मोदी सरकार ने किया दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों के विकास का रास्ता साफ़

यदि हम बीते दो दशकों का दौर देखें तो दिल्ली में डेढ़ दशक तक कांग्रेस का शासन रहा, उसके बाद गत 5 वर्षों से आम आदमी पार्टी सत्‍ता में है। इसके बावजूद दोनों दलों ने अनधिकृत कॉलोनियों की दिशा में ना कुछ सोचा, ना किया। अब जब मोदी सरकार ने यह बीड़ा उठाया है तो केजरीवाल इसका श्रेय लेने की कोशिश में जुट गए हैं।

राजधानी दिल्‍ली की अवैध कॉलोनियों के निवासियों को मोदी सरकार ने बड़ी सौगात दी है। पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में अहम फैसला लिया गया। इसके बाद दिल्‍ली की अनधिकृत कॉलोनियों को मंजूरी दे दी गई। फिर इससे सम्बंधित विधेयक संसद में पेश हुआ और दोनों सदनों में पारित भी हो गया। चर्चा के दौरान केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को अब विकास के वह सभी लाभ मिल सकेंगे जिनसे अब तक वंचित रहे हैं।

यह तो एक तथ्‍य हुआ लेकिन इसके अपने निहितार्थ हैं। असल में दिल्‍ली में कोई भी विकासोन्मुखी दावा हो या घोषणा, यहां मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल अलग-अलग नीतियां दिखाते हैं। यदि श्रेय लेना हो तो स्‍वयं आगे आ जाते हैं, लेकिन जिम्‍मेदारी उठानी हो तो पीछे हट जाते हैं और केंद्र सरकार को बीच में ले आते हैं।

पिछले दिनों दिल्‍ली में पेजयल की गुणवत्‍ता को लेकर जो हंगामा मचा, उसमें सबने यही देखा। सरकारी आंकड़े जाहिर होने के बाद भी केजरीवाल उसकी दोबारा जांच करवाने में समय नष्‍ट करते रहे लेकिन स्‍वयं का विभाग होने के नाते उन्‍होंने आगे रहकर दिल्‍ली की इस बुनियादी समस्‍या को समझने व हल करने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई।

वैसे भी उनकी सरकार चुनावों के समय बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने में माहिर है। अब यह साल भी बीतने वाला है। अगले साल 2020 का आगाज ही दिल्‍ली में चुनावी हवा के साथ होगा। यहां जनवरी व फरवरी में चुनाव होने वाले हैं। अवैध कॉलोनियों का विषय स्‍थानीय परिप्रेक्ष्‍य में एक बड़ा एवं गंभीर मुद्दा रहा है। आम आदमी पार्टी की सरकार इसे लेकर अक्‍सर केंद्र सरकार पर छींटाकशी करती रही है। लेकिन केजरीवाल ने स्‍वयं इस विषय में कोई कदम नहीं उठाया।

इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मसले को चुनावी वादे के तौर पर जाहिर किया और साल के अंत में आखिर इस पर मुहर लग ही गई। इस कदम के तहत अनाधिकृत कॉलोनियों के निवासियों को मालिकाना हक/मान्यता प्रदान करना आदि शामिल है। सरकार ने ऐसी अनाधिकृत कॉलोनियों के मामलों में दिल्ली भूमि सुधार अधिनियम के मामलों को वापस लेने का निर्देश दिया है।

यदि हम बीते दो दशकों का दौर देखें तो यहां डेढ़ दशक तक कांग्रेस का शासन रहा, उसके बाद गत 5 वर्षों से आम आदमी पार्टी सत्‍ता में है। इसके बावजूद दोनों दलों ने अनाधिकृत कॉलोनियों की दिशा में ना कुछ सोचा, ना किया। अब जब मोदी सरकार ने यह बीड़ा उठाया है तो केजरीवाल इसका श्रेय लेने की कोशिश में जुट गए हैं।

केंद्रीय आवास एवं शहरी मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने हालिया बयान में कहा भी था कि आम आदमी पार्टी की सरकार इस कॉलोनियों के नियमन का श्रेय ले रही है। हालांकि केजरीवाल का कहना था कि इन कॉलोनियों का नियमन होना ही प्राथमिकता है। सवाल यह उठता है कि आखिर केंद्र सरकार को यह सब स्‍वयं करने की जरूरत क्या थी। वह चाहती तो इस मसले को राज्‍य सरकार के हाल पर छोड़ सकती थी और राजनीति कर सकती थी।

लेकिन इस मामले में दिल्‍ली सरकार का लचर रवैया ही रहा है। आप सरकार ने इन कॉलोनियों को चिन्हित करने और इसके बाद इन पर काम करने के लिए वर्ष 2021 तक का समय मांग लिया था। इसका अर्थ यह हुआ कि जो काम आप सरकार 5 साल में भी नहीं कर पाई, उसके लिए अभी 2 साल और चाहिये। यह तो रहवासियों के साथ अन्‍याय हो जाएगा।

आखिरकार केंद्र सरकार को स्‍वयं बीड़ा उठाना पड़ा और खुद ही इन कॉलोनियों को नियमित करने का निर्णय लिया गया। असल में, यह विषय इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इन अवैध कॉलोनियों में रहने वाली आबादी को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ये लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित रहते हैं। केंद्र सरकार ने इनको मालिकाना हक देने का भी फैसला किया है ताकि ये लोग अपनी सुविधा से भूमि की खरीद-फरोख्‍त करने, लोन लेने योग्‍य हो सकें।

केंद्र सरकार के इस अहम फैसले से निम्‍न आय वर्ग का एक बड़ा तबका लाभान्वित होगा। ऐसा करके सरकार ने साबित कर दिया है कि उसके चुनावी वादे महज कहने के लिए नहीं होते बल्कि उसने जो दावे, जो वादे किए, उन्‍हें ससमय पूरा भी करके दिखाया। यह निर्णय निश्‍चित ही सराहनीय है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)