‘हिंदुत्व’ की विचारधारा से ही निकलेगा समाजिक भेद-भाव का समाधान

आनंद कुमार 

कभी आस पास नजर डालने पर भी काफ़ी कुछ नजर आता है। जैसे अभी हाल में ही समाचारों में तुर्की दिखा था। आधुनिक तुर्की का इतिहास देखेंगे तो कई चीज़ें नजर आ जाएँगी। किसी जमाने में यहाँ ओटोमन साम्राज्य हुआ करता था। इस साम्राज्य ने करीब सात सौ साल राज किया। ये कोई एक देश में नहीं बल्कि यूरोप, एशिया, अफ्रीका यानि कई महादेशों में फैला हुआ साम्राज्य था। यहीं के खलीफा का इस्लामिक राज्य स्थापित करने के लिए भारत में भयावह मोपाला दंगे हुए थे। शायद कई लोगों ने मोपला दंगे का नाम ना सुना हो, लेकिन केरल में हुए इस दंगे की भयावहता ऐसी थी की उसके बारे में एनी बेसेंट कहती थी कि भगवान ना करे हमें कभी फिर से खलीफा और इस्लामिक हुकूमत के बुरे सपने को झेलना पड़े। खैर विश्व युद्ध के समय ओटोमन जर्मनी से जा मिले थे और 19 वीं शताब्दी का दूसरा दशक शुरू होते ही ओटोमन हरा कर ख़त्म कर दिए गए।

यूरोप ने जो तुर्की में की है वही गलती मत दोहराइए। अपने जातिगत अहंकार से बाहर आइये। चाहे आप अगड़े हों या पिछड़े, अगर हिन्दुओं को वापस आगे आना है तो सबसे पहले अपने अहंकार को त्यागना होगा। आपका हर धर्म ग्रन्थ यही कहता है कि अहंकार भगवान का भोजन है। इस से पहले की अहंकार के कारण आप काल के आहार बन जाएँ, आँखे खोलिए। जब तक जातिगत भावना से आगे आकर हिन्दू समाज सोचना शुरू नहीं करता तबतक विकास केवल कुछ इलाकों में सिमटा रहेगा। यहाँ ये भी ध्यान रखिये कि ये कोई बाहर से होने वाली प्रक्रिया नहीं है। ये आपको अपने अन्दर ही करना होगा। अगर बाहर से किसी व्यक्ति ने थोड़े समय के लिए कर भी दिया तो उसके हटते ही ये वैसे ही गायब हो जाएगी जैसा गुजरात में हुआ।

यहाँ से आधुनिक तुर्की का इतिहास शुरू होता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान था कमाल अतातुर्क यानि कमाल पाशा का। उन्होंने हारे हुए तुर्की में फिर से शांति बहाल की और फिर से खास्ताहाल तुर्की को अपने पैरों पर खड़ा करना शुरू किया। मध्य युग की इस्लामिक सोच से तुर्की को छुड़ाने के लिए कमाल पाशा ने कई कड़े फैसले लिए। उन्होंने फारसी को हटा कर लैटिन को सरकारी भाषा बना दिया। नकाब-हिज़ाब पर, तुर्की टोपी पर पाबन्दी लगा दी। आधे यूरोप और आधे एशिया में पड़ने वाले मुल्क को अरबी प्रभाव से छुड़ा कर वो आधुनिकता की ओर ले चले। आज भी इस्तानबुल सैलानियों के लिए रोचक जगह है। कमाल पाशा के क़दमों से आई उन्नति भी धीरे धीरे इस पिछड़े मुल्क में दिखने लगी। ऐसे में यूरोप की नजर तुर्की पर नहीं होती ऐसा मुमकिन नहीं था। तुर्की की विशाल सेना उसके लिए बड़े काम की थी। उसने नाटो में तुर्की को भी शामिल कर लिया। लेकिन यूरोप ने पूरी तरह तुर्की को नहीं अपनाया था। उधर कमाल पाशा के बाद के समय में उनके सपनों को कुचलने पर इस्लामिक कट्टरपंथियों की भी नजर थी। नतीजा ये हुआ कि धीरे धीरे इस्लामिक कट्टरपंथियों और कमाल पाशा के आदर्शों का ध्यान रखने वाली तुर्की की सेना में टकराव होने लगे। दो चार छोटी मोटी तख्तापलट की घटनाएं भी हुई, मगर सेना ने फ़ौरन लोकतंत्र बहाल कर दिया।

इन कट्टरपंथियों को मौका तब मिला जब देश में असंतोष फैला। ये असंतोष तुर्की को यूरोपियन संघ में शामिल ना किये जाने के कारण उपजा था। तुर्की को यूरोपियन संघ में शामिल किये जाने के नाम से यूरोप को अपनी जातीय श्रेष्ठता याद आ गई। उसने तुर्की को शामिल ना करने के लिए सारी अड़चने खड़ी कर दी। कागज़ी कारवाही पूरी ना कर पाने के कारण तुर्की यूरोपीय संघ में शामिल ना हो सका और ऐसे में इस्लामिक कट्टरपंथियों को ये कहने का मौका मिल गया कि देखो, आखिर हम ही तुम्हारे अपने हैं। ये आधुनिकता सारी बकवास है, तुम्हारे साथ धोखा हुआ है! कल तक तुर्की वो देश था जो बहुसंख्यक इस्लामिक आबादी वाला होने के वाबजूद कट्टरपंथी नहीं था। आज के तुर्की के बढ़ते इस्लामीकरण की नींव में यही असंतोष है।

अब इसे भारत में देखते हैं

कुछ साल पहले का गुजरात शायद याद होगा। हिंदुत्व की एकता के कारण जिस तेजी से गुजरात ने तरक्की की वो किसी से छुपा नहीं है। जहाँ आम तौर पर एक राज्य में राजधानी ही विकास का केंद्र होती है, वहीँ गुजरात में कई छोटे छोटे औद्योगिक केंद्र बन गए। ऐतिहासिक रूप से जो जगह जिस चीज़ के लिए जानी जाती थी वहां उसके कल कारखाने खड़े हो गए। नए बंदरगाह और औद्योगिक इकाइयां बन गई। ऐसे में इस विकास की रफ़्तार को रोकने के लिए हिंदुत्व की एकता को तोड़ना आवश्यक था। पहले से ही भारत में इसे तोड़ने के लिए आरक्षण और जातिवाद नाम के हथियार मौजूद थे। एक एक करके दोनों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल होता देखिये।पहले तो उद्यमी पटेल समुदाय को आरक्षण का झांसा देकर उकसाया गया। नतीजा ये हुआ कि कल जो लोग विकास के कामों में लगे थे वो विकास की पटरियां उखाड़ने आ जुटे। दूसरा वार हुआ जातिवाद को हवा देने के लिए ओबीसी समुदाय को अनुसूचित जातियों जनजातियों से लड़ा देना। गौ रक्षा के नाम पर अनुसूचित जातियों के इस पुश्तैनी व्यापार पर चोट की गई। नतीजा क्या होगा इसका? अनुसूचित जातियों के हाथ से ये धंधा निकल कर समुदाय विशेष के हाथ जा पहुंचेगा। पहले से ही गरीबी की मार झेल रहे ये समुदाय और गरीब हो जायेंगे। ये जानी हुई बात है कि गरीबी के साथ अशिक्षा आएगी। फिर अशिक्षित, गरीब, भूखे लोगों को विकास के बदले विनाश की तरफ धकेलना और ज्यादा आसान हो जायेगा।

Hindu-Extremists
Photo: sikh24.com

यूरोप ने जो तुर्की में की है वही गलती मत दोहराइए। अपने जातिगत अहंकार से बाहर आइये। चाहे आप अगड़े हों या पिछड़े, अगर हिन्दुओं को वापस आगे आना है तो सबसे पहले अपने अहंकार को त्यागना होगा। आपका हर धर्म ग्रन्थ यही कहता है कि अहंकार भगवान का भोजन है। इस से पहले की अहंकार के कारण आप काल के आहार बन जाएँ, आँखे खोलिए। जब तक जातिगत भावना से आगे आकर हिन्दू समाज सोचना शुरू नहीं करता तबतक विकास केवल कुछ इलाकों में सिमटा रहेगा। यहाँ ये भी ध्यान रखिये कि ये कोई बाहर से होने वाली प्रक्रिया नहीं है। ये आपको अपने अन्दर ही करना होगा। अगर बाहर से किसी व्यक्ति ने थोड़े समय के लिए कर भी दिया तो उसके हटते ही ये वैसे ही गायब हो जाएगी जैसा गुजरात में हुआ। कमियां और भी होंगी, लेकिन पहले ये जातिवादी अहंकार त्यागिये, काहे की बाकी जो है, सो तो हैये है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)