सिक्किम

कांग्रेस सरकारों की उपेक्षा का नतीजा है भारत-चीन सीमा विवाद

देखा जाए तो आज जो स्‍थिति बनी है वह कांग्रेसी सरकारों की लंबे अरसे की उपेक्षा का नतीजा है। इसी को देखते हुए 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नरेंद्र मोदी ने चीन सीमा से लगते इलाकों में सड़क और दूसरी आधारभूत परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी

भारत से युद्ध की हालत में नहीं है चीन, ऐसा किया तो ये उसकी बहुत बड़ी भूल होगी !

चीन में स्थिति ये है कि वहाँ कभी बेहद सस्ती रही श्रम शक्ति अब धीरे-धीरे बढ़ते बुढ़ापे के कारण महँगी होती जा रही है, जिससे चीन की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है। भारत में अपने उत्पादों के लिए बढ़ती मुश्किलों और आंतरिक रूप से डांवाडोल हो रही अर्थव्यवस्था के कारण ऊपर से मजबूत और चमक-दमक वाला दिख रहा चीन अन्दर ही अन्दर आर्थिक रूप से काफी परेशान है। ऐसे

सिक्किम सीमा विवाद में भारत ने जो रुख दिखाया है, चीन को उसकी उम्मीद ही नहीं रही होगी !

भारत व चीन के बीच सिक्किम सीमा के डोकलाम पर इन दिनों विवाद की स्थिति है। यहां हाल ही में भारत ने सैनिकों की तैनाती में इजाफा किया है। बताया जाता है कि वर्ष 1962 के बाद यह पहला मौका है, जब इस क्षेत्र में लंबा गतिरोध बना है, जिसके चलते दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं। डोकालाम इलाका एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे भूटान अपना मानता है, जबकि चीन इसपर अपना दावा करता है।

भारत को मिल रही थी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सदस्यता, नेहरू ने चीन की झोली में डाल दिया !

भारत-चीन के बीच आजकल सीमा विवाद बेहद गंभीर रूप ले चुका है। स्थिति युद्ध वाली बन रही है। चीन का रुख बेहद आक्रामक है। यह वही चीन है, जिसे भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनवाने में अहम रोल अदा किया था पंडित जवाहर लाल नेहरु के सौजन्य से। उनका चीन प्रेम जगजाहिर था।

चीन भूल रहा है कि ये 1962 के भारत की सेना और सरकार नहीं है !

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर खिटपिट कोई नयी बात नहीं है, मगर इसबार चीन ने सिक्किम में जो किया है, उसे मामूली नहीं कह सकते। पहले चीन ने सीमा पर मौजूद भारतीय सेना के बंकरों को क्षति पहुंचाई, फिर अब उलटे भारत से वहाँ सेना को हटाने की मांग कर रहा है। चीन का कहना है कि भारत जबतक सीमा पर से अपनी सेना को वापस नहीं बुला लेता तबतक सीमा विवाद को लेकर आगे कोई बात नहीं