यूएपीए : नकाब में छिपे आतंकियों और नक्सलियों को बेनकाब करने वाला क़ानून

आतंकी हों या नक्सली, इन्हें नैतिक समर्थन उन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों से भी मिलता रहता है, जो शहर के ऐशो-आराम में रहकर देश की आत्मा पर आघात करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे ज़्यादातर लोगों की खुद-ब-खुद पहचान हो चुकी है कि ये एक ख़ास वैचारिक गुट के सिपाहसालार हैं, लेकिन फिर भी जरूरत है इनके असली  चेहरे को बेनकाब कर इनकी कारिस्तानियों पर लगाम लगाने की।

देश में आतंक के खिलाफ एक राय है कि देश की आत्मा पर आघात करने वालों से सख्ती से निपटा जाए। भारत देश की एकता और अखंडता को बचाकर रखने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरकार की ही नहीं, आम लोगों की भी उतनी है। इसलिए समय समय पर सख्त कदम उठाने की ज़रुरत भी पड़ती है। एक समय था जब पंजाब में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को देखते हुए ऐसा लगता था कि देश कभी इतने बड़े खतरे से उबर ही नहीं पाएगा लेकिन जब सेना और स्थानीय प्रशासन को शक्तियां दी गईं, तो देश के टुकड़े करने वालों को घुटने टेकने पड़ गए।

ऐसा ही कश्मीर में हमने देखा है, जहाँ अलगाववादियों की वजह से लाखों कश्मीरी हिन्दू घाटी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। हालांकि 370 हटने के बाद अब इस विषय में भी उम्मीद पैदा हुई है। देश के अन्दर आतंक उन नक्सलियों की वजह से भी है, जो देश को टुकड़े टुकड़े करने के सपने देखते रहते हैं।

आतंकी हों या नक्सली, इन्हें नैतिक समर्थन उन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों से भी मिलता रहता है, जो शहर के ऐशो-आराम में रहकर देश की आत्मा पर आघात करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे नकाबपोश आतंकियों-नक्सलियों की खुद-ब-खुद पहचान अक्सर होती रहती है, लेकिन फिर भी जरूरत  है इनके असली  चेहरे को बेनकाब कर इनकी कारिस्तानियों पर लगाम लगाने की।

पिछले दिनों संसद के अन्दर ऐसे ही लोगों को घेरने के लिए एक आतंकवाद विरोधी संशोधन बिल (UAPA) लाया गया ताकि कुछ लोग अपनी गैर कानूनी गतिविधियों को एजेंडा बनाकर देश की एकता और अखंडता को बंधक न बना सकें। आतंकरोधी बिल पहले भी लाये गए हैं, लेकिन इस बिल में फर्क यह है कि संगठनों के साथ उन व्यक्तियों को भी आतंकी ठहराया जा सकता है, जिनकी गतिविधियाँ राष्ट्रहित के खिलाफ हैं। 

साथ ही, एनआईए को आतंकियों से निपटने के लिए असीमित शक्तियां दी गई हैं, जिसके ज़रिये यही संदेश निकलता है कि आतंक को लेकर सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति हर मोर्चे पर जारी है। इसके ज़रिये आतंक की घटनाओं में तो कमी लाई ही जाएगी साथ ही साथ अदालतों में आतंकियों से सम्बंधित मुकदमों को अंजाम तक पहुँचाने में तेजी भी लाई जाएगी।

इस बिल के अन्दर NIA को बहुत सारी शक्तियां दी गई हैं, लेकिन जांच के लिए NIA के डायरेक्टर जनरल से अनुमति लेनी होगी। बाद में इन फैसलों को गृह सचिव के सामने अपील के लिए पेश भी किया जा सकेगा। केंद्र सरकार किसी संस्था या व्यक्ति को आतंकी घोषित करने से पहले फैसले को एक रिव्यु कमिटी के सामने भी पेश कर सकती है, जिसमें हाई कोर्ट के सिटींग या रिटायर्ड जज भी शामिल होंगे। जाहिर है, सरकार के इस कानून से उन लोगों को भागने का रास्ता नहीं मिलेगा जो नकाब पहनकर आतंकवाद को संपोषित करने का घृणित कार्य करते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)