कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो के भारत दौरे को महत्व न दिए जाने के क्या हैं कारण ?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेहमान नवाज़ी का अंदाज़ा पूरी दुनिया को है, वह दोस्तों का स्वागत दिल खोलकर करते हैं, लेकिन बात देश की एकता और अखंडता की हो तो वे किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते। कनाडा के भारत और पंजाब से रिश्ते बेहतर हों, इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं है। व्यापार दस गुना ज्यादा बढ़े, पूरे देश के लिए अच्छा है। दिक्कत वहां शुरू होती है, जब कनाडा की धरती का उपयोग पंजाब में नफरत फ़ैलाने के लिए किया जाने लगता है। यह बात जस्टिन टूडो को समझनी पड़ेगी।

इन दिनों कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो  भारत के दौरे पर हैं, पत्नी और बाल-बच्चे समेत, लेकिन किसी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के आने पर जिस तरह से शोरगुल होता है, वैसा कुछ सुनाई नहीं दे रहा। दौरे के चर्चे बहुत ज्यादा नहीं हो रहे हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों है। पंजाब से गए पंजाबियों के लिए कनाडा दूसरा घर बन गया है, वहां की राजनीतिक व्यवस्था में उनका बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। लेकिन क्या वजह है कि कनाडा और पंजाब की सरकार में उतनी गहरी दोस्ती नहीं है, जितनी होनी चाहिए थी। इसकी वजह तलाशनी होगी।

पंजाब में जिन दिनों आतंकवाद का जोर था, तो वैसे लोग जो खालिस्तान को हवा दे रहे थे, भारत छोड़ विदेशी धरती पर चले गए। वहां जाकर एक मुकाम हासिल कर लिया। अब ऐसे लोगों की तादाद भी अच्छी-खासी है, जो विदेशी धरती पर बैठकर भारत को बाँटने के सपने देखा करते हैं। सिर्फ सपने ही नहीं देखते, बल्कि भारत और पाकिस्तान में मौजूद ऐसे तत्वों को हवा और पानी देने का भी काम करते हैं। जो भारतीय मूल के लोग कनाडा में बसे हैं, उनका भारत में हमेशा सत्कार है, लेकिन अगर वो उस बूटे को ही आग लगा देंगे, जहाँ वो पैदा हुए तो ऐसी दोस्ती का क्या फायदा?

कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो

आज के समय में कनाडा खालिस्तान चरमपंथियों का गढ़ बन गया है, इनका एक लक्ष्य है कि भारत को अस्थिर किया जाए, भारत में अशांति फैलाई जाए। इसको भला कैसे सही माना जा सकता है। ये कारण है कि जस्टिन टूडो को भारत में बहुत बेहतर स्वागत नहीं मिल रहा। तमाम विदेशी मेहमानों का स्वागत करने खुद जाने वाले प्रधानमंत्री मोदी टूडो के स्वागत में नहीं गए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मेहमान नवाज़ी का अंदाज़ा पूरी दुनिया को है, वह दोस्तों का स्वागत दिल खोलकर करते हैं, लेकिन बात देश की एकता और अखंडता की हो तो वे किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते। कनाडा के भारत और पंजाब से रिश्ते बेहतर हों, इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं है। व्यापार दस गुना ज्यादा बढ़े, पूरे देश के लिए अच्छा है। दिक्कत वहां शुरू होती है, जब कनाडा की धरती का उपयोग पंजाब में नफरत फ़ैलाने के लिए किया जाए। यह बात जस्टिन टूडो को समझनी पड़ेगी।

यह जानना भी ज़रूरी है कि कनाडा में एक लाख से ज्यादा भारतीय छात्र पढाई करते हैं, वहां की एक हज़ार कंपनियां भारत में कारोबार कर रही हैं, लेकिन हमारा द्विपक्षीय व्यापर महज 8 बिलियन डॉलर है, जबकि चीन और कनाडा का व्यापार 80 बिलियन डॉलर का है। पंजाब में चुनाव से पहले अशांति फ़ैलाने की पूरी कोशिश की गई। वैसे-वैसे लोग अपने असल रंग में आ गए, जो दसियों साल से यहाँ से गायब थे। पिछले साल तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन से यह कहकर मिलने से ही मना कर दिया कि सज्जन खालिस्तानी समर्थकों से सहानुभूति रखते हैं।

खैर, पंजाब के मुख्यमत्री अमरिंदर सिंह ने खुद आगे बढ़कर जस्टिन ट्रूडो से मिलने की इच्छा जताई है, जब वह 21 फ़रवरी को अपने पूरे परिवार के साथ अमृतसर पधारेंगे। उनका मान-सम्मान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के द्वारा भी किया जाएगा, साथ ही साथ, कैप्टन अमरिंदर सिंह भी बिजनेस और आपसी संबंधों पर बात करना चाहेंगे। लेकिन, सही जगह पर सही मुद्दों को उठाने में कैप्टन चूकें नहीं, यह ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)