एग्जिट पोल में महाराष्ट्र-हरियाणा में फिर भाजपा सरकार, विपक्ष की हालत पस्त

महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों ही प्रदेशों में पिछले पांच वर्षों में ऐसी सरकारें रही हैं, जिनकी छवि जनता के बीच बेहतर रही। दोनों ही प्रदेशों के मुख्यमंत्री विवादों से दूर रहे, उनकी सरकारों के ऊपर किसी किस्म के भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे। अगर किसी ने आरोप लगाया तो इस बात के लिए कि इन दोनों सरकारों के भ्रष्टाचारियों को पनपने की जगह नहीं दी। दोनों ही राज्यों में जितनी भर्तियाँ हुईं, वह पारदर्शी रहीं।

सबसे पहले ये बता देना ज़रूरी है कि एग्जिट पोल्स नतीजे नहीं होते, नतीजों के रुझान भर होते हैं। इसी लिहाज़ से हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजों को भी देखा जाना चाहिए, जहाँ विधानसभा के लिए संपन्न हुए चुनाव में विपक्ष की हालत लचर ही दिख रही है। अभी तक जितने भी एग्जिट पोल्स आये हैं, उनका इशारा साफ़ है कि विपक्ष का प्रदर्शन पहले के मुकाबले और ज्यादा गिरा है।

महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन कुल सीटों का एक तिहाई भी हासिल कर ले, इसके आसार भी बेहद कम हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी अपने बलबूते डेढ़ सौ के लगभग सीटों के साथ सरकार बनाती हुई नजर आती है। गठबंधन की सहयोगी शिवसेना भी पिछली  बार के मुकाबले इस बार बेहतर स्थिति की तरफ आगे बढ़ रही है।

साभार : दैनिक भास्कर

वैसे दोनों ही प्रदेशों में पिछले पांच वर्षों में ऐसी सरकारें रही हैं, जिनकी छवि जनता के बीच बेहतर रही। दोनों ही प्रदेशों के मुख्यमंत्री विवादों से दूर रहे, उनकी सरकारों के ऊपर किसी किस्म के भ्रष्टाचार के आरोप नहीं रहे। अगर किसी ने आरोप लगाया तो इस बात के लिए कि इन दोनों सरकारों के भ्रष्टाचारियों को पनपने की जगह नहीं दी। दोनों ही राज्यों में जितनी भर्तियाँ हुईं, वह पारदर्शी रहीं। 

मतदान का प्रतिशत पिछली बार के मुकाबले कम था, इसकी वजह यह हो सकती है कि जनता में सरकार के खिलाफ कोई गुस्सा नहीं था और विपक्ष बिखरा हुआ था। आम तौर पर होता ऐसा है कि जनता सरकारों को हराने का प्रयास ज्यादा करती है, लेकिन इन दोनों राज्यों में ऐसा देखने को नहीं मिला।

महाराष्ट्र की बात करें तो इस बार समय से पहले ही बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन हो गए, दोनों ही पार्टियों के इरादे नेक थे, जनता के बीच भी इसको लेकर कोई विरोधाभास नहीं था। सो अगर कुछ लोग यह सोच रहे हों कि हरियाणा और महाराष्ट्र का हाल राजस्थान और मध्यप्रदेश की तरह होगा तो उन्हें निराशा मिलने की पूरी संभावना है।

दोनों ही प्रदेशों में राजनीतिक हालात कुछ अलग थे, इसलिए कांग्रेस को वहां जीत के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ा। यह भी सही है कि इन दोनों प्रदेशों में बीजेपी की जीत और हार के बीच फासला महज कुछ सीटों का ही था। 

साभार : द फेडरल

लोकसभा चुनाव के बाद ये पहले चुनाव हैं जिसे केंद्र सरकार की परीक्षा के तौर पर देखा देखा जा रहा था, लेकिन केंद्र की नरेन्द्र मोदी की सरकार को लेकर लोगों में किसी तरह की अनिश्चितता का भाव तो है नहीं, जिससे किसी प्रकार के शक की कोई गुंजाइश जनता के मन में पैदा होती।

लोकसभा चुनाव के बाद विपक्षी पार्टियों से उम्मीद की जा रही थी, वह अपने आप को सँभालने का काम करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद से राहुल गाँधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की हालत और ज्यादा पस्त हो गयी। नेतृत्व का संकट पार्टी के ऊपर इस कदर छाया कि अभी तक पार्टी को कोई पूर्णकालिक नेता नहीं मिल पाया है।

हरियाणा में एक तरफ जहाँ विपक्ष टुकड़ों में हुआ था, वहीं कांग्रेसी नेता अपने-अपने गढ़ बचाने में लगे हुए थे, एक सामूहिक लक्ष्य की तरफ कांग्रेस कभी भी आगे बढ़ती हुई नहीं दिख रही थी। बहरहाल, हमें असली नतीजों का इंतजार करना चाहिए। जीत और हार के मायने निश्चित रूप से भारतीय लोकतंत्र में विपक्ष के भविष्य को तय करेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)