चुनाव आयोग की ईवीएम हैक करने की चुनौती पर गोल-मोल बातें क्यों बना रहे केजरीवाल ?

केजरीवाल ने हर बात, हर काम, हर दोष के लिए एक मात्र व्यक्ति ‘नरेंद्र मोदी’ को जिम्मेदार ठहराना अपना शगल बना लिया है । इतना ही नहीं, हाल ही में जिस चुनाव आयोग से मशीनों की मांग रूस जैसे विकसित देश ने की है; इन महोदय ने उस चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी अंगुलियां उठाई, वो भी बिना किसी सबूत के । अब चुनाव आयोग ने इन्हें ईवीएम हैक करने की चुनौती दी है, तो इनसे कुछ ठोस जवाब देते नहीं बन रहा । दरअसल तकनीकी विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि ईवीएम से किसी तरह कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती । इसलिए चुनावी आयोग की चुनौती पर अब केजरीवाल गोल-मोल बातें बना रहे हैं ।

हाल ही में आये उपचुनाव के नतीजों से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया कि आप सिर्फ वायवीय सपने दिखा कर चुनाव नहीं  जीत सकते । जनता ने कुछ दिनों पहले हुए पाँच राज्यों के चुनाव में भी इस बात को जताया था कि वह विकास चाहती है । अब एकबार फिर  उसने साबित कर दिया कि कोई भी हो, जो काम नही करेगा, वह पसंद नहीं किया जाएगा । आज की जनता सिर्फ प्रगति की राह पर चलना चाहती है । यह उसी का प्रतिफल है कि यदि पड़ोस के राज्य में कोई अच्छी ‘पहल’ होती है, तो दूसरे राज्य की सरकारें भी उसका ‘अनुकरण’ कर रही हैं । जैसे टूरिज्म का प्रचार करना, रोजगार मेले का आयोजन करना, शराबबंदी, पॉलीथिन बैन करना, आम जनसमूह को सस्ता खाना उपलब्ध कराना, स्वच्छता पर बल देना आदि । यह दौर उन बहुत सारे नेताओं के चिंतन मनन का है जो राजनीति जैसे गंभीर विषय को ‘ननद-भौजाई’ के झगड़े के स्तर तक ले आएँ हैं । जिसमें कांग्रेस समेत वो तमाम दल शामिल हैं जो न कुछ के मुद्दों पर एकमत हो कर, गाहे-बगाहे महत्वपूर्ण संस्थाओं के कार्य मे बाधा डालते हैं और उन्हें चिट्ठी-पत्री लिखतें रहतें हैं ।

यह बात सोलह आने सच है कि राजनीति में हार जीत होती ही रहती है और उसे जनता का निर्णय मानकर, सिर झुकाकर स्वीकार करना चाहिए । लेकिन हम सब देख रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में एक अलग तरह की तुनकमिजाजी भरी राजनीति का उदय हो रहा है, जिसमें गलती न मानने की एक अलग तरह की ‘ज़िद’ है । जिसके शीर्ष पर कुछ नेता ‘सबसे बड़ा मैं’-‘सबसे बड़ा मैं’ के तर्ज पर विराजमान होना चाहते हैं । अरविंद केजरीवाल का नाम इस पंक्ति में सबसे ऊपर है ।

केजरीवाल जब आये तो उन्होंने एक नए तरह की सनसनीखेजवादी राजनीति के जरिये लोगों का दिल जीतना चाहा । बंगाल में किसी पुराने जागीरदार के लिए वहाँ एक किवदंती प्रचलित है कि उन्होंने अपने दरबार में ‘दोष’ देने के लिए एक आदमी रखा हुआ था; किसी बात का दोष देना हो तो वो उसी को देते थे । ठीक इसी तरह केजरीवाल ने भी हर बात के लिए ‘दोषी’ तय किये हुए हैं । किसी भी ऐसे कार्य की जिम्मेदारी उन्होंने कभी नही ली, जो उनके ‘प्रतिकूल’ हो । उनके लिए वो कहावत बिलकुल फिट बैठती है कि ‘मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा-कड़वा थू थू ।’ वह किसी पेशेवर की तरह नाना प्रकार के आरोप बिना साक्ष्यों के लगाने में माहिर हैं ।

देश के किसी भी कोने में कोई भी ऐसी घटना हो, जिसकी ओट में मोदी का विरोध सकता हो, तो वे वहाँ अपने हजार काम छोड़कर जाने को हमेशा तैयार रहते हैं । महंगे वकील, दूसरे प्रदेश के छात्र के परिजन को नौकरी, दूसरे राज्य में ‘वर्ग विशेष’ के आदमी को मुआवज़ा और अपने राज्य में एक ‘गुणी डॉक्टर’ के मौत पर दो शब्द भी न बोलना । और तो और महंगा खाना, छुट्टियों में महंगे होटलों में रुकना । फ़िज़ूल प्रोग्राम बनाकर उनमें अपने लोगों (बोलिंटियर्स) को नौकरी देना । भाई-भतीजावाद को थोड़ा और आगे बढ़ाते हुए साली और साढू को भी लाभ देना । अपनी और अपने विधायकों की सैलरी में 400 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करना आदि इनके ‘सुकर्मों’ में शामिल है ।

यह तो विज्ञान का भी मानना है कि -दुनिया के किसी भी काम के लिए कम से कम दो जीव तो जिम्मेदार होते ही हैं । लेकिन केजरीवाल ने अपने विरोधवादी रवैय्ये के चलते एक अद्भुत खोज की । उन्होंने हर बात, हर काम, हर दोष के लिए एक मात्र व्यक्ति ‘नरेंद्र मोदी’ को जिम्मेदार ठहराया । इतना ही नहीं, हाल ही में जिस चुनाव आयोग से मशीनों की मांग रूस जैसे विकसित देश ने की है; इन महोदय ने उस चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी अंगुलियां उठाई, वो भी बिना किसी सबूत के । अब चुनाव आयोग ने इन्हें ईवीएम हैक करने की चुनौती दी है, तो इनसे कुछ कहते नहीं बन रहा ।

वैसे तो हर व्यक्ति जानता है कि केजरीवाल वही व्यक्ति हैं जो राजनीति में स्वच्छता लाने और सेवा करने के दावों के साथ आये थे । सिक्योरिटी, बंगला, गाड़ी, ऑफिस आदि को नहीं लेंगे – ऐसा कहा था । ये वही महोदय हैं, जिन्होंने ‘पार्कों’ में मीटिंग करने का वादा किया था । लेकिन वास्तविकता में हुआ क्या, यह किसी से छुपा नहीं है । खैर, अगर अब भी केजरीवाल नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं है, जब यह मुहावरा आम हो जाएगा कि “राजनीति में केजरीवाल हो जाना” यानी कि झूठ और फरेब की सारी हदों को पार करते हुए जुमलों के नए प्रतिमानों की स्थापना करना ।

बचपन से ही हमे सिखाया जाता है कि किसी की लाइन छोटी करने से बेहतर है, अपनी लाइन लंबी करना; उसे बढ़ाना और उसे बढ़ाने के लिए सतत प्रयास करना । अतः केजरीवाल और उनके जैसे तमाम नेताओं को चाहिए कि वह बेजा विरोध और अनर्गल बातों में ऊर्जा न ख़र्च करके, हो सके तो उसे देशहित में लगाएँ । इस सम्बन्ध में उन्हें प्रधानमंत्री मोदी से सीखना चाहिए जो फिजूल के विरोध और आरोप-प्रत्यारोप में न पड़कर चुपचाप जनहित के कार्य करते रहते हैं । यही कारण है कि उनके प्रति जनता का समर्थन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जबकि फिजूल की नकारात्मक राजनीति करने वाले केजरीवाल जैसे नेताओं को जनता लगातार खारिज कर रही है ।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)