सरकार की कौशल विकास नीतियों से कुशलता की ओर अग्रसर भारत

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अपने वक्तव्यों में जिस बात की सर्वाधिक चर्चा की जाती रही है, वो यह है कि भारत का सर्वाधिक युवा आबादी संपन्न देश होना उसकी सबसे बड़ी ताकत है। मोदी की इस बात को वैश्विक मान्यता तब मिली जब संयुक्त राष्ट्र ने साल २०१४ नवम्बर में ‘१.८ अरब लोगों की ताकत’ नाम से वैश्विक आबादी पर जारी अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। कुल आबादी के मामले में तो चीन भारत से आगे है, लेकिन जब बात सर्वाधिक युवा आबादी की आती है तो भारत चीन को पछाड़ते हुए नंबर एक पर पहुँच जाता है। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक़ देश  की ६५ प्रतिशत आबादी ३५ साल से कम उम्र की है और इसमें भी ५० प्रतिशत आबादी की उम्र २५ साल से भी नीचे है। इस आंकड़े के आधार पर गणितीय विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि वर्ष २०२० में हर भारतीय की औसत उम्र २९ साल होगी और तब भी भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा राष्ट्र होगा, जबकि तब चीनियों की औसत उम्र ३७ और जापानियों की ४८ साल होगी।

केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में काफी गंभीर दिख रही है। इस विषय में मोदी सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने इस क्षेत्र के लिए कौशल विकास व उद्यमशीलता नामक एक नया मंत्रालय ही गठित कर दिया है। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्किल इण्डिया नामक अत्यंत महत्वाकांक्षी कार्यक्रम आरम्भ किया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री द्वारा २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति की जगह राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति – २०१५ की घोषणा भी की गई जिसके द्वारा स्किल इण्डिया के लक्ष्यों को पूरा करना है।

अब २०२० में जब एक तरफ भारत-चीन-जापान में आबादी के ये समीकरण बन रहे होंगे, वहीं दूसरी तरफ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में लगभग ६ करोड़ कुशल कामगारों की कमी आएगी। कामगारों की इस कमी का सर्वाधिक प्रभाव अमेरिका, रूस, चीन और जापान में होगा, क्योंकि इन देशों की अधिकाधिक युवा आबादी तबतक बुढ़ापे की तारफ अग्रसर हो गई होगी और बाकी आबादी अपने शुरूआती दौर में होगी। अब ऐसे वक़्त में कुशल कामगारों के लिए इन देशों की निगाह सिर्फ और सिर्फ भारत की तरफ होगी। ऐसे में अगर भारत चाहे तो इन देशों को कुशल कामगार देकर इस स्थिति का बेहद निर्णायक लाभ पा सकता है। कहना गलत नहीं होगा कि २०२० में होने वाली इस संभावित स्थिति का अगर भारत सही ढंग से लाभ लिया तो संशय नहीं कि ३० के दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बिंदु भारत ही होगा। लेकिन इन सब चीजों के लिए आवश्यक है कि तब देश के पास दुनिया के कामगारों की कमी को पूरा करने के लिए कुशल कामगार तैयार हों।

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संतोषजनक बात ये है कि केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में काफी गंभीर दिख रही है। इस विषय में मोदी सरकार की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने इस क्षेत्र के लिए कौशल विकास व उद्यमशीलता नामक एक नया मंत्रालय ही गठित कर दिया है। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्किल इण्डिया नामक अत्यंत महत्वाकांक्षी कार्यक्रम आरम्भ किया गया है। इसके अलावा प्रधानमंत्री द्वारा २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति की जगह राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति – २०१५ की घोषणा भी की गई जिसके द्वारा स्किल इण्डिया के लक्ष्यों को पूरा करना है।  इसके अतिरिक्त मोदी सरकार द्वारा देश में कौशल विकास को एक उचित दिशा व गति देने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण व दूरगामी कदम उठाया गया है, वो है – मेक इन इण्डिया। इस कदम के द्वारा सरकार ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की है, पहला कि देश को दुनिया के लिए ‘विनिर्माण धुरी’ (इन्फ्रास्ट्रक्चर हब) बनाया जाय और दूसरा कि दुनिया के अन्य देशों में मौजूद तमाम तकनिकी जानकारियां, विनिर्माण-कौशल उन देशों की कंपनियों के साथ ही देश में आए और देश के लोग उन चीजों को सीखें तथा उन कार्यों में कुशलता प्राप्त करें। हालांकि मेक इन इण्डिया एक दूरगामी प्रभाव का कार्यक्रम है, अतः इससे देश के युवाओं को कितना और कैसा लाभ मिलता है, इसका पता तो कुछ वर्षों बाद ही चलेगा।

वैसे मेक इन इण्डिया के अलावा  सरकार कौशल विकास के लिए २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति में कुछ परिवर्तन करके उसे नए सिरे से शुरू कर चुकी है। गौर करें तो संप्रग शासन के समय आई २००९ की राष्ट्रीय कौशल विकास नीति के तहत अगले १३ वर्षों यानी २०२२ तक ५० करोड़ उच्चस्तरीय कुशल व्यक्तियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था और इसके लिए १० हजार करोड़ का बजट भी निर्धारित हुआ था। इसके तहत राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद् (एनएसडीसी) को यह दायित्व दिया गया कि वो गुणवत्तापूर्ण संस्थाओं के सृजन के जरिये तकरीबन १५ करोड़ लोगों को कुशल कामगार बनाए। बाकी लोगों के कौशल विकास का काम सरकार के १८ मंत्रालयों के जरिये होना था। लेकिन दुर्भाग्य कि नीति बनाने के बाद संप्रग सरकार ने अपने दायित्व की इतिश्री समझ ली और इसके क्रियान्वयन की कभी कोई समीक्षा करने की उसने जरूरत नहीं समझी । लेकिन, मोदी सरकार द्वारा लाइ गई नई राष्ट्रीय कौशल विकास नीति में क्रियान्वयन की निगरानी के लिए पूरी व्यवस्था रखी गई है और कौशल विकास के उपक्रम संतोषजनक ढंग से अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर भी है।  यह कौशल विकास बेहद आवश्यक है, क्योंकि अगले पांच सालों में भारत के पास विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने का संभावित सुनहरा अवसर आने वाला है और उस अवसर का भरपूर लाभ देश को तभी मिलेगा जब हमारे युवा कुशल कामगार होंगे। सुखद यह है कि ये बात देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद अच्छे से समझ रहे हैं और इस दिशा में प्रयासरत भी हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है। ये उनके निजी विचार हैं।)