जूट उद्योग के पुनर्जीवन में कामयाब रही मोदी सरकार

औद्योगिक हिंसा, बार-बार तालाबंदी और मंदी के कारण बदनाम हो चुके जूट उद्योग का सूर्योदय होने लगा है। दुनिया भर में प्‍लास्‍टिक उत्‍पादों के खतरों और मोदी सरकार द्वारा सिंगल यूज प्‍लास्‍टिक थैलियों पर प्रतिबंध के बाद जूट से बने सामानों की मांग में अचानक तेजी आई है। स्‍थिति यहां तक आ गई है कि पूरी क्षमता पर काम करने के बावजूद कारोबारी निर्यात आर्डर पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसी को देखते हुए न सिर्फ पुरानी बंद पड़ी जूट मिलें खुल रही हैं बल्‍कि नई जूट मिलों के लिए निवेशक आगे आ रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सिंगल यूज प्‍लास्‍टिक थैलियों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद से ही वामपंथ समर्थक समाचार चैनल प्‍लास्‍टिक उद्योग में कार्यरत मजदूरों के बेरोजगार होने का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे थे। लेकिन मोदी सरकार द्वारा जूट उद्योग को प्रोत्‍साहन देने और वैश्‍विक मांग में बढ़ोत्‍तरी से पूर्वी भारत के किसानों और जूट उद्योग की दशा में जिस ढंग से सुधार आ रहा है उसके प्रति मोदी विरोधी आंखें बंद कर चुके हैं। 

मोदी सरकार पर सूट-बूट वालों की सरकार होने का आरोप लगाने वालों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जनहित के कार्य दिखाई ही नहीं देते। जूट उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत उपाय करने के साथ-साथ मोदी सरकार ने 2019-20 से सभी अनाजों की 100 फीसदी पैकेजिंग में जूट की बोरियों का इस्‍तेमाल अनिवार्य कर दिया है। इसके अलावा 20 प्रतिशत चीनी की पैकेजिंग अनिवार्य रूप से जूट की बोरियों में की जाएगी। मोदी सरकार के इस फैसले से कच्‍चे जूट की गुणवत्‍ता एवं उत्‍पादकता बढ़ेगी, जूट क्षेत्र का विविधीकरण होगा और जूट उत्‍पादों की मांग बढ़ेगी।

सांकेतिक चित्र

इससे देश के पूर्वी और पूर्वोतर क्षेत्रों विशेषकर पश्‍चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, असम, आंध्र प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा के किसानों और मजदूरों को लाभ मिलेगा। गौरतलब है कि इन राज्‍यों के लाखों किसान परिवार अपनी आजीविका के लिए पटसर (जूट) उत्‍पादन पर निर्भर हैं। इतना ही नहीं पूर्वी भारत में जूट उद्योग से जुड़े कारोबार में चार लाख से अधिक लोग जुड़े हुए हैं। 

अब तक जूट उद्योग सरकारी खरीद पर निर्भर रहता था जिससे उसके विकास की सीमित संभावनाएं थीं। यही कारण था कि जूट उद्योग समय के साथ कदम ताल नहीं कर पाया और अक्‍सर मांग के मुकाबले जूट बोरियों का उत्‍पादन नहीं हो पाता था। प्‍लास्‍टिक के बढ़े उपयोग ने तो जूट उद्योग को संकट में ही डाल दिया। लेकिन पर्यावरण संबंधी जागरूकता, सतत विकास और दुनिया भर में प्‍लास्‍टिक की थैलियों का उपयोग बंद होने से जूट उद्योग की चमक लौट रही है। प्‍लास्‍टिक उत्‍पादों के खतरों को देखते हुए जूट उत्‍पादों को पर्यावरण मित्र के रूप में नई पहचान मिली है।

अब तो दुनिया भर की दिग्‍गज कंपनियां प्‍लास्‍टिक की जगह पर्यावरण अनुकूल जूट की थैलियों को अपना रही हैं। उदाहरण के लिए जापान की खुदरा विक्रेता मूजी की मांग एक करोड़ थैलियों की है लेकिन बिड़ला जूट मिल मूजी को 20 लाख थैली ही आपूर्ति कर पा रही है। इसी तरह ब्रिटेन की खुदरा कंपनी टेस्‍को जूट की थैलियों की सबसे बड़ी खरीदार बन चुकी है। इसी प्रकार की मांग दुनिया भर की कंपनियों की ओर से आ रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि पूरी क्षमता पर काम करने के बावजूद जूट मिलें निर्यात आर्डर पूरा नहीं कर पा रही हैं।

जूट से बने उत्‍पादों की मांग में आई तेजी को देखते हुए न सिर्फ पुरानी बंद पड़ी जूट मिलें खुल रही बल्‍कि बड़े-बड़े औद्योगिक घराने आधुनिक जूट विनिर्माण इकाईयों में निवेश करने लगे हैं। स्‍पष्‍ट है, मोदी सरकार के प्रयासों से हो रही जूट क्रांति लाखों किसानों-कारोबारियों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अनुकूल साबित होगी। दुर्भाग्‍यवश मोदी विरोधियों को यह उपलब्‍धि नहीं दिखाई दे रही है।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)