कोरोना से लड़ाई में फ़ेक न्यूज़ फैलाने में जुटे वैचारिक गिरोह से सावधान रहने की जरूरत

इस मुश्किल दौर में जब सरकार की नीतियों व होशियारी से हम अभी बहुत कम नुकसान देख रहे हैं, हमें सरकार का साथ देना चाहिए। यह राजनीति करने का समय नहीं है, हमें इस समय देश के साथ खड़ा होना है, लेकिन स्पष्ट है कि कुछ तत्त्व इस समय भी अपने राजनीतिक एजेंडे को चलाने के लिए फेक न्यूज फैलाने में लगे हैं। इस तरह का एजेंडा जो फ़ेक न्यूज़ द्वारा चलाया जा रहा है, वर्तमान समय में न केवल सरकार विरोधी कृत्य है, अपितु देश विरोधी भी है क्योंकि नाज़ुक समय में होने वाले नुकसान की बड़ी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ सकती है।

पूरी दुनिया के साथ हमारा देश भी वर्तमान समय में एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। ऐसे मुश्किल दौर में हम सभी को एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का परिचय देते हुए देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए। सरकार द्वारा ज़ारी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए हम अपने ज़िम्मेदार होने का सबूत दे सकते हैं। देश की आर्थिक स्थिति अभी नाज़ुक है,  रोज़मर्रा की आवश्यकताएं जुटा पाना सामान्य व्यक्ति के लिए मुश्किल हुआ जा रहा है,  दैनिक कामगारों की स्थिति नाज़ुक बनी हुई है,  इतनी मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद अपने ही देश में एक तबका फ़ेक न्यूज़ के सहारे सरकार की कोशिशों को विफल करने और इस लड़ाई को और मुश्किल बनाने की कोशिश में लगा है।

सांकेतिक चित्र (साभार : Deccen Herald)

फ़ेक न्यूज़ का निर्माण भी एक निश्चित उद्देश्य के साथ किया जाता है। इसे अपने धर्म,  जाति,  समुदाय,  राजनीतिक दल या फिर किसी भी वर्ग को ध्यान में रखकर गढ़ा जाता है। एक बार जब फ़ेक न्यूज़ अपनी यात्रा प्रारंभ कर देता है तब उसके अगले चरण में उसे आगे प्रेषित करने वाले लोग इसे सच मानकर, बिना इसकी जांच किए आगे भेजने लगते हैं।

दूसरी बात कि एक बेहद सामान्य व्यक्ति इतना जागरूक भी नहीं है कि वो उसके पास आये किसी भी वीडियो,  तस्वीर या लिखित सन्देश की जांच करे,  ऐसा व्यावहारिक तौर पर संभव भी नहीं है क्योंकि एक दिन में सैकड़ों संदेश प्राप्त होते हैं।

आज सूचना और तकनीकी के इस युग में बड़ी तीव्रता से वह जल्दी ही बड़े समूह के बीच पहुँच जाता है। इस तरह इसकी शुरुआत जानबूझकर की जाती है और वर्गगत तथा समुदायगत हितों के कारण यह तीव्रता से फैलता चला जाता है। बहुत बार तो यह फ़ेक न्यूज़ हेट न्यूज़ में भी तब्दील हो जाता है। 

मेसाचुसेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने 2006 से 2017 के मध्य लगभग 126000 ट्विटर न्यूज़ फीड का अध्ययन किया जो 30 लाख लोगों द्वारा 45 लाख से अधिक बार ट्वीट किया गया था। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष दिया कि ट्विटर पर फ़ेक न्यूज़ फैलने की दर वास्तविक न्यूज़ फैलने की दर से ज्यादा है,  खासकर राजनीतिक मामलों में ऐसा अधिक होता है। एक बौद्धिक और तार्किक व्यक्ति के लिए यह वास्तव में चिंतित करने वाली बात है।

अभी कुछ समय पूर्व ही ईरान में एक खबर फ़ैल गयी कि अल्कोहल का सेवन करने  से कोरोना से बचा जा सकता है,  यह वह समय था जब वहां कोरोना वृद्धि दर काफी तीव्र हो चुकी थी,  इस गलत खबर के चक्कर में आकर बहुत सारे लोगों को अपने जान से हाथ धो देना पड़ा क्योंकि उन्होंने ज़हरीले मेथेनॉल का सेवन कर लिया।

भारत भी इस फेक न्यूज की समस्या से अछूता नहीं रहा,  भारत में सरकार को इसका तब शिकार होना पड़ा जब अमेरिका ने भारत से हाईड्राक्सीक्लोरोक्विन दवा की मांग की। देश में यह खबर फ़ैल गयी कि यहाँ अपने पास खुद के लिए दवा नहीं है और हम अपनी दवा अमेरिका को दे रहे हैं जबकि वास्तविकता यह थी कि भारत में कुल 3 करोड़ 28 लाख टेबलेट्स का स्टॉक था तथा हमें आने वाले दिनों में लगभग 1 करोड़ टेबलेट्स की ही आवश्यकता थी।

कुल मिलाकर हमारे पास अगले 6 महीने के लिए पर्याप्त भण्डार था तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं कि अपने पास पड़े हुए अतिरिक्त स्टॉक का लाभ लिया जाए। अतः इस दवा के निर्यात पर लगे हुए प्रतिबन्ध को सरकार ने आंशिक रूप से हटाकर अमेरिका को 35.82 लाख टेबलेट्स निर्यात कर वैश्विक स्तर पर अपने छवि को और भी मज़बूत किया।

वर्तमान समय में जब चीन पर तरह-तरह के आरोप लग रहे हैं,  हमें अपने आपको मज़बूत करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहिए। हम आने वाले समय में बांग्लादेश को 20 लाख, नेपाल और श्रीलंका को 10-10 लाख, भूटान और मालदीव को 2-2 लाख, अफगानिस्तान को 5 लाख टेबलेट्स देने वाले हैं। 13 देशों जिन्हें हम दवा निर्यात करेंगे, की सूची में स्पेन,  जर्मनी,  बहरीन,  ब्राजील,  मॉरिशस और सेशेल्स, डोमिनिकन रिपब्लिक भी शामिल है जिसे संभवत: दूसरी क़िस्त में ये दवाएं भेजी जाएँगी।  विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव दम्मू रवि ने स्वयं यह जानकारी दी कि अतिशय मांग के कारण हम हमारी आवश्यकता से अतिरिक्त टेबलेट्स के निर्यात को मंजूदी देंगे। वास्तविकता यह है और खबर यह बना दी गयी है कि हमारे पास खुद दवा नहीं हैं और बन रहे हैं निर्यातक।

सांकेतिक चित्र (साभार : News Karnataka)

इसी के साथ एक और दिलचस्प खबर जो तुरंत सोशल मीडिया में तैरने लगी वह भी इसीसे जुड़ी हुई थी कि डोनाल्ड ट्रंप  की धमकी से नरेन्द्र मोदी झुक गए और दवा भेज दी, जबकि इस पूरे प्रकरण में ट्रंप खुद बड़ी शालीनता से भारत से इस दवा के लिए निवेदन कर रहे थे और उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें यह विश्वास है कि भारत उनकी मदद करेगा क्योंकि दोनों देशों के मध्य रिश्ते बहुत अच्छे हैं। लेकिन ट्रंप के एक सवाल के जवाब में कहे गए शब्दों को धमकी बताते हुए जिस तरह से फेक न्यूज फैलाई गयी, वो शर्मनाक है।

ठीक इसी प्रकार एजेंडा पत्रकारिता करने वाले ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वर्धराजन ने योगी आदित्यनाथ का नाम लेकर ट्वीट किया कि वे 25 मार्च से 2 अप्रैल तक रामनवमी मेला का आयोजन पहले की तरह ही करवाने वाले हैं, भगवान राम अपने भक्तों को कोरोना वायरस से बचायेंगे। जबकि वास्तविकता यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ऐसा कभी कुछ नहीं कहा। उन्हें इस गलत खबर ट्वीट करने के लिए पहले आगाह किया गया कि वे इसे हटा लें अन्यथा उन पर कानूनी कार्यवाही होगी। उनके न हटाने पर ऐसा ही किया गया। आप ज़रा सोचिए कि ऐसा करने वालों की इसके पीछे क्या मंशा है?

साफ़ तौर पर यह सरकार को बदनाम करने की कोशिश और लोगों को भरमाने का षड्यंत्र है कि सरकार सचेत नहीं है, भीड़ जुटाने को कह रही है। इस ट्वीट से तो ऐसे ही निष्कर्ष निकलते हैं। यदि इस खबर को आधार बनाकर इस बीच वहां भीड़ जुट गयी होती तो सोशल डिस्टेंसिंग का क्या होता? कितना नुकसान हो सकता था। इस तरह की अफवाहों का उद्देश्य क्या है, इस बात को समझने में कोई मुश्किल नहीं है।

जब हमारे प्रधानमंत्री ने सभी देशवासियों से लाइट बुझाकर दीप एवं मोमबत्ती जलाकर इस मुश्किल समय में कोरोना के योद्धाओं, चिकित्सकों, सुरक्षाकर्मियों व सफाई कर्मियों का हौसला बुलंद करने को कहा, पूरे देश को एकजुट होने का संदेश देने को कहा, तो कुछ लोग अचानक से लोड घट जाने से  पूरे देश के ग्रिड फेल हो जाने की एक कहानी लेकर आ गए और लोगों से आग्रह करने लगे कि ऐसा बिलकुल भी न करें। जबकि इस दौरान हमें केवल अपने घरों की लाइट ही बुझानी थी, बाकी उपकरण चलते रहते, ऐसे में अचानक से लोड घट नहीं जाता। लेकिन फ़ेक न्यूज़ फैलाने वालों की नजर फैक्ट पर नहीं रहती। उनकी स्पष्ट मंशा होती है कि प्रधानमंत्री के आह्वान को सफ़ल नहीं होने देना है।

इस मुश्किल दौर में जब सरकार की नीतियों व होशियारी से हम अभी बहुत कम नुकसान देख रहे हैं, हमें सरकार का साथ देना चाहिए। यह राजनीति करने का समय नहीं है, हमें इस समय देश के साथ खड़ा होना है, लेकिन स्पष्ट है कि कुछ तत्त्व इस समय भी अपने राजनीतिक एजेंडे को चलाने के लिए फेक न्यूज फैलाने में लगे हैं। इस तरह का एजेंडा जो फ़ेक न्यूज़ द्वारा चलाया जा रहा है, वर्तमान समय में न केवल सरकार विरोधी कृत्य है, अपितु देश विरोधी भी है क्योंकि नाज़ुक समय में होने वाले नुकसान की बड़ी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ सकती है। हमें ऐसे लोगों व गिरोहों से सावधान रहने की आवश्यकता है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)