अन्त्योदय

जयंती विशेष : दीनदयाल उपाध्याय के विचारों की प्रासंगिकता

दीनदयाल उपाध्याय राजनेता के साथ-साथ उच्च कोटि के चिंतक, विचारक और लेखक भी थे। इस रूप में उन्होंने श्रेष्ठ, शक्तिशाली और संतुलित रूप में विकसित राष्ट्र की कल्पना की थी। उन्होंने निजी हित व सुख सुविधाओं का त्याग कर अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। यही बात उन्हें महान बनाती है

नरेंद्र मोदी : लोककल्याण के लिए संकल्पित जननायक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहे हैं। सत्तर वर्षों के इस कालखंड के दौरान समाज जीवन में उनकी यात्रा बेहद लंबी और समृद्ध रही है।

दीनदयाल उपाध्याय : ‘व्यक्ति और समाज का सुख परस्पर विरोधी नहीं, पूरक होता है’

आज दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि  है। शुरुआत में ही यह भी जोड़ना उचित होगा कि दीनदयाल उपाध्याय को याद करने की एकमात्र वजह यह नहीं होनी चाहिए कि उनको मानने वाले लोग अभी सत्ता में हैं बल्कि इसलिए भी उनको याद करना जरूरी है कि समन्वयवाद की जो धारा हमेशा से भारतीय चिंतन के केंद्र में रही है, दीनदयाल भी उसी के पोषक हैं। आज दीनदयाल को याद करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि वो कट्टरता के धुर विरोधी थे।

जयंती विशेष : भारतीयता के चिंतक दीन दयाल उपाध्याय

राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास को लेकर दुनिया के तमाम विद्वानों ने अलग-अलग वैचारिक दर्शन प्रतिपादित किए हैं। लगभग प्रत्येक विचारधारा समाज के राजनीतिक, आर्थिक उन्नति के मूल सूत्र के रूप में खुद को प्रस्तुत करती है। पूँजीवाद हो, साम्यवाद हो अथवा समाजवाद हो, प्रत्येक विचारधारा समाज की समस्याओं का समाधान देने के दावे के साथ

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार को आवश्यक मानते थे दीनदयाल उपाध्याय

पं. दीनदयाल उपाध्याय ने स्वस्थ लोकतंत्र के लिए लोकमत के परिष्कार का सुझाव दिया था। उस समय देश की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। उसके विकल्प की कल्पना भी मुश्किल थी। दीनदयाल जी से प्रश्न भी किया जाता था कि जब जनसंघ के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो जाती है, तो चुनाव में उतरने की जरूरत ही क्या है। दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन सकारात्मक था। उनका कहना था कि चुनाव के

विपक्ष के अवरोधों के बावजूद तीन वर्षों में विकास-पथ पर सतत बढ़ती रही है सरकार

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले तीन वर्षों के शासनकाल के दौरान सरकार के क़दमों से देश की छवि में व्यापक रूप से बदलाव आया है। इस दौरान ये सरकार एक निर्णयकारी सरकार के रूप में उभरी है और यही कारण है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्रशासकीय छवि, लोक-कल्याण को समर्पित नीतियों, मज़बूत इच्छाशक्ति और सशक्त नेतृत्व की असीम क्षमता की स्वीकृति पूरे विश्व में देखने को मिली है।

दीनदयाल उपाध्याय : जिनके लिए राजनीति साध्य नहीं, साधन थी !

भारतीय राजनीति में दीनदयाल जी का प्रवेश कतिपय लोगों को नीचे से ऊपर उठने की कहानी मालुम पड़ती है। किन्तु वास्तविक कथा दूसरी है। दीनदयाल जी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में रहकर जिस आंतरिक व महती सूक्ष्म भूमिका को प्राप्त कर लिया था, उसी पर वे अपने शेष कर्म शंकुल जीवन में खड़े रहे। उस भूमिका से वे लोकोत्तर हो सकते थे, लोकमय तो वो थे ही। देश के चिन्तक वर्ग को कभी-कभी लगता है कि