बीएचयू प्रकरण : बर्खास्त प्रोफेसर और आइआइटी बीएचयू निदेशक की शह पर रची गयी साजिश

साजिश की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है। छोटा नागपुर वाटिका, अस्सी घाट, वाराणसी पर दिनांक 20 अगस्त, 2017 को स्टूडेंट फॉर चेंज की ओर से बैठक आयोजित की गई, जिसमें बीएचयू आईआईटी से बर्खास्त प्रोफेसर संदीप पांडे ने जमकर प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ ज़हर उगला। ये संदीप पांडे वही हैं, जिन्हें बीएचयू आईआईटी में अलगाववादी, देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में बीएचयू आईआईटी की गवर्निंग काउंसिल ने आईआईटी में कॉन्ट्रैक्ट विजिटिंग प्रोफेसर के पद से साल 2016 के शुरु में हटा दिया था। संदीप पांडे तभी से प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ आग उगल रहे हैं, जिसमें आईआईटी-बीएचयू के वर्तमान निदेशक राजीव संगल का भी पूरा समर्थन बताया जाता है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 22 सितंबर और 23 सितंबर, 2017 को घटित अशांति, उपद्रव और आन्दोलन की चिंगारी की तैयारी विगत कई महीनों से चल रही थी। इसकी योजना संदीप पांडे और उनके नेतृत्व में गठित स्टूडेंट फॉर चेंज नामके जेएनयू मार्का वामपंथी नक्सल समर्थक संगठन ने तैयार की जिसमें कई स्वार्थ प्रेरित समूह बाद में जुड़ते चले गए।

21 सितंबर, 2017 को सायंकाल में भारत कला भवन के पास एक छात्रा के साथ छेड़खानी की घटना को हथियार बनाकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को बदनाम करने और कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी को पद से हटाने की साजिश की ये पूरी सीरीज परत-दर-परत जिस तरह आगे बढ़ी, उसका संकेत यही है कि केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन भड़काने के लिए वामपंथी तत्व किसी भी हद तक जाकर कार्रवाई कर सकते हैं।

विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, साजिश की शुरुआत कुछ इस तरह से होती है। छोटा नागपुर वाटिका, अस्सी घाट, वाराणसी पर दिनांक 20 अगस्त, 2017 को स्टूडेंट फॉर चेन्ज की ओर से बैठक आयोजित की गई, जिसमें बीएचयू आईआईटी से बर्खास्त प्रोफेसर संदीप पांडे ने जमकर प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ ज़हर उगला। ये संदीप पांडे वही हैं, जिन्हें बीएचयू आईआईटी में अलगाववादी, देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप में बीएचयू आईआईटी की गवर्निंग काउंसिल ने आईआईटी में कॉन्ट्रैक्ट विजिटिंग प्रोफेसर के पद से साल 2016 के शुरु में हटा दिया था।

संदीप पांडे तभी से प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ आग उगल रहे हैं, जिसमें आईआईटी-बीएचयू के वर्तमान निदेशक राजीव संगल का भी पूरा समर्थन बताया जाता है। संदीप पांडे ने हाल ही में द-वायर पोर्टल पर प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी के खिलाफ जो ज़हरीला लेख लिखा है, उसमें आईआईटी के निदेशक राजीव संगल के हवाले से जो तथ्य अंकित किए गए हैं, उनसे साफ है कि निदेशक-आईआईटी राजीव संगल और संदीप पांडे की आपसी सांठ-गांठ बेहद गहरी है और दोनों वर्तमान अशांति के पीछे प्रमुख भूमिका में खड़े हैं। राजीव संगल ने इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी संदीप पांडे की बर्खास्तगी रोकने के लिए दस्तावेज मुहैया कराए थे।

विगत 20 सितंबर, 2017 यानी छात्रा के साथ छेड़खानी की घटना से महज़ एक दिन पहले बीएचयू आईआईटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के क्लास रूम जी-9 हॉल में स्टूडेंट फॉर चेंज से जुड़े कई छात्रों ने संदीप पांडे की शह पर बैठक की। इस बैठक के पीछे आईआईटी निदेशक राजीव संगल का पूरा समर्थन था, क्योंकि बगैर उनकी इजाजत के यह बैठक क्लास रूम में नहीं हो सकती थी।

सांकेतिक चित्र

वाराणसी में पीएम के आगमन के ठीक एक दिन पहले शहर के सभी वामपंथी छात्र संगठनों से जुड़े प्रमुख नेताओं को भी इस बैठक में सरदार भगत सिंह पर चर्चा के बहाने बुलाया गया था। बाकायदा इस बैठक के बारे में इश्तेहार आईआईटी के हॉस्टलों के नोटिस बोर्ड पर चस्पा किए गए थे। इस बैठक में चर्चा के बाद संदीप पांडे ग्रुप के छात्रों ने अलग से कुछ बाहरी लोगों के साथ मिलकर प्रधानमंत्री के वाराणसी आगमन को देखते हुए विरोध प्रदर्शन की रूपरेखा तैयार की। इस बैठक में कई वामपंथी खेमे की लड़कियां भी शामिल थीं।

21 सितंबर की सुबह नवीन महिला छात्रावास के सन्दर्भ में एक अनाम छात्रा की ओर से बगैर हस्ताक्षरित पत्र प्रोक्टोरियल बोर्ड के पास भेजा गया जिसमें आरोप लगाया गया कि छात्राओं के साथ छेड़खानी हो रही है, लड़के हॉस्टल के पास अनैतिक हरकत करते हैं, हॉस्टल के पास रास्ते में रोशनी और पेट्रोलिंग की व्यवस्था नहीं है, ऐसे में अगर अब कोई छेड़खानी हुई तो पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। यह पत्र प्रोक्टोरियल बोर्ड के साथ ही मीडिया को भी फौरन भेजा गया, जिसे दिल्ली के कई चैनलों के संपादकों ने बहस में उद्धृत भी किया। एनडीटीवी पर रवीश कुमार ने इसी पत्र के हवाले से कुलपति से अभद्र सवाल पूछे थे।

इस पत्र के सामने आने के बाद प्रॉक्टोरियल बोर्ड कार्रवाई भी प्रारंभ करता है। किन्तु, 21 सितंबर, 2017 की शाम को 6.30 बजे अचानक सूचना आती है कि भारत कला भवन के पास मोटर साइकिल सवार दो युवक छात्रा से छेड़खानी की घटना को अंजाम देकर भाग गए हैं। पीड़ित छात्रा त्रिवेणी छात्रावास संकुल आकर इस घटना की जानकारी अन्य छात्राओं को देती है।

लड़कियों का एक समूह इस मामले को लेकर त्रिवेणी हॉस्टल में हल्ला मचाना शुरु कर देता है। पीड़ित छात्रा की मदद के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड  के लोग आगे बढ़ते हैं, हल्ला मचाने वाली छात्राओं को समझाने की कोशिश होती है, घटना की जानकारी पुलिस को भी दी जाती है, पुलिस को एफआईआर के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड की ओर से कहा जाता है, रात 12 बजे तक छात्राओं से वार्डेन और अन्य अधिकारी और अध्यापक बातचीत करते हैं, छात्राओं की ओर से आश्वासन दिया जाता है कि वह प्रॉक्टोरियल बोर्ड की कार्रवाई से संतुष्ट हैं; किन्तु, जैसे ही सुबह के 6 बजते हैं, अचानक लड़कियों का एक समूह जबरन छात्रावास से निकलकर करीब एक किलोमीटर दूर स्थित मुख्य द्वार यानी सिंहद्वार पर आकर धरने पर बैठ जाता है।

गौरतलब है कि त्रिवेणी छात्रावास संकुल से महज़ 30 मीटर दूर कुलपति निवास पर छात्राएं शिकायत लेकर नहीं जाती हैं। सवाल है कि छात्राओं ने कुलपति निवास पर धरना देने की जगह सिंहद्वार को धरनास्थल के लिए क्यों चुना ? कारण निम्नवत बताया जा रहा है-

1- प्रधानमंत्री 22 सितंबर को वाराणसी में मौजूद थे, जिनका काफिला सिंह्दवार से होकर गुजरने वाला था, सीधे सीधे पीएम के रुट को रोकने के लिए धरना योजनापूर्वक बाहरी लोगों के उकसावे पर सिंहद्वार पर ले जाया गया।

2- कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी को धरना शुरू होते ही सिंहद्वार पर बाहरी लोगों के उकसावे पर छात्राओं ने बुलाना प्रारंभ किया। इसके पीछे का मकसद साफ था कि कुलपति को सिंहद्वार पर छात्राओं से वार्ता के बहाने किसी तरह बुलाया जाय और उन्हें चारों ओर से घेरकर अपमानित किया जाय।

3- कुलपति निवास पर धरने की सूरत में आंदोलन में बाहरी तत्वों का दखल संभव नहीं हो सकता था। कुलपति निवास पर बाहरी तत्वों के आने पर उनके पकड़े जाने और गिरफ्त में आने का खतरा खड़ा था। बाहरी तत्वों ने इसी कारण से जानबूझकर वामपंथी व कुछ अन्य संगठनों से जुड़ी पेशेवर नेता टाइप छात्राओँ के जरिए अन्य छात्राओं को सिंहद्वार पर आने को उकसाया और धरना शुरु होते ही इसे इन बाहरी तत्वों ने हाइजैक कर लिया।

किसी भी छात्रा के धरनास्थल से उठकर जाने पर पहरा बिठा दिया गया, खासतौर पर पीड़ित छात्रा और उसकी सहेलियों को जबरन धरनास्थल पर बैठे रहने के लिए बाध्य किया गया। हालांकि वह पीड़ित छात्रा मौका देखकर अपनी सहेलियों के साथ धरनास्थल से लौट गई और उसने खुद ही वाइस चांसलर से मुलाकात कर उन्हें पूरी बात बतायी।

सुनियोजित षड्यंत्र से जुड़ी ये दोनों आशंकाएं सत्य साबित हुईं। जिला प्रशासन को पीएम का रूट बदलना पड़ा और कुलपति प्रो. गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने जब छात्राओं से हॉस्टल में जाकर मिलने की कोशिश शुरू की तो कुछ वामपंथी तत्वों के उकसावे पर त्रिवेणी हॉस्टल के गेट के पास उनका रास्ता अवरुद्ध कराया गया। कुलपति ने जब एमएमवी हॉस्टल जाने का फैसला किया तो इसकी खबर मिलते ही उपद्रवी तत्वों ने 23 सितंबर की रात 9 बजे के करीब कुलपति निवास के बाहर पत्थरबाजी, नारेबाजी शुरु कर दी, यहां तक कि पेट्रोल बम भी फेंके गए।

(लेखक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। बीएचयू प्रकरण पर गहरी जानकारी रखते हैं। इस लेख में व्यक्त तथ्य और विचार उनके निजी हैं।)