सरदार वल्लभभाई पटेल : स्वतंत्र भारत की एकता के महान सूत्रधार

1947 में अंग्रेजों ने हमारे देश को आजादी तो दी थी, लेकिन वो आजादी भारत को नहीं दी गयी थी, बल्कि 562 स्वतंत्र रियासतों को आजाद किया गया था। अंग्रेजों को लगता था कि इस रूप में भारत तितर-बितर होकर रहा जाएगा। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि इस देश में सरदार पटेल जैसे फौलादी इरादों वाले नेता मौजूद हैं। गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल ने आवश्यकतानुसार नरमी और कठोरता की नीति पर चलते हुए सभी रियासतों को एक किया और इस तरह आज जो भारत देश हमारे सामने है, उसने आकार लिया। 

31 अक्टूबर, 1875 की तारीख इतिहास में दर्ज है, जब आजाद भारत की एकता और अखण्डता के शिल्पी सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म हुआ था।  2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस तारीख को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में बड़े पैमाने पर मनाने की शुरुआत की। तबसे इस दिन देश में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। 

सरदार पटेल (साभार : Dainik Jagran)

दृढ़ता, साहस, कर्तव्यपरायणता और निर्णय-क्षमता जैसे गुणों के कारण  पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है। उनके व्यक्तित्व में ये गुण आजादी के बाद देश का पहला गृहमंत्री बनने के बाद नहीं आए बल्कि हमेशा से ही मौजूद रहे थे। इसके अनेक उदाहरण हैं। कहते हैं कि एकबार विद्यालय में अध्यापक को कोई सवाल नहीं आ रहा था, तो किशोरवय पटेल ने उनसे पूछा कि क्या आप यह सवाल हल नहीं कर सकते?

इसपर अध्यापक बिगड़ गए और तंज़ में बोले कि सवाल हल करके तुम्ही अध्यापक बन जाओ। पटेल ने सवाल हल किया और अध्यापक की कुर्सी पर बैठ गए। प्रधानाध्यापक तक शिकायत पहुंची तो उन्होंने पटेल को स्कूल से निकाले जाने की चेतावनी दी। इसपर वे बोले, ‘निकालने की जरूरत नहीं है, ऐसे स्कूल से मैं खुद ही चला जाता हूँ।’ 

इसी तरह गर्म सलाख खुद ही खुद के फोड़े में घुसा लेनी हो या बिना बेहोश हुए पैर का ऑपरेशन करवाना हो या अदालती बहस के दौरान पत्नी की मृत्यु की सूचना पाकर भी निर्विकार भाव से बहस पूरी करना हो अथवा 1927 में अहमदाबाद म्युनिसिपल कमिटी का अध्यक्ष होते हुए भयानक तूफ़ान के बीच पानी निकासी का प्रबंध करने के लिए इंजीनियरों को लेकर खुद निकल पड़ना हो, ये सब प्रसंग पटेल के कर्तव्यपरायण, साहसी और सहनशील व्यक्तित्व का ही परिचय देते हैं। आजादी की लड़ाई में और उसके बाद गृहमंत्री के रूप में उनके इन गुणों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा।  

आजादी की लड़ाई में तो सरदार पटेल का योगदान था ही, लेकिन उनकी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आजादी के बाद सामने आई। 1947 में अंग्रेजों ने हमारे देश को आजादी तो दी थी, लेकिन वो आजादी भारत को नहीं दी गयी थी, बल्कि 562 स्वतंत्र रियासतों को आजाद किया गया था।

अंग्रेजों को लगता था कि इस रूप में भारत तितर-बितर होकर रहा जाएगा। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि इस देश में सरदार पटेल जैसे फौलादी इरादों वाले नेता मौजूद हैं। गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल ने आवश्यकतानुसार नरमी और कठोरता की नीति पर चलते हुए सभी रियासतों को एक किया और इस तरह आज जो भारत देश हमारे सामने है, उसने आकार लिया। 

चीन को लेकर पं. नेहरू की अदूरदर्शिता को भी पटेल ने भांप लिया था और उन्हें चेतावनी भी दी थी। लेकिन नेहरू ने इसपर ध्यान नहीं दिया जिसकी कीमत देश को 1962 में अपने अनेक जवानों के बलिदान के बावजूद चीन के हाथों पराजित होकर भुगतनी पड़ी। वास्तव में, आजादी के बाद महात्मा गांधी की इच्छा होने के कारण पं. नेहरू प्रधानमंत्री अवश्य बने लेकिन समर्थन पटेल के पक्ष में अधिक था।

साभार : Dainik Jagran

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा है कि, निःसंदेह बेहतर होता, यदि नेहरु को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ और दिन जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुंचते जिसके लिए संभवतः वह योग्य पात्र थे। तब भारत में कश्मीर, तिब्बत, चीन और अन्यान्य विवादों की कोई समस्या नहीं रहती। 

बहरहाल, जो गुजर गया सो गुजर गया। लेकिन यह सवाल जरूर है कि आजादी के बाद सर्वाधिक समय तक सत्ता में रही कांग्रेस ने पटेल को वैसा सम्मान क्यों नहीं दिया जैसा पं. नेहरू या नेहरू-गांधी परिवार के अन्य लोगों को मिला?

15 दिसंबर, 1950 को पटेल की मृत्यु हुई लेकिन उसके बाद 1964 तक तत्कालीन सरकारों ने उनकी जयंती मनाने की जरूरत नहीं समझी। ऐसे ही, पं. नेहरू का जन्मदिन ‘बाल दिवस’ बन गया तो राजीव गांधी के जन्मदिन को ‘सद्भावना दिवस’ का रूप दे दिया गया। लेकिन आजाद भारत की एकता के सूत्रधार रहे सरदार पटेल की जयंती को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ बनने के लिए 2014 तक का इंतज़ार करना पड़ा।

यही नहीं, सरदार पटेल को ‘भारत रत्न’ देने में भी इन सरकारों को चार दशक लग गए। जबकि इस दौरान नेहरू ने 1955 में प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को ही भारत रत्नदे दिया। इंदिरा गांधी ने भी 1971 में खुद को भारत रत्न देते हुए अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ाया। इस बीच अनेक छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं को यह सम्मान मिला, लेकिन सरदार पटेल की याद कांग्रेस सरकार को 1991 में आई।      

यह उचित ही है कि देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल जैसे देश के उपेक्षित नायकों को उनका उचित सम्मान देने का बीड़ा उठाया है। इसी क्रम में एकता दिवस के आयोजन से लेकर गुजरात में सरदार पटेल की विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति बनाने जैसे महत्वपूर्ण काम हुए हैं। इन कामों के लिए निश्चित रूप से वर्तमान सरकार सराहना की पात्र है। 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)