राहुल की सजा पर कांग्रेस के कथित सत्याग्रह में लेशमात्र भी ‘सत्य’ नहीं दिखता!

पिछले कुछ महीनों की अवधि में उसने दो बार कथित सत्याग्रह किए हैं। लेकिन साध्य और साधन दोनों में सत्य के तत्व नहीं हैं। पहला सत्याग्रह नेशनल हेराल्ड घोटाले में जांच के विरोध हेतु किया गया। दूसरा सत्याग्रह राहुल पर न्यायिक निर्णय के विरोध में किया जा रहा है। इसमें सरकार, सरकारी जांच एजेन्सी या सत्ताधारी दल की कोई भूमिका नहीं है।

स्वतन्त्रता संग्राम में महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का प्रयोग किया था। महात्मा गांधी ने इसे अपने अहिंसक संग्राम का उपकरण बनाया था। जिस प्रकार किसी उपकरण विशेष के संचालन के लिए निर्धारित प्रशिक्षण और योग्यता अनिवार्य होती है, उसी प्रकार सत्याग्रह रूपी उपकरण के संचालन का अधिकार भी हर किसी को नहीं हो सकता।

इसके लिए महात्मा गांधी की तरह सत्य के प्रति आग्रह का भाव होना चाहिए। ईमानदारी के मार्ग का अनुसरण करने वाले ही सत्याग्रह के अधिकारी हो सकते है। इसमें साधन के साथ साथ साध्य की पवित्रता होनी चाहिए। स्वतन्त्रता प्राप्त करना पवित्र साध्य था। महात्मा गांधी ने इसे प्राप्त करने का साधन भी पवित्र रखा था। वर्तमान कांग्रेस में यह दोनों ही चीजें नहीं हैं।

पिछले कुछ महीनों की अवधि में उसने दो बार कथित सत्याग्रह किए हैं। लेकिन साध्य और साधन दोनों में सत्य के तत्व नहीं हैं। पहला सत्याग्रह नेशनल हेराल्ड घोटाले में जांच के विरोध हेतु किया गया। दूसरा सत्याग्रह राहुल पर न्यायिक निर्णय के विरोध में किया जा रहा है। इसमें सरकार, सरकारी जांच एजेन्सी या सत्ताधारी दल की कोई भूमिका नहीं है।

साभार : Dainik Jagran

राहुल गांधी का बयान एक जाति विशेष को अपमानित करने वाला था। न्यायपालिका ने इसी पर निर्णय सुनाया था। इसी आधार पर उनकी संसद सदस्यता समाप्त हुई। राहुल गांधी के सामने न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप विकल्प थे। वह निर्णय के विरुद्ध स्टे का आग्रह कर सकते थे। वह ऊपरी अदालत में अपील कर सकते थे। इसकी जगह कांग्रेस ने कथित सत्याग्रह शुरू कर दिया। सरकार पर विपक्ष को समाप्त करने के आरोप लगाए गए। न्यायिक निर्णय पर इस प्रकार की बातों को सत्याग्रह नहीं कहा जा सकता।

राहुल गांधी देशभर में मानहानि के कई मामलों का सामना कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर आपराधिक मानहानि के मामले हैं। अब उन्हें किसी मामले में सजा हो तो वह सत्याग्रह का मुद्दा नहीं हो सकता। कोर्ट ने राहुल गांधी को  मोदी समुदाय के बारे में उनके बयान के लिए सजा दी है। कांग्रेस द्वारा बनाये गये कानून के अनुसार उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई है। इसमें वर्तमान सरकार पर ऊँगली उठाने का भी कोई मतलब नहीं है।

राहुल को बताना चाहिए कि उन पर न्यायपालिका का निर्णय लोकतंत्र पर हमला कैसे हो सकता है। राहुल ने कहा कि मेरा नाम गांधी है और मैं किसी से माफी नहीं मांगता जबकि संघ पर गांधी की ह्त्या का आरोप लगाने वाले बयान के लिए वे न्यायालय में माफ़ी मांग चुके हैं।

नेशनल हेराल्ड मामले पर भी कांग्रेस ने कथित सत्याग्रह किया था। सोनिया गांधी और राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड घोटाले के आरोपी हैं। ईडी उनसे पूछताछ कर रही थी। यूपीए सरकार के समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से भी घण्टों सवाल पूछे जाते थे। लेकिन भाजपा ने कभी इसके विरोध में सत्याग्रह नहीं किया। नरेंद्र मोदी ने भी पूरा सहयोग किया था। अंततः वह निर्दोष साबित हुए।

नेशनल हेराल्ड मसले पर गंभीर प्रश्न है। नेशनल हेराल्ड को कांग्रेस का मुखपत्र माना जाता है। आर्थिक हालात के चलते 2008 में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया था। एसोसिएट्स जर्नल्स लिमिटेड नेशनल हेराल्ड अखबार की मालिकाना कंपनी है। कांग्रेस ने 2011 में इसकी नब्बे करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था।

इस हैसियत से पार्टी ने इसे नब्बे करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। इसके बाद पांच लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की अड़तीस अड़तीस प्रतिशत हिस्सेदारी रखी गई। शेष चौबीस प्रतिशत हिस्सेदारी कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नांडीज के पास रही।हाईकोर्ट ने एजेएल के निन्यानवे प्रतिशत शेयर हासिल करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया को संदिग्ध माना है।

सवाल है कि एक समय था जब इस अखबार की सम्पत्ति पांच हजार करोड़ रुपये तक पहुँच गई। फिर किस प्रकार सन् दो हजार में इस पर नब्बे करोड़ का कर्जा हो गया ? सवाल यह भी है कि क्यों नेशनल हेराल्ड के तत्कालीन डायरेक्टर्स, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और मोतीलाल वोरा ने इसे यंग इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को बेचने का निर्णय लिया था जबकि ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर्स भी सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, ऑस्कर फर्नाडीज़ और मोतीलाल वोरा ही थे ?

हुआ ये कि ‘नेशनल हेराल्ड’ के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा ने यंग इंडिया के डायरेक्टर मोतीलाल वोरा से बात की। वह दोनों ही कंपनियों के डायरेक्टर्स थे। ऐसा करना जरूरी था। नब्बे करोड़ रूपये कर्ज़ चुकाने के लिए ‘यंग इंडिया’ ने कांग्रेस पार्टी से कर्ज माँगा।

इस प्रस्ताव पर विचार हेतु सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ऑस्कर फर्नांडिस और मोतीलाल वोरा की मीटिंग बुलाई गई। कर्ज प्रस्ताव पर निर्णय का अधिकार इन्हीं दिग्गजों को था। इन्होंने गंभीरता से विचार किया। कर्ज देना स्वीकार कर लिया। तत्कालीन कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने सहर्ष स्वीकृत प्रदान कर दी। फिर ‘यंग इंडिया’ के डायरेक्टर के रूप में मोतीलाल वोरा ने यह धनराशि ग्रहण की।

अब कांग्रेस पार्टी ने एक मीटिंग और बुलाई जिसमें सोनिया, राहुल, ऑस्कर और वोरा साहब सम्मिलित हुए। बैठकों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। फिर उन्हीं दिग्गजों की बैठक हुई। इसमें आजादी की लड़ाई में नेशनल हेराल्ड के योगदान की सराहना की गई। इसको देखते हुए उसके नब्बे करोड़ के कर्ज़ को माफ़ करने का निर्णय किया गया। इस तरह से यंग इंडिया को, पांच हजार करोड़ रूपये की संपत्ति मिल गई।

अब यह सब चीजें जब जांच और न्याय-प्रक्रिया में आईं तो कांग्रेस ने इसके विरुद्ध भी सत्याग्रह का ऐलान कर दिया था। इस तरह की चीजों को सत्याग्रह का विषय बना देने वाली कांग्रेस की वैचारिकता को समझा जा सकता है। यह गतिविधियाँ सत्याग्रह तो एकदम नहीं कही जा सकतीं, क्योंकि इसकी बुनियाद में सत्य नहीं, असत्य ही असत्य दिखाई देता है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)