जय शाह पर आरोप लगाने वाला खेमा मानहानि के मुकदमे से इतना असहज क्यों है ?

जय शाह ने अगर अदालत में आपराधिक मानहानि का दावा किया है, तो इसका सीधा-सा मतलब है कि अदालत में उनके पास इस मामले पर अपना पक्ष रखने की पूरी तैयारी भी है। मगर, इस अदालती कार्रवाई से आरोप लगाने वालों को हो रही परेशानी से यही लगता है कि उनके पास अदालत में अपनी बात साबित करने के लिए कुछ साक्ष्य नहीं हैं।

पिछले दिनों एक वेबसाइट पर छपे एक लेख में बीजेपी अध्यक्ष अमित भाई शाह के पुत्र जय शाह पर उल-जुलूल तथ्यों के जरिये आरोप लगाया गया कि केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद उनकी कंपनी साल भर में ही पचास हजार से अस्सी करोड़ की हो गई। लेख की प्रकाशक वेबसाइट, जिसमें ज़्यादातर वामपंथी विचारधारा के लोग शामिल हैं, ने सियासी रंग में रंगकर इस लेख को दुनिया के सामने परोसा।

अमित शाह ने खुद न्यायालय का सामना किया है और विरोधियों द्वारा रचे गए तमाम आरोपों के कुचक्र से बेदाग बाहर भी निकले हैं। देश की अदालतों ने प्रधानमंत्री मोदी को भी तमाम आरोपों से बरी किया, जो उनके विरोधियों ने रचे थे। मौजूदा आरोप को उसी किस्म का समझा जाना चाहिए। इसकी पोल पट्टी तो काफी हद तक इसके जवाब में लिखे गए लेखों में खुल चुकी है, शेष अदालत में खुल जाएगी। ये खबर जिन लेखिका की है, पिछले रिकॉर्ड के आधार पर उनकी विश्वसनीयता भी संदिग्ध ही बताई जा रही है।

भाजपाध्यक्ष अमित शाह के पुत्र जय शाह

जय शाह अपने पिता की तरह सियासत में नहीं हैं; उनका सियासत से इतना ही वास्ता है कि वह  दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष के पुत्र हैं, इसलिए ये तो तय है कि इस खबर को राजनीतिक विरोधी अपने अपने-अपने ढंग से इस्तेमाल करेंगे और कर भी रहे। खबर लिखने और छापने वाले का इरादा भी यही लगता है।

लेकिन, जबसे मानहानि के मुकदमे की बात आई है, इन खेमों की परेशानी बढ़ी हुई दिख रही है। वे जय शाह के इस लोकतान्त्रिक अधिकार को धमकी बताने में लगे हैं। मतलब कि आप किसीके विषय में सार्वजनिक रूप से कुछ भी मनमाफिक कह दीजिये और वो आप पर कानूनी कार्रवाई करे तो उसे धमकी बता दीजिये। क्या गजब पत्रकारिता है!

जय शाह ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए अदालत में इसे चुनौती दी है और आपराधिक मानहानि का दावा ठोंका है; यही वजह है कि इन आरोपों को उस पोर्टल, जिसने इसे प्रकाशित किया है, के अलावा किसी और मेनस्ट्रीम मीडिया ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। 11 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई अहमदाबाद कोर्ट में होनी है।

इस पूरे मामले में सबसे पहले केन्द्रीय मंत्री और भाजपा नेता पीयूष गोयल ने मोर्चा संभालते हुए कहा कि अमित शाह की छवि खराब करने की नीयत से वेबसाइट ने भ्रामक, अपमानजनक और आधारहीन ख़बर छापी है। पीयूष गोयल ने कहा कि जय शाह के सामने रिपोर्टर ने जितने भी सवाल भेजे थे, उनका जवाब दे दिया गया था। केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जो नेता 5000 करोड़ रूपये के नेशनल हेराल्ड घोटाले में जमानत पर हैं, वह कैसे ईमानदारी की शिक्षा दे सकते हैं।

यह भी समझने योग्य है कि जय शाह ने अगर मानहानि का दावा  किया है, तो इसका मतलब है कि अदालत में उनके पास इस मामले पर अपना पक्ष रखने की पूरी तैयारी भी है। मगर, इस अदालती कार्रवाई से आरोप लगाने वालों को हो रही परेशानी से यही लगता है कि उनके पास अदालत में अपनी बात साबित करने के लिए कुछ साक्ष्य नहीं हैं।

जय शाह कमोडिटी बिज़नेस में सालों से हैं। किसी कंपनी का एनबीएफसी से लोन लेना गलत नहीं है और साथ ही, यह ‘लेटर ऑफ़ क्रेडिट’ था, कोई लोन नहीं। एक नए बिज़नेस की शुरुआत करने के बाद नफ़ा या नुकसान खेल का हिस्सा है। जय शाह ने दावा किया है कि उनकी तरफ से सारे पेमेंट चेक के ज़रिये किये गए हैं, कुछ भी कैश में नहीं है। ऐसे में, बहुत झोल-झाल की सम्भावना नहीं रह जाती है। ये आरोप चूंकि सिर्फ जय शाह पर नहीं लगाए गए, उनके जरिये भाजपाध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा गया है। ऐसे में, इसमें भाजपा को उतरना ही था और वो उतरी भी है। अब जो भी होना है, वो अदालत में होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)