl

महाभारत के शांतिपर्व में एक श्लोक है- स्वं प्रियं तु परित्यज्य यद् यल्लोकहितं भवेत्, अर्थात राजा को अपने प्रिय लगने वाले कार्य की बजाय वही कार्य करना चाहिए जिसमे सबका हित हो। केंद्र की मोदी सरकार के गत साढ़े चार वर्ष के कार्यों का मूल्यांकन करते समय महाभारत में उद्धृत यह श्लोक और इसका भावार्थ स्वाभाविक रूप से जेहन में आता हैl दरअसल स्वतंत्रता के बाद समाजवादी नीतियों की डगर पर चलते हुए कल्याणकारी राज्य की जिस अवधारणा का विकास हुआ, उसमें सरकारी योजनाओं में ‘लोकहित’ की बजाय ‘लोकलुभावन’ की नीति को ज्यादा तरजीह दी गयीl

समाज की यह सामान्य मनोस्थिति है कि वह अपने दूरगामी हितों की बजाय तात्कालिक एवं आकर्षक दिखने वाली नीतियों के प्रति ज्यादा झुकाव रखता हैl यही वजह है कि हर कालखंड में सरकार के सामने नीति-निर्धारण में लोकहित बनाम लोकलुभावन का प्रश्न उभरता हैl

चुनावी राजनीति का बुनियादी सच यह है कि इसके हितधारक राजनीतिक दलों की प्राथमिकता ‘री-इलेक्ट’ होने अर्थात चुनाव में जीतकर आने की होती हैl यहीं से ‘लोक-लुभावन’ शब्द की प्रासंगिकता बढ़ने लगती हैl यह एक साधारण सत्य है कि कोई दर्द निवारक दवा खाकर दर्द से पीड़ित व्यक्ति त्वरित आराम तो महसूस कर लेता है, लेकिन दर्द के मूल वजह का ईलाज उस दवा में नहीं होताl ऐसे में सवाल उठता है कि हमें त्वरित आराम को चुनना ठीक है या जड़ से ईलाज को चुनने की जरूरत है?

साभार : डीएनए इंडिया

आज जब मोदी सरकार के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में किये गये तमाम निर्णयों पर गौर करते हैं, तो हमें लोकहित बनाम लुभावन के अंतर को ध्यान में रखना होगाl मोदी सरकार के कुछ निर्णयों एवं क़दमों का मूल्यांकन भी इसी कसौटी पर होना चाहिएl

आज के दो वर्ष पहले आठ नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने विमुद्रीकरण का ऐलान कियाl विमुद्रीकरण के लगभग आठ महीने बाद एक जुलाई 2017 को सरकार ने अप्रत्यक्ष करों के सुधार की दिशा में ‘एक राष्ट्र एक कर’ के रूप में जीएसटी लागू कराने में सफलता हासिल कीl गत एक वर्षों के इसी कालखंड में सरकार ने इन्सोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी तथा भगौड़ा आर्थिक अपराध विधेयक पारित कियाl ये सारे निर्णय यथास्थितिवाद से टकराने वाले निर्णय थे। लेकिन सरकार ने इन निर्णयों को अमलीजामा पहनाया।

सरकार यह बात जनता को समझाने में कामयाब रही है कि उसके कार्यकाल में किसी भी उद्योगपति ने गलत ढंग से कर्ज नहीं लिया है तथा जिन्होंने पिछली यूपीए सरकार में कर्ज लेकर वापस नहीं किया, वे इस सरकार में खुद को भारत में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे, लिहाजा उन्हें देश छोड़ना पड़ाl

एक तरफ सरकार ने आर्थिक कानूनों को पारदर्शी एवं सुगम बनाने की दिशा में गत साढ़े चार वर्षों में सफलता अर्जित की, वहीं दूसरी तरफ कल्याणकारी राज्य के रूप में लोकहित के ऐसे निर्णय भी लिए, जिनका जनता के हितों से प्रत्यक्ष सरोकार थाl एक तरफ देश को आर्थिक मोर्चे पर कानूनी जटिलताओं से निकलाने की दिशा में कानूनी सुधार करते हुए सरकार ने कदम बढाए तो दूसरी तरफ जनधन योजना, उज्ज्वला योजना, सौभाग्य योजना, आवासीय योजना, स्वच्छता मिशन के तहत शौचालय एवं आयुष्मान योजना जैसे लोकहित के निर्णय लिए हैंl

अगर परिणामों के धरातल पर बात करें तो आर्थिक सुधारों की दिशा में उठाये गये क़दमों तथा सरकार द्वारा किये गए कानूनी सुधारों का असर साफ़ तौर नजर आ रहा हैl कारोबार में सुगमता की दृष्टि से भारत ने चमत्कारिक लक्ष्यों को छुआ हैl वर्ष 2014 में ‘ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस’ की रैंकिंग में भारत 142वें पायदान पर था, जो अब 77वें पायदान पर पहुँच चुका हैl रैंकिंग में दिख रहा यह सुधार कोई आकस्मात हुआ परिवर्तन नहीं है बल्कि यह सुनियोजित प्रणाली के तहत उठाये गए क़दमों का परिणाम हैl

साभार : बिज़नस टुडे

अगले वर्ष तक भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर उभरने की ओर अग्रसर हैl अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर चीन से तेज है, जो आगे भी बढ़त में रहेगी। आईएमएफ ने अपने हालिया वर्ल्ड इकॉनमिक आउटलुक में यह बताया है कि वित्त वर्ष 2019 में भारत की जीडीपी विकास दर 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2020 में 7.4 प्रतिशत रहेगाl यह तमाम परिवर्तन कोई रातों-रात हुए बदलाव नहीं हैं।

सितंबर 2014 में जापान की यात्रा पर गये मोदी ने वहां निवेशकों के साथ एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत में ‘रेड-टैप नहीं, रेड-कारपेट हैl’ रेड-टैप को रेड-कारपेट में बदलने का कार्य मोदी के विजन में प्राथमिकता पर रहा होगा, तभी उन्होंने पद सम्हालने के महज चार महीने बाद विदेशी मंचों से यह कहना शुरू कर दिया थाl

हालांकि, यह बदलाव कर पाना कोई चुटकियों का काम नहीं थाl कानूनी सुधारों को अमली जामा पहनाने में कठिनाइयाँ थींl लेकिन यह भी उतना सच है कि चाहें कड़वी दवा पिलानी पड़ी हो या लोकप्रियता के खोने का खतरा मोलना पड़ा हो, मोदी ने अपने दृष्टिकोण से समझौता नहीं कियाl ऐसा करना उन्हें एक साहसी नेतृत्वकर्ता के रूप स्थापित करता हैl

हालांकि, मोदी की मंशा इतने तक रूकने की नहीं है, वे और आगे जाना चाहते हैंl शायद भारत की व्यापारिक क्षमता, जो प्राचीन और मध्यकाल में रही थी, को पुन: स्थापित करने की मंशा से मोदी कार्य कर रहे हैंl जनवरी 2018 में विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करते हुए मोदी कहते हैं कि हम लायसेंस-परमिट राज को जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैंl भारत में निवेश को सुगम बनाने के लिए हम लगतार कार्य कर रहे हैंl भारत में रेड-टैप नहीं बल्कि रेड-कारपेट हो, इसके लिए कार्य तेजी से हो रहा हैl

दरअसल मोदी के इस दृष्टिकोण का आर्थिक पहलू तो परिणामों में नजर आ रहा है, लेकिन इसका व्यवहारिक पहलू थोड़ा अलग हैl जब परम्परागत रूप से कोई स्थिति एक ढर्रे पर चली आ रही होती है, तो सामान्यतया ‘जोखिम’ की तरफ जाना कोई नहीं चाहताl मोदी ने वो जोखिम लिया हैl लेकिन इससे बड़ी बात यह है कि उनके जोखिम लेने के बावजूद लोकप्रियता की कसौटी पर उन्हें कोई नुकसान होता नही दिख रहाl

इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि मोदी लोकहित बनाम लोकप्रिय के नीति-निर्धारण में संतुलन स्थापित करने में सफल हुए हैंl साथ ही कड़े फैसले लेते समय लोगों के मन में यह भरोसा पैदा करने में भी उन्होंने सफलता हासिल की है, कि वे जो भी कर रहे हैं इसके दूरगामी परिणाम लोकहित में हैंl

दरअसल मोदी की इस सफलता के पीछे एक बड़ा कारण यह नजर आता है कि वे कोई भी कार्य ऐसा नहीं करते जिसका विजन और ब्लू-प्रिंट उनके मन में पहले से तैयार न होl वे जानते थे कि आर्थिक सुधारों की कठिनाइयों से जनता को दो-चार होना पड़ेगाl इसलिए विमुद्रीकरण जैसा कड़ा फैसला उन्होंने तब लिया जब देश के 25 करोड़ से ज्यादा लोगों को जनधन योजना के माध्यम से बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ चुके थेl

अगर इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बैंकिंग से जोड़े बिना विमुद्रीकरण का फैसला मोदी ने लिया होता तो वे शायद इसे किसी भी हाल में सफल नहीं बना पातेl नीति-नियामकों पर शोध करने वालों के लिए यह कम आश्चर्य का विषय नहीं था कि सवा सौ करोड़ के देश में विमुद्रीकरण जैसा निर्णय लेने के बाद भी मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई, बल्कि वृद्धि ही हुईl जनधन योजना विमुद्रीकरण की बुनियाद साबित हुई थीl

उज्ज्वला योजना के माध्यम से मोदी सरकार ने उन करोड़ों घरों में रसोई गैस पहुंचाने का कार्य किया, जिनके लिए यह एक सपना थाl प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022 तक सभी को पक्का मकान देने का जो लक्ष्य सरकार ने रखा है, वह अब उन गरीब बस्तियों में नजर आने लगा है जहाँ कुछ समय पहले तक झोपड़ियाँ नजर आती थींl हर गाँव बिजली के बाद हर घर बिजली पहुंचाने की योजना इसी कड़ी में एक बड़ा कदम हैl

गरीबी कम करने के मामले में भी मोदी सरकार कामयाब होती दिख रही  है। इस दिशा में भारत की प्रगति की सराहना करते हुए विश्‍व बैंक ने भारत को निम्‍न मध्‍यम आय वर्ग वाले देशों से उपर उठकर उच्‍च मध्‍यम आय वाले देशों में शामिल होने के लिए सहायता देने का निर्णय किया है।

हाल में मोदी सरकार द्वारा आयुष्मान भारत के नाम से शुरू स्वास्थ्य योजना के तहत लाभार्थियों के आ रहे आंकड़े मोदी की विश्वसनीयता पर मुहर लगाने वाले हैंl कहना गलत नहीं होगा कि कड़े फैसलों की कड़वाहट में चीनी घोलने का पुख्ता इंतजाम मोदी ने लोकहित की इन योजनाओं के माध्यम से किया जिसकी वजह से उनपर लोगों का भरोसा बढ़ा हैl

(लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फैलो हैंl)