विभाजन के बाद काफी समय भारत में रहने वाले भुट्टो पाकिस्तान जाकर कट्टर भारत विरोधी क्यों हो गए ?

जुल्फिकार अली भुट्टो क्यों इतने भारत विरोधी हो गए ? इस बारे में एक राय ये भी है कि चूंकि वे  विभाजन के बाद काफी वक्त तक भारत  में रहे थे, इसलिए उन पर भारत के प्रति उदार होने के भी कट्टरपंथी आरोप लगाते थे। इन आरोपों का जवाब देने के लिए वे अपनी भारत-विरोधी छवि सामने लाते थे।

पाकिस्तान के लिए चालू साल खास है, क्योंकि 2018 में वहां पर संसद के लिए चुनाव होने हैं। इस लिए चुनावी माहौल बन रहा है। इसी क्रम में वहां प्रमुख दल अपने-अपने तरीके से तैयारी कर रहे हैं। पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) की बात करें तो उसके शिखर नेता जुल्फिखार अली भुट्टो की एक जीवनी भी हाल ही में बाजार में आई है। इसका नाम है ‘बोर्न टू बी हैंगंड’ जिसकी काफी चर्चा हो रही है।

पिछला साल पीपीपी और भुट्टो के लिए काफी महत्वपूर्ण था। सन 2017 को पीपीपी ने भुट्टो  की सरकार के तख्ता पलटने के 40 साल पूरे होने के रूप में मनाया था। पिछला साल भुट्टो की पुत्री और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या का 10 वां साल भी था। अगला साल पीपीपी भुट्टो की फांसी के 40 वें साल के रूप में मनाएगी। यानी भुट्टो कुनबे के लिए ये अहम साल हैं।

जुल्फिकार अली भुट्टो

अगर भारत के संदर्भ में देखें तो भुट्टो की शख्सियत भारत-विरोधी के रूप में सामने आती है। हालांकि उनका कई अर्थों में भारत से संबंध था। जुल्फिकार अली भुट्टो के मुम्बई और जूनागढ़ से रिश्तों की जानकारी किसको नहीं है।  जुल्फिकार अली भुट्टो का भारत से बहुत गहरा रिश्ता रहा है। उनकी शिक्षा मुम्बई के प्रतिष्ठित कैथडरल  कालेज में हुई। वहां उनके परम मित्र थे पीलू मोदी, जो राज्य सभा सदस्य भी रहे। पीलू मोदी ने अपनी किताब- ‘ जुल्फी, माई फ्रेंड’ में लिखा है कि हालांकि हम दोनों घनिष्ठ मित्र थे 1946 में, पर जुल्फिकार टू नेशन थ्योरी पर यकीन करते थे। वे जिन्ना के आंदोलन को सही मानते थे। इसके विपरीत उन्हें कभी ये बात समझ नहीं आ रही थी कि भारत धर्म के नाम पर बंटेगा।

हिन्दू थीं माँ

भुट्टो के पिता सर शाहनवाज भुट्टो देश के विभाजन से पहले गुजरात की जूनागढ़ रियासत के प्रधानमंत्री थे। भुट्टो की मां हिन्दू थीं, उनका निकाह से पहले नाम लक्खीबाई था। बाद में हो गया खुर्शीद बेगम। वो मूलत: राजपूत परिवार से संबंध रखती थी। उन्होंने निकाह करने से पहले ही इस्लाम स्वीकार किया था। कहने वाले कहते हैं कि शाहनवाज और लक्खीबाई के बीच पहली मुलाकात जूनागढ़ के नवाब के किले में हुई। वहां पर लक्खीबाई भुज से आई थी।

शाह नवाज जूनागढ़ के प्रधानमंत्री के पद पर 30 मई,1947 से लेकर 8 नवंबर,1947 तक रहे। लक्खीबाई के पिता जयराजसिंह जडेजा का संबंध राजकोट के पेनेली गांव से था। जबकि भुट्टो की दादी का रिश्ता लोहाना बिरादरी से था।  जब बेनजीर भुट्टो की निर्मम हत्या हुई थी, तब जूनागढ़ में भी शोक की लहर दौड़ गई थी। यहां के वांशिदें बेनजीर को कहीं न कहीं अपना ही मानते थे। जूनागढ़ शहर की जामा मस्जिद में इमाम मौलाना हाफिज मोहम्मद फारूक की अगुवाई में उनकी आत्मा की शांति के लिए नमाज भी अदा की गई थी।

1947 में क्यों नहीं गए पाक

एक बड़ा सवाल ये भी है कि देश के विभाजन के वक्त भुट्टो और उनका परिवार पाकिस्तान क्यों नहीं चले गए थे? जब गांधी जी की 1948 में हत्या हुई तो वे बंबई में ही थे। वे पीलू मोदी को सांत्वना दे रहे थे। वे जिन्ना की 11 सितंबर, 1948 को मौत के वक्त भी बंबई में थे। वे 1949 में अमेरिका उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए गए थे। भुट्टो कुनबे के विरोधी इस मुद्दे को बार-बार उठाते हैं कि ये देश के बंटवारे के तुरंत बाद पाकिस्तान शिफ्ट नहीं हुए थे। इस सवाल का जवाब देना भुट्टो कुनबे के लिए कठिन होता है। खैर, वे 1950 के बाद पाकिस्तान जाकर बसे। वहां पर उन्होंने अपनी छवि एक समाजवादी विचारधारा में यकीन रखने वाले इंसान के रूप में विकसित की। हालांकि वे निजी जीवन में कतई समाजवादी नहीं थे।

वे 1973 से 1977 तक प्रधानमंत्री रहे और इससे पहले अय्यूब ख़ान के शासनकाल में विदेश मंत्री रहे थे। वे 35 साल की उम्र में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बन गए थे। 1965 में अयूब खान को उनके विदेश मंत्री भुट्टो द्वारा कश्मीर में घुसपैठियों को भेजने के लिए भड़काया गया था। शास्त्री ने इसका जवाब लाहौर की तरफ अंतरराष्ट्रीय सीमा पार टैंक भेज कर दिया। ये लड़ाई ताशकंद (आज का उजबेकिस्तान) में सोवियत यूनियन की मध्यस्थता से शांति के साथ ख़त्म हुई। लेकिन अय्यूब ख़ान से मतभेद होने के कारण उन्होंने अपनी नई पार्टी (पीपीपी) 1967 में बनाई।

1962 के भारत-चीन युद्ध, 65 और 71 के पाकिस्तान युद्ध, तीनों के समय वे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे। 1965 के युद्ध के बाद उन्होंने ही पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम का ढाँचा तैयार किया था। पण्डित नेहरु की अंत्येष्टि में शामिल होने भुट्टो 1964 में और फिर 1972 में भारत-पाकिस्तान की जंग के बाद शिमला आए थे।

क्यों हो गए कट्टर भारत विरोधी ?

भुट्टो की पर्सनेल्टी की तुलना भारत के दो प्रधानमंत्रियों क्रमशः इंद्र कुमार गुजराल और डा. मनमोहन सिंह से की जा सकती है। जहां भुट्टो का भारत से गहरा संबंध था, वहीं गुजराल साहब और डा. मनमोहन का पाकिस्तान से नाता था। इन दोनों भारतीय नेताओं का पाकिस्तान में जन्म हुआ। इन्होंने अपनी स्कूली-कालेज शिक्षा भी पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में ग्रहण की। पर, इन्होंने कभी पाकिस्तान से नफरत नहीं की। ये तो भारत-पाकिस्तान संबंधों को मजबूत करने के प्रयास ही करते रहे। तो भुट्टो क्यों इतने भारत विरोधी हो गए ? एक राय ये भी है कि चूंकि वे  विभाजन के बाद काफी वक्त तक भारत  में रहे थे, इसलिए उन पर भारत के प्रति उदार होने के भी कट्टरपंथी आरोप लगाते थे। इन आरोपों का जवाब देने के लिए वे अपनी भारत-विरोधी छवि सामने लाते थे।

भुट्टो को चार अप्रैल, 1979 को फ़ाँसी पर लटका दिया गया था, जिसमें सैन्य शासक ज़िया उल हक़ का हाथ था। भुट्टो को रावलपिंडी की जेल में फांसी पर लटका दिया था। फांसी होने के महज़ दो साल पहले तक वे पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म थे। उन पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को मरवाने का इल्ज़ाम था। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की मौत के नौ साल के बाद उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं। बहरहाल, इस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिल सका है कि भुट्टो देश के विभाजन के बाद पााकिस्तान तुरंत क्यों नहीं गए ?

(लेखक यूएई दूतावास में सूचनाधिकारी रहे हैं। वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)