देश की साख से खेलते राहुल गांधी

भारत को राष्ट्र न कहना रेखांकित करता है कि राहुल गांधी की दृष्टि से भारत अखंड नहीं है। उनकी यह विघटनकारी सोच देश की एकता-अखंडता और आत्मा को मर्माहत करने वाली है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेशी सरजमीं पर खड़े होकर भारत का मान-मर्दन किया है। गत वर्ष पहले उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में बुसेरियस समर स्कूल में छात्रों और प्रवासियों को संबोधित करते हुए देश में माॅब लिंचिंग की घटनाओं को बेरोजगारी से जोड़ा था।

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कमाल के नेता हैं। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की आलोचना के फेर में किस तरह देश की साख से खेल बैठते हैं उसकी बानगी फिर देखने को मिली है। वे लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ‘आइडियाज फाॅर इंडिया’ कार्यक्रम में कहते सुने गए कि भारत में भी पाकिस्तान जैसी स्थिति हो गयी है। राज्यों की शक्तियों को कम करने के लिए सीबीआई, ईडी का इस्तेमाल हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान के अनुसार भारत राष्ट्र नहीं, राज्यों का संघ है। 

समझना कठिन है कि राहुल गांधी के पास ऐसा कौन-सा पैरामीटर है जो भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तौल रहे हैं। भारत को राष्ट्र न कहना रेखांकित करता है कि राहुल गांधी की दृष्टि से भारत अखंड नहीं है। उनकी यह विघटनकारी सोच देश की एकता-अखंडता और आत्मा को मर्माहत करने वाली है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने विदेशी सरजमीं पर खड़े होकर भारत का मान-मर्दन किया है। 

गत वर्ष पहले उन्होंने जर्मनी के हैम्बर्ग में बुसेरियस समर स्कूल में छात्रों और प्रवासियों को संबोधित करते हुए देश में माॅब लिंचिंग की घटनाओं को बेरोजगारी से जोड़ा था। लंदन के एक कार्यक्रम में आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन ब्रदरहुड से की। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में नोटबंदी और जीएसटी के कारण लाखों लोग बेरोजगार हुए जिससे कि माॅब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी। इसे प्रमाणिकता का खोल पहनाते हुए तर्क दिया कि आतंकी संगठन आईएसआईएस की उत्पति भी बेरोजगारी के कारण ही हुई। 

याद होगा राहुल गांधी ने कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में भारत में लोकतंत्र की सच्ची पैरोकारी के बजाए वंशवाद की वकालत की थी। विकीलीक्स खुलासे के मुताबिक वे अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोएमर से कह चुके हैं कि देश को इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा खतरा हिंदू कट्टरवाद से है। उन्होंने दुबई में एक प्रेस कांफ्रेंस में मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए न केवल राफाल सौदे पर ढेरों सवाल उठाए थे बल्कि यह भी कहा था कि भारत में हिंसा बढ़ी है। राहुल गांधी के इस तरह के अपरिपक्व बयानबाजी से देश समझ नहीं पा रहा है कि आखिर वे मोदी विरोध के नाम पर देश को बार-बार अपमानित क्यों कर रहे हैं। 

विचार करें तो कांग्रेस जैसे एक बड़े दल के बड़े नेता का इस तरह का अनर्गल प्रलाप गंभीर और चिंताजनक है। ऐसा इसलिए कि जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया भर में भारत की प्रतिष्ठा को चार चांद लगा रहे हैं वहीं राहुल गांधी देश की प्रतिष्ठा को बार-बार लांछित कर रहे हैं। गौर करें तो वे सिर्फ विदेश में ही नहीं बल्कि देश में भी अपने बेतुके बयान से लोगों को हैरान कर रहे हैं। इसकी कुछ बानगी देखिए। 

उन्होंने 2013 में इंदौर की एक रैली में जुगाली किया था कि इंटेलिजेंस के एक अधिकारी ने उन्हें बताया कि पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों से संपर्क कर उन्हें आतंकवाद के लिए उकसाने की कोशिश कर रही है। मजे की बात यह कि तब देश में कांग्रेस नेतृत्ववाली सरकार के गृहमंत्रालय ने ऐसे किसी भी रिपोर्ट से इंकार कर दिया था। 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र फाड़ डाला था। 

यही नहीं उन्होंने 2014 में एक चुनावी जनसभा में गांधी जी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराया। इससे नाराज संघ के एक कार्यकर्ता ने उन्हें अदालत में घसीटा और तब उच्चतम न्यायालय ने राहुल गांधी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि वह या तो माफी मांगे या मानहानि के मुकदमें का सामना करने के लिए तैयार रहें। उन्होंने झारखंड की एक चुनावी रैली में कहा था कि अब आप जहां भी देखो, मेक इन इंडिया नहीं, रेप इन इंडिया है।’ 

राहुल गांधी के इस तुकबंदी भरे बयान से देश स्तब्ध रह गया। आलोचना की भी एक लक्ष्मण रेखा होती है। लेकिन राहुल गांधी इसे भी लांघ गए। तब उनके इस बयान से संसद के शीतकालीन सत्र का अंतिम दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। भाजपा की ओर से उसकी महिला सांसदों ने मोर्चा संभालते हुए राहुल गांधी से माफी की मांग की और चुनाव आयोग से भी शिकायत की। संसद में भी राहुल गांधी की खूब लानत-मलानत हुई। लेकिन राहुल गांधी माफी मांगने के बजाए मुस्कुराते नजर आए। 

याद होगा कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी ने सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री के समक्ष पहुंचकर उन्हें कुर्सी से उठाने की कोशिश की और प्रधानमंत्री के गले पड़ने के बाद आंख मारते हुए कुटिल मुस्कान बिखेरी। तब उनके इस गैर-जिम्मेदराना रवैए के कारण देश भर में उनकी आलोचना हुई। यही नहीं उन्हीं की पार्टी के कुछ लोगों ने दबी जुबान में कहा कि राहुल गांधी में राजनीतिक परिपक्वता और सूझ-बुझ की भारी कमी है। 

विचार करें तो राहुल गांधी की इसी नासमझी और राजनीतिक अपरिपक्वता का नतीजा है कि उन्हें बार-बार आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि उन्हें माफी मांगने तक की नौबत आन पड़ रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वीकार्यता और देश की लोकप्रियता पच नहीं रही है। नतीजतन वे प्रधानमंत्री को बदनाम करने के फेर में देश की साख पर आघात कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। 

राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को समझना होगा कि उनके इस आचरण से दुनिया भर में देश की छवि को बट्टा लग रहा है। यही नहीं खुद राहुल गांधी की राजनीतिक विश्वसनीयता और परिपक्वता पर भी सवाल उठ रहे हंै। राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों को समझना होगा कि अगर वे भोथरे दलीलों और कुतर्कों से प्रधानमंत्री की छवि खराब करना चाहते हैं तो यह उनकी सियासत की एक नासमझी भरी रणनीति ही हो सकती है। इसका सियासी फायदा मिलना दूर की कौड़ी है। देखा भी जा रहा है कि राहुल गांधी के इस बेतुकी सियासत और अनर्गल राग-प्रलाप से कांग्रेस की सियासी जमीन लगातार सिकुड़ती जा रही है। उसे चुनाव-दर-चुनाव करारी शिकस्त मिल रही है। बेशक सरकार की विफलताओं और नाकामियों की आलोचना विपक्ष का उत्तरदायित्व है। लेकिन इसकी एवज में देश की साख से खेल बैठना कहां की अक्लमंदी है। 

वैसे भी कांग्रेस को ध्यान रखना होगा कि राहुल गांधी सिर्फ कांग्रेस के अग्रणी नेता भर नहीं हैं। वे कांग्रेस के भविष्य भी हैं। अगर वह गली छाप नेताओं की तरह राजनीतिक आचरण की नुमाईश पेश करेंगे तो फिर सवाल तो उठेगा ही। साथ ही कांग्रेस को भी चिंतित होना चाहिए कि उसका राजनीतिक भविष्य भी अधर में पड़ सकता है। ऐसा नहीं है कि देश ने कांग्रेस पार्टी को जनता में विश्वसनीयता और सत्ता तक पहुंचने का मौका नहीं दिया। लेकिन कांग्रेस ने इस मौके को गंवा दिया। और अब कांग्रेस राहुल गांधी के जरिए अपनी विश्वसनीयता भी गंवा रही है। 

बेशक राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस को अधिकार है कि वह सरकार की नीतियों की आलोचना करें। सार्थक आलोचना लोकतंत्र की जीवंतता के लिए आवश्यक है। अगर कांग्रेस और राहुल गांधी को लगता है कि मोदी सरकार देश की समस्याओं के निराकरण में विफल है तो बेशक वह आलोचना करने को स्वतंत्र है। लेकिन यहां ध्यान रखना होगा कि आलोचना की धार मजबूत तब होती है जब उसे जनता की स्वीकृति हासिल होती है। लेकिन यहां राहुल गांधी और उनकी पार्टी उल्टी गंगा बहाने पर आमादा है। 

जब उन्हें देश खारिज कर रहा है तो उचित होता कि वे अपने राजनीतिक विचारों को मजबूत करते। जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता पर मुहर लगवाते। लेकिन वे इसके बजाए वह सब कुछ करते देखे जा रहे हैं जो देश की प्रतिष्ठा के खिलाफ है। यहां राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों को ध्यान रखना होगा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। देश की साख और मर्यादा की रक्षा की जिम्मेदारी जितनी सत्ताधारी पार्टी की है उतना ही विपक्ष की भी। लेकिन विडंबना है कि राहुल गांधी और कांग्रेस दोनों समझने को तैयार नहीं हैं।

(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)