पाकिस्तान के खतरनाक खेल को समझना होगा

आर.पी सिंह 

पाकिस्तान भारत को शिकस्त देने के लिए पांच तरह की रणनीति पर काम कर रहा है। एक, उसने भारत को धमकाने और सैन्य कार्रवाई से रोकने के लिए पर्याप्त मात्र में परमाणु बम इकट्ठे कर लिए हैं। दो, पाकिस्तान ने अपनी सेना को इतना संगठित कर लिया कि भारत के लिए उस पर बड़ा हमला करना आसान नहीं होगा। तीन, पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों की घुसपैठ और माओवादी तथा दूसरे उग्रवादी समूहों सहित अन्य समूहों की मदद से वह भारत को लहूलुहान कर रहा है। चार, वह भारत की जनसांख्यिकी में बदलाव के लिए अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ को बढ़ावा दे रहा है। मुस्लिम समुदाय को अपनी आबादी बढ़ाने के लिए उकसाया जा रहा है और धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। पांच, पाकिस्तान भारत को अस्थिर करने के लिए मादक पदार्थो और जाली करेंसी का प्रयोग कर रहा है। प्रथम तीनों बिंदुओं की खूब चर्चा होती रही है, लेकिन चौथे और पांचवें पर कम चर्चा हुई है। देश में वोट बैंक की राजनीति के कारण राजनेता इस पर बहस करने से हिचकते हैं। पूवरेत्तर राज्यों, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और केरल में मुस्लिमों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। परिणामस्वरूप वहां सामाजिक तनाव बढ़ रहा है। पाकिस्तान से लगते राजस्थान के जिलों की भी यही स्थिति है।1किसी देश की संप्रभुता को छिन्न-भिन्न करने के लिए सॉफ्ट पावर का चलन प्राचीन काल से होता रहा है, लेकिन 1980 के दशक में पहली बार हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोसेफ ने सॉफ्ट पावर शब्द गढ़ा था। उसके बाद से इस शब्द का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। यहां यह समझना जरूरी है कि हार्ड पावर और सॉफ्ट पावर में क्या अंतर होता है। हार्ड पावर सैन्य और आर्थिक शक्ति से संबंधित है, वहीं सॉफ्ट पावर गैर-सैन्य साधनों से संबंधित होती है। मसलन इसमें देश की संस्कृति, राजनीति, विचार, पैसा और नीतियों को निशाना बनाया जाता है। पाकिस्तान की आइएसआइ सॉफ्ट पावर का प्रयोग करने में माहिर है। इसके पास कोवर्ट एक्शन डिविजन (सीएडी यानी कैड) है, जिस पर सॉफ्ट पावर के प्रयोग और दूसरी गुप्त कार्रवाइयां करने की जिम्मेदारी होती है। इसकी भूमिका अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआइए की स्पेशल एक्टीविटिज डिविजन (एसएडी) के समान है। आइएसआइ के कुछ अधिकारी सीआइए की एसएडी द्वारा प्रशिक्षित किए गए थे। आइएसआइ के कैड ने अफगानिस्तान में सॉफ्ट पावर का भरपूर उपयोग किया है जहां आज धर्म सबसे बड़ा हथियार बन गया। उसके द्वारा सोवियत रूस द्वारा समर्थित काबुल सरकार की छवि इस्लाम विरोधी बना दी गई और बड़ी संख्या में युवाओं को जिहादी बनने के लिए प्रेरित किया गया। अस्सी के दशक के आरंभ में कैड ने पंजाब में सिख उग्रवाद को हवा देने और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए ठीक यही तरीका अपनाया था। कश्मीर में उग्रवाद को गुप्त रूप से समर्थन देने के लिए 1988 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने ऑपरेशन टुपैक की रूपरेखा खींची। इसमें भी भारत से लड़ने के लिए युवाओं को जिहाद की तरफ प्रेरित करने के लिए धर्म को मुख्य हथियार बनाया गया। शुक्रवार की नमाज के बाद कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा लहराना आइएसआइ की सॉफ्ट पावर रणनीति का नमूना है। हालांकि इस बीच पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हार्ड पावर का भी खूब इस्तेमाल किया। 1999 में कारगिल युद्ध, दिसंबर 1999 में भारतीय विमान का अपहरण, 2001 में संसद पर हमला, मुंबई हमला, गुरदासपुर और पठानकोट की घटनाएं हार्ड पावर की उदाहरण हैं।1भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों में ऐसे गुप्त ऑपरेशन चलाने के लिए आइएसआइ बड़े पैमाने पर फंड मुहैया कराती है। भारत में पैसा हवाला कारोबार, ड्रग बिक्री और जाली करेंसी के जरिए भेजा जाता है। सऊदी अरब द्वारा फंडिंग इसका मुख्य स्नोत है। आइएसआइ मॉड्यूल द्वारा विभिन्न मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों को पैसे का बंटवारा किया जाता है। पैसे का एक बड़ा हिस्सा माओवादियों, पूवरेत्तर भारत के दूसरे उग्रवादियों और खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े स्लीपर सेल को दिया जाता है। देश में युवाओं की सोच को बदलने के लिए बॉलीवुड को भी सॉफ्ट पावर के उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। बड़े बैनर की करीब-करीब सभी फिल्मों में आइएसआइ और दाऊद इब्राहिम जैसे अंडरवल्र्ड सरगनाओं के पैसे लगे होते हैं। ये फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता अर्जित करती हैं। आजकल बॉलीवुड फिल्म उद्योग पर एक खास समुदाय का एकाधिकार है। यह एक तथ्य है कि समुदाय विशेष से ताल्लुक रखने वाले बॉलीवुड के सभी बड़े कलाकारों ने हिन्दू लड़कियों से शादी की है। हालांकि उन सभी लड़कियों ने अपना धर्म परिवर्तन कर रखा है, लेकिन वे मुस्लिम नामों को गुप्त रखती हैं, हिन्दू नामों को ही सार्वजनिक करती हैं। ऐसा हिन्दू लड़कियों को मुस्लिम युवाओं से शादी करने के लिए प्रेरित करने के लिए किया जाता है। फिल्में और फिल्मी शख्सियतें युवाओं की सोच को तेजी से बदल देती हैं। लव जिहाद के विरोध में आवाज उठाने वाले कुछ संगठनों का आंदोलन बेजा नहीं है। यह सही है कि हिन्दू लड़कियों द्वारा मुस्लिम लड़कों से शादी करने की दर बहुत ज्यादा है। इसके अनुपात में बहुत कम मुस्लिम लड़कियां हिन्दू लड़कों से शादी कर रही हैं। ये सारी गतिविधियां आइएसआइ प्रायोजित हैं। यह पहली बार हुआ कि देश में हिन्दुओं की आबादी अस्सी फीसद से कम हुई है। डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने आमिर खान अभिनीत पीके फिल्म की फंडिंग पर प्रश्न उठाया था। उन्होंने कहा था कि पीके फिल्म को किसने धन मुहैया कराया? उनके सूत्र के अनुसार उसके लिए पैसा दुबई और आइएसआइ के जरिए आया। राजस्व खुफिया निदेशालय को इसकी जांच करनी चाहिए। भारतीय खुफिया एजेंसियां इसके बारे में सब कुछ जानती हैं, लेकिन केस चलाने के लिए उनके पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इसके अतिरिक्त आइएसआइ हिन्दू समाज की कमजोरियों जैसे जाति व्यवस्था, आर्थिक विषमता, बेरोजगारी आदि को और गहराने का काम भी कर रही है। कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले युवा इसके आसान शिकार होते हैं। दरअसल वहां पढ़ने वाले आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के लड़के आसानी से देशविरोधी गतिविधियों का हिस्सा बन जाते हैं। हैदराबाद और जेएनयू की घटनाएं इसकी उदाहरण हैं। हालांकि समस्या अभी शुरुआती दौर में है। पाकिस्तान के सॉफ्ट पावर के हथकंडों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का यही सही वक्त है।

(लेखक भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी हैं. यह लेख दैनिक जागरण के २३ अप्रैल २०१६ को छपा है)