‘वोकल फॉर लोकल’ से खुलेगी आत्मनिर्भरता की राह

‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान के मूल में यही विचार है कि यदि देश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा तो छोटे-छोटे उद्यमियों का विकास होगा और धीरे-धीरे उनके उत्पाद वैश्विक बनते जाएंगे तथा ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा। वस्तुतः स्थानीय उत्पादों का विकास और प्रसार ही आत्मनिर्भरता के द्वार की मुख्य कुंजी है।

पिछले वर्ष कोरोना संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की थी। इसके साथ ही प्रधानमंत्री द्वारा लोकल के लिए वोकल (Vocal For Local) का नारा भी दिया गया था। इस नारे का अर्थ है कि न केवल देश में बने उत्पादों को उपयोग में लाया जाए बल्कि अपने स्तर पर उनका प्रचार-प्रसार भी किया जाए जिससे अधिकाधिक लोगों में स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को लेकर जागरूकता आए।

इस अभियान के मूल में यही विचार है कि यदि देश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा तो छोटे-छोटे उद्यमियों का विकास होगा और धीरे-धीरे उनके उत्पाद वैश्विक बनते जाएंगे तथा ‘लोकल फॉर ग्लोबल’ के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा। वस्तुतः स्थानीय उत्पादों का विकास और प्रसार ही आत्मनिर्भरता के द्वार की मुख्य कुंजी है।

साभार : Moneycontrol

गौर करें तो वोकल फॉर लोकल को जमीनी स्तर पर बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा लगतार प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस साल बजट में एमएसएमई क्षेत्र को 15700 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं, जो कि बीते वित्तीय वर्ष की तुलना में दुगुना है।

इसके अलावा एमएसएमई के लिए कर-प्रणाली को भी लचीला और सरल किया गया है, जिससे छोटे-छोटे उद्यमियों को कारोबार में समस्या न आए। साथ ही, बीते वर्ष आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत एमएसएमई क्षेत्र को तीन लाख करोड़ का गारंटीमुक्त ऋण देने की घोषणा भी की गई थी। दरअसल एमएसएमई के अंतर्गत संचालित छोटे-छोटे उद्योगों के माध्यम से लोकल फॉर वोकल को बहुत बल दिया जा सकता है। इस क्षेत्र को मजबूती देने के पीछे सरकार की यही मंशा है। 

इसके अलावा एक जिला एक उत्पाद योजना, हुनर हाट योजना से लेकर राष्ट्रीय खिलौना मेला के आयोजन तक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा तमाम ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे देश के स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सके। खादी और ग्रामोद्योग का बाजार देश में पहले भी था, लेकिन बीते वर्ष मोदी सरकार ने फेस मास्क के साथ इसकी ऑनलाइन बिक्री की व्यवस्था शुरू की थी और इस एक वर्ष में ही इसने बड़े ई-मार्केट का रूप ले लिया है। अब इसके उत्पाद देश के दूर-दराज के इलाकों में भी ऑनलाइन खरीदी के जरिये पहुँचने लगे हैं। 

उपर्युक्त सभी बातों का मूल आशय यही बताना है कि सरकार स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग ढंग से आवश्यकतानुसार कदम उठा रही है। लेकिन हमें समझना होगा कि यह ऐसा कार्य है जिसमें केवल सरकार के करने से पूरी सफलता नहीं मिल सकती। आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य तभी साकार होगा जब देश के नागरिकों के भीतर स्वदेशी को अपनाने के प्रति अटल भावना आकार लेगी और वे व्यवहार में उसे अपनाएंगे।

उल्लेखनीय होगा कि सामान्य लोगों को स्थानीय उत्पादों को अपनाने के लिए प्रेरित करने हेतु प्रधानमंत्री मोदी लगातार अपने भाषणों में लोकल के लिए वोकल बनने का आह्वान करते रहे हैं। बीते 24 अक्टूबर को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी उन्होंने दीपावली तथा उसके आगे के त्योहारों के लिए लोगों से स्थानीय उत्पादों की खरीदारी करके ‘वोकल फॉर लोकल’ को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। 

साभार : Deccan Chronicle

गौरतलब है कि आगे धनतेरस, दीपावली, भाई दूज, छठ जैसे त्यौहार क्रमशः आने वाले हैं। पहले के समय में इन त्यौहारों की ज्यादातर खरीदी लोग अपने आसपास से ही कर लेते थे। दीपावली के दीये हों या गोधन की भरुकी और जांत अथवा छठ की डाल व सूप आदि ये सब चीजें स्थानीय विक्रेताओं से ली जाती थीं, जिनका निर्माण भी स्थानीय स्तर पर ही हुआ होता था। गाँवों में तो प्रायः फेरीवाले यह उत्पाद लेकर घर-घर घूमते नजर आते थे और वहीं से लोगों की खरीदी करते थे। लेकिन बदलते समय में शहरों में तो लोगों का झालरों की तरफ ऐसा रुझान हुआ है कि मिट्टी के दीये बहुत कम नजर आते हैं।

और तो और, बाजार में चीन निर्मित इलेक्ट्रॉनिक दीये भी उपलब्ध हो चुके हैं, जिनमें दीये जैसी आकृति में विद्युत् प्रकाश जलता रहता है, जिसे देखकर हँसी भी आती है और दुःख भी होता है। झालर खरीदने वालों में भी स्वदेशी और चाइनीज का फर्क देखने की जहमत ज्यादातर लोग नहीं उठाते। छठ के डलिया और सूप तो औने-पौने दाम में ऑनलाइन उपलब्ध हो चुके हैं। बांस के सूप के साथ अब पीतल का सूप भी दिखने लगा है। कहने का आशय है कि समय के साथ इन त्यौहारों का स्वरूप बहुत बदला है जिसने इसकी आर्थिकी को भी बहुत प्रभावित किया है।

यद्यपि ऑनलाइन या बड़े मार्ट आदि की तुलना में स्थानीय निर्माताओं-विक्रेताओं द्वारा दिए जाने वाले सामान प्रायः सस्ते होते हैं, जो कि उनकी सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन सस्ती कीमत के साथ ही उन्हें अपनी मौलिकता को बनाए रखते हुए स्वयं को थोड़ा अद्यतित  करने की भी आवश्यकता है, जिससे कि वे ग्राहकों को आकर्षित कर सकें। यह बात केवल इस त्यौहारी समय के सामानों के लिए नहीं, अपितु पूरे वोकल फॉर लोकल अभियान के लिए लागू होती है। 

हालांकि सुखद यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बारबार आग्रह और आह्वान किए जाने के परिणामस्वरूप अब लोगों में धीरे-धीरे जागरूकता आने लगी है और लोग स्थानीय उत्पादों की ओर रुझान दिखाने लगे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से लोग अपने इस रुझान को व्यक्त करते भी नजर आने लगे हैं। बात बस यही है कि लोकल के प्रति लगाव का यह भाव केवल अवसर विशेष तक केंद्रित और सांकेतिक बनकर न रहे अपितु एक राष्ट्रव्यापी दृढ़ निश्चय के रूप में आकार लेकर आत्मनिर्भर भारत के अभियान को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)